कोलराई किले से अरब सागर के नज़ारे

मैंने कोलराई गांव जाने का मन बनाया, जाहिर है मैं विख्यात कोलराई किला देखना चाहता था। कोलराई पहुंचने के लिए मेरे पास सड़क, रेल व हवाई तीनों विकल्प खुले हुए थे। हालांकि कोलराई अपने देश के कई प्रमुख शहरों से सड़क मार्ग से जुड़ा हुआ है और इसके सबसे निकट, लगभग 150 किमी की दूरी पर मुंबई एयरपोर्ट है, लेकिन मैंने रेल से सफर करना तय किया और पेन रेलवे स्टेशन पर उतर गया, जहां से कोलराई मात्र 50 किमी के फासले पर है। रेलवे स्टेशन से मैंने किराये पर एक कार ली और तकरीबन एक घंटे की ड्राइव के बाद कोलराई पहुंच गया। 
कोलराई गांव महाराष्ट्र में कोंकण क्षेत्र के कोस्टल इलाके के रायगढ़ ज़िले में स्थित है। इस साफ सुथरे गांव में पहुंचने के बाद मैं जीपीएस की मदद से कोलराई किले का रास्ता स्वयं तलाश कर सकता था, लेकिन मेरी दिलचस्पी ग्रामीणों से बातचीत करने में भी थी, इसलिए किले का मार्ग मालूम करने के बहाने से मैं एक चाय की दुकान पर रुक गया, जहां कुछ लोग बैठे थे और चाय का आनंद लेते हुए महाराष्ट्र की हाल की राजनीति पर चर्चा कर रहे थे। मुझे चाय की तलब नहीं थी, फिर भी एक कप आर्डर करने के बाद मैं खाली पड़े स्टूल पर बैठ गया और उनके समक्ष अपना मुद्दा रखा कि कोलराई किले तक पहुंचने के लिए कौन-से रास्ते से जाना होगा? चाय पीते हुए एक ग्रामीण ने जवाब दिया, ‘यह किला अरब सागर के किनारे है और (हाथ से इशारा करते हुए) इसे रास्ते से जैसे ही आप गांव की सरहद के बाहर निकलेंगे, आपको किला दिखायी दे जायेगा।’
हालांकि पाठकों की सुविधा के लिए मैंने ग्रामीण के उत्तर का सरल हिंदी में अनुवाद कर दिया है, लेकिन उसने जिस मराठी में जवाब दिया था उसमें पुर्तगाली भाषा का मिश्रण अधिक था। उसकी पुर्तगाली मिश्रित मराठी को सुनकर मेरे चेहरे पर आश्चर्य के भाव उभर आये थे, जिन्हें ग्रामीणों ने भी भांप लिया था। इसलिए उनमें से एक ने कहा, ‘हमारे गांव की आम बोलचाल की भाषा में आज भी पुर्तगाली का इस्तेमाल किया जाता है।’ तो गोवा के बाहर महाराष्ट्र में आज भी कोलराई नामक ऐसा गांव है जहां पुर्तगाली भाषा बोली व समझी जाती है। भारत की अनेक बोलियों व भाषाओं में पुर्तगाली भी शामिल है। वाह! मगर क्यों और कैसे? इसका जवाब भी मुझे ग्रामीणों से ही मिला। 
पुर्तगालियों ने भारत में सबसे पहले अपने कदम 1505 में चौल में रखे थे, जो कोलराई गांव के पास में ही स्थित है। तकरीबन 200 वर्षों (1520 से 1740) तक पुर्तगालियों का इस क्षेत्र पर राज रहा। बाद में चिमाजी अप्पा ने पुर्तगालियों को पराजित करके इस इलाके को अपने मराठा राज्य में शामिल कर लिया। पराजय के बाद अधिकतर पुर्तगाली सैनिक समुद्र के रास्ते इस क्षेत्र से भागने में सफल हो गये थे, लेकिन 4-5 परिवार कोलराई गांव में आकर बस गये थे। यह परिवार लैटिन व पुर्तगाली भाषाओं में आपस में बातचीत करते है। स्थानीय लोगों से बातें करने के लिए इन्होंने मराठी भाषा सीखी। फिर इनकी पुर्तगाली मिश्रित मराठी ही कोलराई में आम बोलचाल की भाषा हो गई। कोलराई गांव की सरहद के पास ही है। कोलराई किला, जिसका निर्माण पुर्तगालियों ने ही कराया था। अरब सागर के किनारे बसे इस लगभग 500 वर्ष पुराने किले को देखते ही अतीत के पन्ने खुद ब खुद ही खुलने लगे, इतिहास आंखों के सामने तैर गया। वह समय भी क्या रहा होगा जब इस किले में हज़ारों सैनिक व घोड़े रहते होंगे। सामने अरब सागर में ऊंची-ऊंची लहरें उठ रही थीं, जिनसे यह नज़ारा दिलकश व मनमोहक हो गया था। मैं सोचने लगा कि मैं यहां पहले क्यों नहीं आया?
कोलराई किले का निर्माण 1521 में हुआ था, एक पहाड़ी के ऊपर जो समुद्र तट से 300 फीट ऊपर है। यह किला इतना विशाल है कि इसमें 7,000 घोड़े व उतनी ही संख्या में सैनिक एक साथ रहा करते थे। इस कारण से भी कोलराई किला विख्यात है। पुर्तगालियों ने इस किले का निर्माण अपने राज्य की सुरक्षा की दृष्टि से कराया था। उसी ज़माने की एक तोप को मैंने किले की दीवार पर रखा हुआ देखा। कोलराई किले के निर्माण का एक उद्देश्य रेवदंडा क्रीक के मार्ग की रक्षा करना भी था। रेवदंडा एक विशाल समुद्र तट है, जिसके रास्ते पुर्तगाली भारत में आया व जाया करते थे। वैसे यहां यह जानकारी देना भी दिलचस्प रहेगा कि महाराष्ट्र में 350 किले हैं, जिन्हें विभिन्न शासकों ने बनवाया था। इनमें से छोटे व बड़े कम से कम 20 किले समुद्र तट पर हैं, जो संरक्षण की विभिन्न डिग्रीयों में हैं। हालांकि किले का बहुत सा हिस्सा अब शेष नहीं रहा है, लेकिन कोलराई किला आज भी काफी प्रभावी है। किले के मुख्य द्वार पर कांस्य से बना एक शेर था, जिसके नीचे लिखा था, ‘मुझसे लड़े बिना कोई यहां से नहीं गुजर सकता।’ किले में पुर्तगाली शैली की एक चर्च का कुछ हिस्सा भी शेष बचा है। किले के ऊपर से जो नज़ारा देखने को मिला, उसे शब्दों में व्यक्त करना कठिन है। पश्चिम में अरब सागर, पूरब में रेवदंडा क्रीक और नीचे मछुआरों का सुंदर कोलराई गांव।

-इमेज रिफ्लेक्शन सेंटर