बेतरतीब कचरा प्रबंधन जीवन के लिए चुनौती

हमारे गांव और शहरों में जगह-जगह लगे कचरे के ढेर और उनमें पनपते रोग आज गम्भीर खतरा बन चुके हैं। घर से कार्यालय या कॉलेज जाते समय और ट्रेन से किसी रेलवे स्टेशन पहुंचने से पूर्व नज़र आते कचरे के पहाड़ हमारा स्वागत करते हैं। कचरे में स्थानीय मवेशी प्लास्टिक की पन्नियों को अपना भोजन बनाते हैं, तो कहीं सड़े-गले कचरे के साथ इलेक्ट्रोनिक कचरा भी इनके पेट में चला जाता है। एक अनुमान के अनुसार भारत के 7935 शहरी क्षेत्रों में रहने वाले 37 करोड़ 70 लाख निवासियों के कारण प्रतिदिन 1.70 लाख टन ठोस अपशिष्ट पैदा होता है। यह भी अनुमान लगाया गया है कि 2030 तक जब शहरों में 59 करोड़ नागरिक हो जाएंगे और आबादी बढ़ने से शहरों की सीमाएं समाप्त हो जाएंगी, तो प्राकृतिक शहरी अपशिष्ट का प्रबंधन करना मुश्किल होगा। 
कूड़े के कुप्रबंधन के कितने घातक परिणाम सामने आ रहे है यह किसी से छूपा नहीं है बारिश के दौरान देश के एक दो नहीं बल्कि सैकड़ो शहर डूबने की कगार पर पहुंच जाते है। इस तरह की गतिविधियां देश की जनता और सरकार प्रतिवर्ष देखती है। दिल्ली में सुप्रीम कोर्ट तक जलभराव इसका जीता जागता उदाहरण है। ऐसे में देश में कूड़ा प्रबंधन के लिए स्वच्छ भारत अभियान को जमीनी धरातल पर उतराना ही कारागर साबित होगा। हालांकि निकाय स्तर पर कूड़ा प्रबंधन को लेकर निजी कम्पनियों के प्रबंधन ठीक नही है। कूड़े से निकलने वाली प्रदूषित वायु कितनी बिमारियों को जन्म दे रही है इस तरफ किसी को होश नहीं है।  
स्वच्छ भारत अभियान को सफल बनाने के लिए जितना आवश्यक यह है कि नगर निकाय गीले कचरे को सही तरह एकत्र कर बायो गैस प्लांट में उसका उपयोग करें उतना ही यह भी कि वे सूखे कचरे के निस्तारण की भी कोई उपयुक्त व्यवस्था करें। यह एक तथ्य है कि स्वच्छ भारत अभियान पर तमाम जोर दिए जाने के बाद भी कचरा प्रबंधन एक चुनौती बना हुआ है। यह संतोषजनक है कि शहरों में कचरा प्रबंधन की दृष्टि से उपयोगी मानी जाने वाली गोबरधन योजना के प्रति राज्यों ने उत्साह दिखाया। इस योजना के तहत विभिन्न राज्यों में बायो गैस प्लांट के 79 प्रस्तावों को स्वीकृति दी गई थी, लेकिन कोई भी समझ सकता है कि ऐसे प्लांट बड़ी संख्या में लगाने की आवश्यकता है।
 इस आवश्यकता का रेखांकन इस वर्ष बजट में भी किया गया था। बजट में गोबरधन योजना के तहत देश में पांच सौ बायो गैस प्लांट लगाने की घोषणा की गई थी। स्पष्ट है कि इस योजना को गति देने की आवश्यकता है, ताकि यथासंभव अधिक से अधिक गीले कचरे को बायो गैस में तब्दील किया जा सके। इसकी अनदेखी नहीं की जानी चाहिए कि अभी बहुत कम मात्रा में गीले कचरे यानी फल, सब्जियों, अनाज आदि के अवशेष का सही से निस्तारण हो पाता है। इसका एक बड़ा कारण यह है कि नगर निकायों के पास इस तरह के कचरे के निस्तारण के लिए उपयुक्त व्यवस्था ही नहीं है। स्थिति यह है कि वे गीले और सूखे कचरे को अलग-अलग एकत्र करने की भी व्यवस्था नहीं कर पा रहे हैं। स्पष्ट है कि जब यह बुनियादी काम हो सकेगा, तभी बायो गैस प्लांट उपयोगी साबित हो