जल संकट का हल है पानी का स्मार्ट प्रबंधन

हममें से शायद ही कोई ऐसा हो जो अपने इर्दगिर्द घट रही घटनाओं को लेकर सजग हो और वह जल संकट के बारे में न जानता हो। आज की तारीख में दुनिया की सबसे बड़ी और साझी समस्याओं में से दो सबसे खास हैं। एक दुनियाभर में गहराता जल संकट और दूसरा जलवायु परिवर्तन। ये दोनाें ही संकट वास्तव में एक ही संकट के दो पहलू हैं। लेकिन इन दोनों में ही धरती में प्रलय ढाने की क्षमता है। आज दुनियाभर में 1.1 अरब से ज्यादा ऐसे लोग हैं, जिन अभागों की पहुंच शुद्ध और साफ पानी तक नहीं है। ये पूरे साल पानी के भीषण संकट से गुजरते हैं। साथ ही गंदा, प्रदूषित और स्वास्थ्य के लिहाज से नुकसानदायक पानी पीने को अभिशप्त हैं। इसके साथ ही दुनिया में 2.7 अरब से ज्यादा लोग ऐसे हैं, जिन्हें साल के 12 महीनों में कम से कम एक महीने जल की भारी किल्लत से जूझना पड़ता है। पानी के इन दो बड़े संकटों के अलावा भी कई संकट हैं। खराब यानी दूषित पानी के चलते हर साल डायरिया रोग हो जाने से 20 लाख से ज्यादा लोगों की मृत्यु हो जाती है। इस सबके बीच विशेषज्ञों का डरावना निष्कर्ष हमारे सामने हैं, इसके मुताबिक महज अगले दो तीन सालों के भीतर ही दुनिया की दो तिहाई आबादी को भीषण जल संकट का सामना करना पड़ेगा। विशेषज्ञ कहते हैं यह अनुमान नहीं बल्कि जल्द ही बनने जा रही हकीकत है। 
जिन देशों में एक बड़े वर्ग को यह संकट अभी नहीं दिखता, वहां भी यह संकट है और जिन देशों में सबको इस संकट से गुजरने की मजूबरी है, वहां तो यह दिखता ही है। ऐसा भी नहीं है कि इस समस्या से दुनियाभर को जानकार दशकों से आगाह न कर रहे हों। लेकिन चीख चीखकर जल संकट के बारे में बताये जाने के बावजूद न तो धरती से जंगलों का सफाया होना कम हुआ, न ही जल प्रदूषण के लिए जिम्मेदार गतिविधियों में ही किसी तरह की कमी आयी। पिछले तीन दशकों से पूरी दुनिया में बार-बार यह कहा जा रहा है कि पीने वाले जल का संकट लगातार गहरा रहा है, इसलिए वर्षा जल का अधिक से अधिक संरक्षण होना चाहिए। ऐसा नहीं है कि इन सब बातों पर बिल्कुल ध्यान ही नहीं दिया गया। ध्यान तो दिया गया है लेकिन उतना नहीं जितना देना चाहिए था। आज पूरी दुनिया में हर साल 2 बिलियन गैलन से ज्यादा वर्षा जल का संरक्षण हो रहा है, लेकिन हमें बारिश के पानी को जितना ज्यादा संरक्षण करने की ज़रूरत है, अव्वल तो यह उससे कम है। साथ ही साथ इसी दौरान हमारी लाइफस्टाइल में हुए तमाम उपभोक्तावादी बदलावों में जल उपभोग की मात्रा भी कई गुना ज्यादा बढ़ा दी है। 
साल 1970 के मुकाबले आज विकसित देशों में हर दिन प्रतिव्यक्ति 10 लीटर से ज्यादा पानी की खपत हो रही है। बदलते खानपान व उपभोगवादी दिनचर्या के कारण आज हमें हर दिन 1970 के मुकाबले कहीं ज्यादा पानी की ज़रूरत हो गई है। सवाल है इस आसन्न जल संकट से कैसे निपटा जाए? इससे निपटने के दो अहम तरीके हैं। एक तो अभी भी वर्षा जल के संरक्षण पर जितना ध्यान दिया जाना चाहिए, उतना नहीं दिया जा रहा है। यह भारतीयों की खुशकिस्मती और कुदरत का स्नेह है कि भारत में पिछले एक दशक से ऐसा सूखा नहीं पड़ा कि हम वर्षा की समस्या से हिल जाएं। मानसून थोड़ा आगे पीछे ज़रूर होता है। रेन पैटर्न भी चेंज हुआ है, लेकिन पिछले एक दशक से भी ज्यादा समय से मानसून हर साल नियमित रूप से आ रहा है। मगर हम अपने इर्दगिर्द इतने बड़े जल संकट को देखते हुए भी हर साल आने वाले इस मानसून का भरपूर फायदा नहीं उठा पाते। 
