़गरीबी-उन्मूलन में पिछड़ा पंजाब

देश के नीति आयोग द्वारा जारी की गई गरीबी के उन्मूलन संबंधी रिपोर्ट एक ओर जहां राष्ट्रीय धरातल पर आशा की किरण जगाते प्रतीत होती है, वहीं पंजाब को लेकर यह रिपोर्ट निराशा की भावना को ही मुख्यतया सामने लाती है। इस रिपोर्ट द्वारा जारी आंकड़ों के अनुसार विगत चार वर्षों में नि:सन्देह रूप से राष्ट्रीय स्तर पर गरीबी उन्मूलन के दृष्टिगत प्रगति दृष्टिगोचर हुई है। इस काल में देश के 9.89 प्रतिशत अर्थात 13.5 करोड़ लोग गरीबी रेखा से ऊपर उठे हैं। इन आंकड़ों में एक  उल्लेखनीय पक्ष यह रहा कि गरीबी की दर में कमी का सर्वाधिक प्रतिशत बिहार में 18.13 प्रतिशत रहा जबकि इसके विपरीत पंजाब जैसे समृद्धिशाली प्रांत में गरीबी की दर में यह कमी केवल 0.82 प्रतिशत रही अर्थात पंजाब में इस दौर में केवल एक प्रतिशत तक भी गरीबी कम नहीं हो सकी। दूसरी ओर यह भी एक संयोग रहा कि गरीबी और शिक्षा के धरातल पर कम उल्लेखनीय प्रांत हरियाणा भी इस मुद्दे को लेकर पंजाब से आगे रहा। हरियाणा में गरीबी की दर में 4.81 प्रतिशत की कमी दर्ज की गई है। इस रिपोर्ट में यह भी बताया गया है कि गरीबी की दर में कमी का यह रुझान गांवों की अपेक्षा शहरों में अधिक रहा। इससे यह संदेश भी मिलता है कि देश के बड़े शहरों में गरीबी कम हुई है। रिपोर्ट के अनुसार शहरों में अब केवल पांच प्रतिशत लोग ही गरीबी रेखा से नीचे रह गये हैं। ग्रामीण क्षेत्रों में गरीबी का प्रतिशत शहरों की अपेक्षा तीन गुणा अधिक दर्शाया गया है।
इस रिपोर्ट के अनुसार स्वास्थ्य, शिक्षा और अन्य सुविधाओं के धरातल पर भी पंजाब किसी बड़े आयाम का दावा नहीं कर सकता। अन्य सुविधाओं में ईंधन, स्वच्छता, शुद्ध पेयजल, घर, बिजली, सम्पत्ति और बचत हेतु बैंक खातों की संख्या को लेकर आंका गया है। शिक्षा के धरातल पर आज भी पंजाब के 6.72 प्रतिशत बच्चे प्राइमरी की पढ़ाई से आगे नहीं बढ़ पाते। इस चरण पर भी पंजाब पड़ोसी हरियाणा से पिछड़ा है जहां प्राइमरी तक शिक्षा न ले पाने वाले बच्चों का प्रतिशत 5.51 घोषित किया गया है। इसी प्रकार पंजाब में घरों की रसोई में गैस चूल्हों की अनुपलब्धता की स्थिति भी चिन्तनीय दिखाई देती है। पंजाब में आज भी 25 प्रतिशत घर-परिवारों की रसोई में गैस-चूल्हे का इस्तेमाल नहीं होता। प्रदेश के अधिकतर गांवों और कुछ शहरी क्षेत्रों में आज भी 25.33 प्रतिशत घर-परिवारों में खाना पकाने के लिए लकड़ी और उपलों जैसे ईंधन का प्रयोग किया जाता है जबकि देश और प्रदेश के धरातल पर प्राय: ये दावे किये जाते रहते हैं कि प्रत्येक घर की रसोई में गैस सिलेण्डर की उपलब्धता सुनिश्चित की गई है। इस मामले में हिमाचल अपने पड़ोसी राज्यों हरियाणा और पंजाब से पीछे है।
यह सर्वेक्षण रिपोर्ट बेशक 2016 से 2021 के बीच के पांच वर्षों का आंकलन है किन्तु इसके बाद के वर्षों में भी पंजाब को लेकर कोई उल्लेखनीय सुधार के आंकड़े प्राप्त नहीं हुए। पंजाब के पांच ज़िले ऐसे हैं जहां विगत में गरीबी की दर में सर्वाधिक वृद्धि हुई है। ये ज़िले बठिंडा, फरीदकोट, लुधियाना, जालन्धर और रूपनगर हैं। इस काल की पंजाब की सरकार और फिर इसके बाद गठित हुई भगवंत मान की सरकार की ओर से रोज़गार के अधिकाधिक अवसर उपलब्ध कराने, और नौकरियां दिये जाने के दावे तो बहुत किये गये हैं, किन्तु पंजाब और खास तौर पर इन पांच ज़िलों की तकदीर में इस मामले को लेकर कोई उल्लेखनीय प्रगति नहीं हुई है। पंजाब के इन ज़िलों में गरीबी में विस्तार को लेकर अतीत के आंकड़ों में काफी वृद्धि दर्ज की गई है। पंजाब के अन्य ज़िलों में भी इस मामले को लेकर किसी बड़े सुधार का दावा किसी भी ओर से नहीं किया गया, हालांकि मानसा, मोगा, नवांशहर, संगरूर, अमृतसर और होशियारपुर अवश्य ऐसे ज़िले हैं जहां गरीबी दर की प्रतिशतता में कमी दर्ज की गई है, किन्तु इसके बावजूद पंजाब में सामूहिक रूप से 5.37 प्रतिशत से लेकर 7.80 प्रतिशत तक गरीबी के आंकड़े मौजूद हैं।
हम समझते हैं कि बेशक नीति आयोग की इस रिपोर्ट ने गरीबी के आंकड़ों और गरीबों की संख्या के आंकड़ों में सुधार को दर्शाया है परन्तु पंजाब को लेकर जारी किये गये ये आंकड़े आशा की कोई किरण उदित करते प्रतीत नहीं होते। इसके लिए सरकारों को सतत प्रयास जारी रखने होंगे और गरीबी के उन्मूलन के धरातल पर ईमानदारी और प्रतिबद्धता के साथ काम करना होगा। देश में शिक्षा, स्वास्थ्य, स्वच्छता आदि धरातलों पर सुधार तो हुआ ही है। यह लाभ केवल आंकड़ों तक ही सीमित न रहे, अपितु क्रियात्मक धरातल पर दिखना भी चाहिए। इसके लिए सभी स्तरों पर समन्वित और संयुक्त प्रयासों की ज़रूरत होगी।