महिलाओं पर जुल्म के मामले में कार्यवाही हो, केवल राजनीति नहीं

मणिपुर की घटना को लेकर अन्य दलों के साथ कांग्रेस भी भाजपा पर हमलावर है। यह स्वाभाविक है लेकिन क्या इसकी अनदेखी कर दी जाए कि राजस्थान सरकार के एक मंत्री ने जब यह कहा कि हम महिलाओं की सुरक्षा में विफल रहे हैं, और कि उनके खिलाफ जैसे अत्याचार हो रहे हैं, उन्हें देखते हुए हमें मणिपुर के स्थान पर अपने अंदर झांकना चाहिए तो उन्हें बर्खास्त कर दिया गया! मणिपुर, बंगाल,  छत्तीसगढ़, राजस्थान की यौन हिंसा की वीभत्स घटना के बाद महिला उत्पीड़न की अन्य शर्मनाक घटनाओं को लेकर विभिन्न दल एक-दूसरे पर जिस तरह आरोप उछाल रहे हैं, वह सस्ती राजनीति और महिलाओं के खिलाफ होने वाले अपराधों को लेकर बरती जानी वाली संवेदनहीनता ही है। राजनीति के इसी रवैये के कारण महिलाओं के खिलाफ होने वाले अपराधों पर प्रभावी लगाम नहीं लग पा रही है।
निश्चित रूप से नारी विरोधी अपराधों के मामले में बात किसी राज्य विशेष की नहीं है। देश के हर हिस्से में उनके साथ अत्याचार होता रहता है और कई बार तो इतना भयानक कि देश को लज्जित होना पड़ता है, लेकिन राजनीतिक दल, अनेक बुद्धिजीवी और यहां तक कि देश-विदेश के मीडिया का एक हिस्सा भी अपना आक्रोश यह देखकर व्यक्त करता है कि घटना किस दल के शासन में हुई? इसी हिसाब से उनकी संवेदना जागती है। यह निकृष्ट कोटि की संकीर्णता है। आपसी संघर्ष और राजनीतिक-सामाजिक वैमनस्य के चलते महिलाओं का यौन उत्पीड़न दुनिया भर में होता है, लेकिन अपने देश में राजनीतिक क्षुद्रतावश उनके मामले में बड़ी बेशर्मी के साथ दोहरा मानदंड अपनाया जाता है।
देखा जाये तो जब ऐसी घटनाएं होती हैं तब महिलाओं के साथ भीड़ घिनौनी हरकतें करती है, उनके वस्त्र उतारती है। महिलाएं चिल्लाती हैं, मदद की गुहार लगाती हैं, पर कोई उनकी मदद नहीं करता, बल्कि उस भीड़ में शामिल कोई वीडियो बना रहा होता है और अपने मन मुताबिक उस वीडियो को वायरल करता है। जैसे ही वीडियो वायरल होता है, तो न्यायालय के न्यायाधीश सक्रिय हो जाते हैं। वे सारे राजनीतिक दल जिनके राज्य में खुद ही महिलाएं असहाय और असुरक्षित रहती हैं, वे अपनी सुविधानुसार राजनीतिक बयानबाजी करने लगते हैं।
संसद ठप्प कर दी जाती है लेकिन कोई इस बात पर ध्यान नहीं देता कि आखिर यह समाज इतना नीचे कैसे चला गया? इतना पतित कैसे हो गया?उसे इतना पतित करने वाला कौन है, उसे ढूंढा नहीं जाता और न इसका इलाज किया  जाता है बल्कि इसे मुद्दा बनाकर अपने हिसाब से आने वाले विधानसभा व लोकसभा चुनाव में राजनीतिक रोटियां सेंकने की तैयारी की जाने लगती है। सच्चाई यह है कि मणिपुर में जो कुछ हुआ, नि:संदेह उससे पूरा देश हिल गया लेकिन बंगाल, राजस्थान, छत्तीसगढ़ आदि राज्यों में भी तो ऐसे कांड हुए। झारखण्ड में भी कई लड़कियां यौन शोषण का शिकार हुईं, मार दी गईं, लड़कियों और महिलाओं पर होने वाले अत्याचारों पर विभेद क्यों हो?