आज भी हम बारिश के दिनों में होने वाली कुल बारिश का एक प्रतिशत जल भी संरक्षित नहीं कर पा रहे। जबकि जल वैज्ञानिकों का आंकलन है कि हमें कम से कम कुल बारिश का 3 प्रतिशत जल संग्रह करना चाहिए। अगर हम ऐसा कर लें तो हमारी पानी की 80 प्रतिशत से ज्यादा समस्याएं खत्म हो जाएं और यह बहुत मुश्किल नहीं है, क्योंकि हम खुशकिस्मत हैं कि हिंदुस्तान में करीब करीब 87 भू-भाग में हर साल ठीक ठाक बारिश होती है। सामने खड़े जल संकट से निपटने का एक और अच्छा और ठोस उपाय है, पानी का स्मार्ट मैनेजमेंट। दरअसल हाल के दशकों में हमारी जिंदगी के हर पहलू को तकनीक ने बहुत गहरे तक प्रभावित किया है। तकनीक के उन्नतीकरण ने जीवन आसान बनाया है, जो चीजें पहले दुर्लभ होती थीं।
भारत में दिन पर दिन प्रतिव्यक्ति वार्षिक जल उपलब्धता कम हो रही है। साल 2001 में जहां हर भारतीय के लिए देश में कम से कम 1816 घन मीटर जल उपलब्धता थी, वह साल 2011 में घटकर 1544 घन मीटर रह गई। जल वैज्ञानिकों के मुताबिक साल 2050 तक यह घटकर 1140 घन मीटर रह सकती है। विशेषज्ञ कहते हैं कि अगर 1000 घन मीटर या इससे कम प्रतिव्यक्ति पानी की उपलब्धता रह जाए तो यह जल संकट के दायरे में आता है। दूसरा बड़ा संकट यह है कि इस समय देश में जितने लोगों को नल के जरिये कमोवेश शुद्ध पानी उपलब्ध है, उससे तीन गुना ज्यादा लोग इसकी प्रतीक्षा में हैं। अगर सरकारें अपने तमाम वायदों के मुताबिक 2030 तक शुद्ध जल उपलब्ध करा दें, तो आज के मुकाबले हमें 300 प्रतिशत ज्यादा शुद्ध जल की ज़रूरत पड़ेगी। लेकिन ऐसा व्यवहार में न तो सामने है और न ही ऐसा होते दिख रहा है। सवाल है असुरक्षित जल हमारे लिए कितनी बड़ी समस्या है? इस समस्या का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि साल 2016 में चीन को गंदे पानी से पैदा हुई स्वास्थ्य समस्याओं से निपटने में भारत से 40 गुना कम खर्च करना पड़ा और श्रीलंका को हमारे मुकाबले गंदे पानी से होने वाली स्वास्थ्य समस्याओं से 12 गुना कम जूझना पड़ा। कहने का मतलब है कि गंदे पानी की स्वास्थ्य संबंधी समस्या हमारे यहां चीन के मुकाबले 4000 प्रतिशत और श्रीलंका के मुकाबले 1200 प्रतिशत ज्यादा है। भारत जैसे बड़े देश में हर साल 140 बिलियन क्यूबिक पानी अपशिष्ट में बदलता है। लेकिन सिर्फ 35 प्रतिशत इस अपशिष्ट के प्रबंधन की हमारे पास क्षमता है। भारत में बड़े पैमाने पर पानी गंदा होने से हर साल कम से कम 5 करोड़ लोग बीमार पड़ते हैं और 20 लाख से ज्यादा लोग मर जाते हैं। जो मरते नहीं, वो भी लंबे समय तक बीमार रहते हैं। इन बीमार लोगों की तीमारदारी में तो भारत का आर्थिक भट्टा बैठता ही है। लोगों के बीमार होने पर जो कार्य दिवसों की हानि होती है, उससे भारत के जीडीपी में चार से छह प्रतिशत की कमी आती है। इसलिए भारत के लिए आसन्न जल संकट का सबसे जरूरी, आसान और त्वरित हल यही है कि हम पानी के प्रबंधन में अधिक से अधिक तकनीक का इस्तेमाल करें और इस प्रबंधन को स्मार्ट बनाएं।            

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