चंद्रयान-3 की उड़ान, इतिहास रचेगा हिन्दुस्तान

हाल ही में एक अमरीकी समाचार पत्र ने भारत के महत्वाकांक्षी अंतरिक्ष कार्यक्रम की सराहना करते हुए यह बात कही कि दुनिया के सबसे बड़े लोकतांत्रिक देश भारत में अंतरिक्ष प्रौद्योगिकी के क्षेत्र में तेज़ी से स्टार्ट-अप विकसित हो रहे हैं और संकेत दे रहे हैं कि वह इस क्षेत्र में व्यापक बदलाव ला सकता है। समाचार पत्र ने यहां तक कहा है कि अमरीका और भारत दोनों अंतरिक्ष को ऐसे क्षेत्र में रूप में देखते हैं जिसमें भारत उनके परस्पर प्रतिद्वंद्वी चीन को बराबर की टक्कर दे सकता है। 
भारत ने वर्ष 1963 में अपना पहला राकेट अंतरिक्ष में प्रक्षेपित किया था। उस समय भारत दुनिया की सबसे अत्याधुनिक टेक्नोलॉजी अपनाने वाला, लेकिन विश्व का एक गरीब देश माना जाता था। इसरो (इंडियन स्पेस रिसर्च आर्गेनाइज़ेशन) की स्थापना वर्ष 1969 में हुई थी। वास्तव में इसरो पर अंतरिक्ष अनुसंधान, विकास और उपग्रह कार्यक्रमों की ज़िम्मेदारी है। इसका मुख्यालय कर्नाटक के बेंगलुरु शहर में स्थित है। इसरो उपग्रह संचार, रिमोट सेंसिंग, मौसम पूर्वानुमान और आपदा प्रबंधन में भी शामिल रहा है। इसरो की प्रमुख उपलब्धियों में चंद्रयान -1 व 2 का प्रक्षेपण, मार्श आर्बिटर मिशन, भारतीय क्षेत्रीय नेवीगेशन उपग्रह प्रणाली, जीएसएलवी एमके आदि प्रमुख रहे हैं। आज भारत अंतरिक्ष की दौड़ में सोवियत रूस, अमरीका, चीन, जर्मनी, फ्रांस, जापान जैसे देशों से कम नहीं है।
आज भारत सम्पूर्ण विश्व में एक वैज्ञानिक शक्ति के केन्द्र में लगातार उभर रहा है। सच तो यह है कि भारतीय अंतरिक्ष कार्यक्रमों ने सम्पूर्ण विश्व को अपनी अंतरिक्ष क्षमताओं को लेकर लोहा मनवाया है जिसके लिए इसरो शानदार बधाई का पात्र भी है। सबसे बड़ी बात तो यह है कि सबसे कम खर्च में भारत अंतरिक्ष विज्ञान के क्षेत्र में महत्वपूर्ण उपलब्धियां हासिल कर रहा है। 14 जुलाई को दोपहर 2.35 बजे सतीश धवन केन्द्र श्रीहरिकोटा (आंध्र प्रदेश) से चंद्रयान-3 मिशन का प्रक्षेपण किया गया। प्रक्षेपण के लिए जिस रॉकेट का इस्तेमाल किया गया, उसका नाम जीएसएलवी एमके-3 रखा गया। मिशन का बजट 615 करोड़ रुपये है।
इसरो  के प्रमुख एस. सोमनाथ के अनुसार कि चंद्रयान-3 मिशन के तहत इसरो 23 या 24 अगस्त को चंद्रमा पर सॉफ्ट लैंडिंग का प्रयास करेगा। ऐसे में भारत चीन जैसे देश को अंतरिक्ष के क्षेत्र में एक बड़ी टक्कर देगा। यहां यह भी उल्लेखनीय है कि पहले चन्द्र मिशन को 22 अक्तूबर, 2008 को आंध्र प्रदेश में श्रीहरिकोटा के सतीश धवन अंतरिक्ष केंद्र से पीएसएलवी सी-11 द्वारा लॉन्च किया गया था। इसे 8 नवम्बर, 2008 को चंद्रमा की ऑर्बिट में सफलतापूर्वक स्थापित किया गया था और इसी मिशन के बाद दुनिया ने भारत का लोहा माना था। आज पूरी दुनिया की नजरें भारतीय अंतरिक्ष कार्यक्रम (चंद्रयान-3) पर टिकी हुई हैं। यदि भारत का यह प्रयास सफल रहता है तो भारत चांद पर उतरने में कामयाब होने वाली विश्व की चौथी बड़ी शक्ति बन जाएगा। रूस और चीन ने भी कम लागत में रॉकेट लॉन्च करने की पेशकश की थी लेकिन यूक्रेन युद्ध के कारण रूस का अंतरिक्ष कार्यक्रम ठप पड़ गया और इससे ब्रिटेन के वनवेब को भी 230 मिलियन अमरीकी डॉलर का नुकसान हुआ। इसके बाद वनवेब इसरो के पास भेजा गया था। वर्ष 2020 में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अंतरिक्ष क्षेत्र के लिए सभी प्रकार के निजी उद्यमों को खोलने की घोषणा की थी और भारत ने पिछले साल अंतरिक्ष स्टार्टअप के नए निवेश में 120 मिलियन अमरीकी डॉलर जुटाए थे। 