राजस्थान व छत्तीसगढ़ में जब इस प्रकार की घटना घटे तो कांग्रेस वाले मुंह क्यों सिल लेते हैं? बंगाल में जब महिलाओं के साथ मणिपुर जैसी घटना घट गई तो तृणमूल कांग्रेस और ममता बनर्जी तथा इनसे सहयोग लेकर भाजपा को 2024 में परास्त करने का ख्वाब देखने वाली पार्टियां चुप्पी क्यों लगा गई? राजस्थान में तो कांग्रेस के ही एक कैबिनेट मंत्री ने सदन में ही अपनी सरकार की क्लास लगा दी और कह दिया कि राजस्थान में कोई महिला सुरक्षित नहीं। महिला अपराध में राजस्थान इस देश में नंबर एक पर है। उस मंत्री के इस सच बोलने का परिणाम क्या हुआ! उसे मंत्रिमंडल से ही धक्का मारकर निकाल दिया गया। क्या गजब की राजनीति है।
मतलब यहां अगर दलितों-आदिवासियों या उनकी बेटियों व महिलाओं पर अत्याचार हो तो राजनीतिक दल यह देखते हैं कि वहां किसकी सरकार है, और जो वहां का विरोधी दल है, वो इस मुद्दे को अपने हिसाब से उठाता है। बाकी सभी चुप्पी लगा जाते हैं। इस प्रकार की निर्लज्जता की सीख राजनीतिक दलों को कहां से मिलती है, पता नहीं। कम से कम इस प्रकार की घिनौनी हरकत तो बंद होनी चाहिए।
सच्चाई यह है कि अपने देश में इस प्रकार की घटना कोई पहली बार नहीं हो रही, और कोई राजनीतिक पार्टी अथवा न्यायालय इस बात का दावा भी नहीं कर सकता  कि इस देश में इस प्रकार की घटनाएं आने वाले समय में नहीं होंगी। याद करिये दिल्ली का निर्भया कांड और याद करिये असम में कई वर्ष पूर्व एक आदिवासी महिला के साथ हुआ वो घिनौना अत्याचार, जिसको लेकर पूरा देश हिल गया था। क्या वो घटनाएं छोटी थीं? अगर उस घटना के बाद भी मणिपुर और बंगाल में इस प्रकार की घटना घट गई तो यह बताने के लिए काफी है कि अपना देश महिलाओं को सुरक्षा देने में कितना नीचे गिर चुका है।
दरअसल, आजकल देखा जा रहा है कि अपने समाज में नाना प्रकार की विकृतियों ने जन्म ले लिया है। पहले गांव-मुहल्ले के एक परिवार में जैसे ही किसी बालक या बालिका का जन्म होता था, तो उस नवजात शिशु का एक प्रकार का रिश्ता भी सामाजिक तौर पर जन्म ले लिया करता था। आज क्या है? सभी लेडीज व जेन्टलमेन बनने में विश्वास कर रहे हैं और रिश्ते गायब होते चले गये है। दूसरा सब के हाथ में मोबाइल है। वे इस मोबाइल से कर क्या रहे हैं, यह न तो बड़ों को पता है और न छोटों को। परिवार के लोग बड़े आराम से इंटरनेट के साथ छोटे बच्चों को मोबाइल थमा रहे हैं, और बच्चे इसी के साथ बच्चे न होकर अधकचरे जा रहे हैं, जिसका प्रभाव यह है कि समाज नीचे गिरता चला जा रहा है। आज किसी भी स्कूल में नैतिक शिक्षा नहीं दी जा रही। सभी बच्चों को एटीएम मशीन बनाने की शिक्षा दी जा रही है। बच्चे अपने ही देश के महान वीर बालक-बालिकाओं व देशभक्तों के जीवन और उनकी कीर्तियों से अनभिज्ञ हैं और इंटरनेट पर पड़े अधकचरे ज्ञानों से स्वयं को परिपक्व करने में लगे हैं। नतीजा वे बचपन से ही मानसिक विकृतियों का शिकार हो रहे हैं। पहले दादा-दादी व नाना-नानी से जुड़कर बच्चे कविता-कहानियों के माध्यम से स्वयं को मजबूत करते थे। ऐसे में इस प्रकार की घटनाओं पर रोक लगाना मुश्किल ही नहीं, बल्कि नामुमकिन है। कल असम, फिर दिल्ली, उसके बाद मणिपुर और अब राजस्थान, बंगाल, छत्तीसगढ़ जैसे राज्यों में जो घटनाएं घट रही हैं, हो सकता है कि कल इस पंक्ति में कोई दूसरा राज्य आ खड़ा हो। इसलिए सबसे पहले राजनीतिक दलों के नेता स्वयं नैतिक रूप से मजबूत हो। विद्यालयों में नैतिक शिक्षा को बढ़ावा दें। किसी भी हालत में राजनीतिक दल अपनी पार्टी का टिकट उन लोगों को न दें जिन पर घटिया स्तर के केस चल रहे हो।