सकेंगे। स्वच्छ भारत अभियान को सफल बनाने के लिए जितना आवश्यक यह है कि नगर निकाय गीले कचरे को सही तरह एकत्र कर बायो गैस प्लांट में उसका उपयोग करें, उतना ही यह भी कि वे सूखे कचरे के निस्तारण की भी कोई उपयुक्त व्यवस्था करें। यह एक तथ्य है कि स्वच्छ भारत अभियान पर तमाम जोर दिए जाने के बाद भी कचरा प्रबंधन एक चुनौती बना हुआ है। देश की राजधानी समेत अन्य महानगरों के पास कचरे के भंडारण के लिए पर्याप्त स्थान तक नहीं हैं। परिणाम यह है कि महानगरों में कचरे के पहाड़ खड़े हो रहे हैं। यह समझा जाना चाहिए कि कचरा प्रबंधन तब तक चुनौती बना रहेगा, जब तक उसके निस्तारण की ठोस व्यवस्था नहीं की जाती।
ध्यान रहे शहरों में प्रदूषण का स्तर बढ़ने का एक कारण कचरे का सही तरह प्रबंधन न हो पाना भी है। कचरा प्रबंधन के मामले में सरकारों को जैसी इच्छाशक्ति का परिचय देना चाहिए, उसका अभाव देखने को मिल रहा है। हर कोई इससे परिचित है कि पालिथीन और प्लास्टिक का कचरा पर्यावरण के लिए बेहद हानिकारक है, लेकिन कोई नहीं जानता कि पालिथीन और प्लास्टिक के वे उत्पाद क्यों बन एवं बिक रहे हैं, जिन पर रोक लगाने की बातें होती रहती हैं? इस प्रश्न का उत्तर देने के साथ ही इस पर भी ध्यान दिया जाना चाहिए कि अब ई-कचरे के निस्तारण की भी ठोस योजनाएं बनाने का समय आ गया है।
 बायो-मैडीकल अपशिष्ट (प्रबंधन और हैंडलिंग) नियम, 1998 में कहा गया है कि देश में हर 150 किलोमीटर पर एक सामान्य बायोमेडिकल अपशिष्ट उपचार सुविधा (सीबीडब्ल्यूटीएफ) होनी चाहिए। सीबीडब्ल्यूटीएफ स्थापित किए गए हैं और शहरों और कस्बों में कार्य कर रहे हैं। लेकिन इतने सालों बाद इस पर कितना अमल किया गया इसका जबाब जिम्मेदार ही दे सकते है। हालांकि, पूरे देश में कार्यात्मक सीबीडब्ल्यूटीएफ की स्थापना सुनिश्चित की जानी चाहिए। एकीकृत आम खतरनाक अपशिष्ट प्रबंधन सुविधाएं विभिन्न औद्योगिक इकाइयों द्वारा उत्पन्न खतरनाक कचरे के उपचार के लिए सुरक्षित लैंडफिल सुविधा, ठोसीकरण/स्थिरीकरण और भस्मीकरण को जोड़ती हैं। 
पर्यावरण मंत्रालय की एक रिपोर्ट के अनुसार, वे देश में उत्पन्न होने वाले कुल लैंडफिल कचरे में लगभग 97.8 प्रतिशत और देश में उत्पन्न होने वाले कुल ज्वलनशील खतरनाक कचरे में 88 प्रतिशत का योगदान करते हैं। देश में हर साल 30 से 40 लाख टन प्लास्टिक का उत्पादन किया जाता है। हर साल करीब साढ़े सात लाख टन पॉलिथीन कचरे की रिसाइक्लिंग की जाती है और बाकी पॉलिथीन नदी, नाले और मिट्टी में जमा रहते हैं और संकट का सबब बनते हैं। नदियों में भी इनकी वजह से बहाव पर असर पड़ता है और पानी के दूषित होने से मछलियों की मौत तक हो जाती है।
लगभग 100 शहरों को स्मार्ट सिटी के रूप में विकसित किये जा रहे है लेकिन इसकी गति और अव्यस्था देखने पर पता चलता है कि यह योजना भी अन्य सरकारी योजना की तरह चलाई जा रही है।   कुल मिलाकर कचरा किसी भी रूप में हो उसका प्रबंधन, निस्तारण और उसका डिस्पोजल हर हाल में किए जाने के परिणाम स्वरूप ही हम अनचाही बीमारियों एवं जलभराव जैसी तमाम समस्याओं से निजात पाने का उपाय मान सकते है।