अब भारत अपने चंद्रयान मिशन को अंजाम तक पहुंचाने जा रहा है। इससे पहले चंद्रयान-2 मिशन में आखिरी वक्त पर गड़बड़ी आ गई थी। वास्तव में जब लैंडर विक्रम चंद्रमा की सतह तक पहुंचने से केवल 2.1 किलोमीटर की दूरी पर था तो कंट्रोल रूम से उसका सम्पर्क टूट गया था, लेकिन इसरो के वैज्ञानिकों ने इस पर भी हिम्मत नहीं हारी। इसरो ने अब श्रीहरिकोटा से चंद्रयान-3 मिशन को प्रक्षेपित किया है। 
वास्तव में यह चंद्रयान-2 का ही फालोअप मिशन है। चंद्रयान-3 मिशन में लैंडर तथा रोवर को चंद्र की कक्षा के सौ किलोमीटर दायरे तक ले जाया जाएगा। इसके साथ एक वैज्ञानिक उपकरण भी है जिसे लेंडर मॉड्यूल के अलग होने के बाद संचालित किया जाएगा। चंद्रयान-3 के लैंडर में चार पेलोड हैं, जबकि छह चक्कों वाले रोवर में दो पेलोड हैं। चंद्रयान-3 मिशन सबसे अलग और अपने-आप में सबसे खास इसलिए है, क्योंकि अब तक दुनिया के जितने भी देशों ने चंद्रमा पर अपने यान भेजे हैं, उन सभी की लैंडिंग चांद के उत्तरी ध्रुव पर हुई है लेकिन चंद्रयान-3 चांद के दक्षिणी ध्रुव पर उतरने वाला पहला अंतरिक्ष मिशन होगा। चांद के दक्षिणी ध्रुव को टारगेट करने के कारणों की अगर यहां बात करें तो इसके पीछे कारण यह है कि वहां उत्तरी ध्रुव के मुकाबले एक बड़ा छायादार क्षेत्र मौजूद है। 
वैज्ञानिकों का मानना है कि चंद्रमा की सतह के इस क्षेत्र में पानी के स्थायी स्रोत होने की संभावनाएं बहुत अधिक हैं। इसके अतिरिक्त वैज्ञानिकों की दक्षिणी ध्रुव में मौजूद गड्ढों में गहरी दिलचस्पी है। उनका मानना है कि इनमें प्रारंभिक ग्रह प्रणाली के रहस्यमयी जीवाश्म रिकॉर्ड मिल सकते हैं। बहरहाल, इस मिशन में एल्गोरिदम को बेहतर किया गया है। यह चंद्रमा की सतह पर सुरक्षित लैंडिंग और घूमने में एंड-टू-एंड क्षमता प्रदर्शित करने के लिए चंद्रयान-2 का अनुवर्ती मिशन है। चंद्रयान-3 मिशन में एक स्वदेशी लैंडर मॉड्यूल, प्रोपल्शन मॉड्यूल और एक रोवर शामिल है, जिसका उद्देश्य अंतर-ग्रहीय मिशनों के लिए ज़रूरी नई तकनीकों को विकसित और प्रदर्शित करना है। चंद्र लैंडर से संबंधित उपकरण तापीय चालकता, तापमान को मापने के लिए सरफेस एक्सपेरिमेंट और लैंडर के उतरने के स्थल के आसपास भूकम्पीयता को मापेंगे। इस सॉफ्ट लैंडिंग से रोवर तैनात करने की क्षमता है, जो अपनी गतिशीलता से चंद्र सतह का रसायनिक विश्लेषण करेगा। मीडिया के हवाले से पता चला है कि लैंडर और रोवर पर फिर वैज्ञानिक उपकरण चंद्रमा के विज्ञान का अध्ययन करेंगे और दूसरा प्रायोजित उपकरण चंद्रकक्षा से पृथ्वी के सिग्नेचर प्रभाव का अध्ययन करेगा।
 चंद्रयान-3 के उद्देश्यों में क्रमश: चांद की सतह पर सुरक्षित और सॉफ्ट लैंडिंग को प्रदर्शित करना, चांद पर घूमते हुए रोवर को प्रदर्शित करना तथा चांद पर वैज्ञानिक प्रयोग करना शामिल हैं। चंद्रयान-3 मिशन से लैंडिंग साइट के आसपास की जगह में चंद्रमा की चट्टानी सतह की परत, चंद्रमा के भूकम्प और चंद्र सतह प्लाज़्मा और मौलिक संरचना की थर्मल-फिजिकल प्रॉपर्टीज़ की जानकारी मिलने में मदद मिल सकेगी। निश्चित ही भारत का चंद्रयान-3 मिशन अंतरिक्ष के क्षेत्र में एक इतिहास रचने जा रहा है। (युवराज)