दक्षिण देशों की वैश्विक आवाज़ बनना चाहता है भारत

जी-20 की अध्यक्षता करते हुए भारत ने वैश्विक दक्षिण देशों की आवाज़ बनने की कोशिश की है। विदेश मंत्री एस. जयशंकर ने संयुक्त राष्ट्र में दिये गये अपने सम्बोधन में भी वैश्विक दक्षिण के देशों की बात रखी है। इस समय भारत में एक मज़बूत सरकार है और उसका नेता भी उतना ही मज़बूत है। भारत सरकार के विदेश मंत्री एस. जयशंकर विदेश मामलों के बड़े जानकार हैं। जयशंकर न केवल अपने देश की बल्कि वैश्विक दक्षिण देशों की बात भी अंतर्राष्ट्रीय मंचों पर मज़बूती से रख रहे हैं और पूरी दुनिया इसे देख रही है। वह अमरीका, यूरोप, रूस और अन्य विकसित देशों को बड़ी साफगोई से जवाब दे रहे हैं। उन्होंने बड़ी कुशलता से यह बात विश्व को बता दी है कि कुछ देश अपनी सहूलियत को देखकर पर्यावरण, लोकतंत्र, अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता, आंतरिक मामलों में दखल, आतंकवाद और साम्प्रदायिक हिंसा पर अपनी प्रतिक्रिया देते हैं। कनाडा में जिस तरह से भारत के वांछित अपराधियों को शरण दी जा रही है, उसे भारत अपने आंतरिक मामलों में हस्तक्षेप की तरह देखता है ।
भारत ने कनाडा के बहाने विकसित देशों को समझा दिया है कि अपनी सुविधा के अनुसार ऐसे मामलों पर प्रतिक्रिया देने का चलन अब और बर्दाश्त नहीं किया जा सकता। पंडित जवाहरलाल नेहरू की गुटनिरपेक्षता की नीति कुछ हद तक वैश्विक दक्षिण देशों को देखते हुए ही बनाई गई थी। नेहरू ने एशिया और अफ्रीका के गरीब देशों के साथ एक गठबन्धन बनाने की कोशिश की थी, लेकिन उस समय भारत सहित ये देश बहुत कमज़ोर थे। उस समय रूस और अमरीका के गुट इतने मज़बूत थे कि इन देशों की ताकत उनके सामने कुछ भी नहीं थी। आज भारत के लिए बड़ी समस्या यह है कि एक तरफ वह अमेरिका, यूरोप और दूसरे विकसित देशों के साथ गहरे सम्बन्ध बनाने की कोशिश कर रहा है तो दूसरी तरफ  उसे इन देशों के शोषण और उत्पीड़न से वैश्विक दक्षिण देशों को बचाने की ज़िम्मेदारी भी उठानी पड़ रही है। ये देश गरीब देशों के प्राकृतिक संसाधनों पर कब्ज़ा करके अपना विकास करना चाहते हैं, लेकिन बदले में इन देशों को कुछ देना नहीं चाहते।   
अन्तर्राष्ट्रीय राजनीति में अगर शक्ति प्राप्त करनी है तो दूसरे देशों से भागीदारी एक रास्ता है और भारत वैश्विक दक्षिण देशों के साथ यही कर रहा है। किसी भी देश के साथ दूसरे देश की भागीदारी साझे हितों के आधार पर ही आगे बढ़ सकती है और स्थायी रूप भी ले सकती है। जैसे रूस के साथ भारत की दोस्ती साझे हितों के आधार पर ही पिछले 70 सालों से चली आ रही है। स्वार्थों और शोषण पर आधारित भागीदारी कभी भी स्थायी रूप नहीं ले सकती और कभी भी खत्म हो सकती है। वैश्विक दक्षिण देशों की बात करें तो हम इन्हें भौगोलिक रूप से समझने की बजाय आर्थिक रूप से समझे तो बेहतर होगा। मध्य-पूर्व एशिया, अफ्रीका और दक्षिण अमरीका के विकासशील देश इस श्रेणी में आते हैं। भारत इन देशों की समस्याओं और आवश्यकताओं को समझ कर इनके साथ एक सांझेदारी विकसित करने की कोशिश कर रहा है । 
चीन भी वैश्विक दक्षिण देशों में आता है लेकिन अब वह एक विकसित देश बन चुका है। उसकी सांझेदारी स्वार्थ और शोषण पर आधारित है और यह बात इन देशों को समझ आ रही है। चीन अभी इस मामले में भारत आगे है क्योंकि भारत ने इन देशों के महत्व को समझने में बहुत देर कर दी है। चीन इन देशों के महत्व को पहचान कर बहुत पहले ही इस तरफ कदम बढ़ा चुका है। उसने बीआरआई योजना की आड़ लेकर इन देशों को अपने कज़र् के जाल में फंसा लिया है। चीन इन देशों के प्राकृतिक संसाधनों पर कब्ज़ा करके इनका शोषण कर रहा है। अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर इन देशों की आवाज़ किसी भी मंच पर सुनी नहीं जाती है। ये देश गरीब और कमज़ोर होने के कारण वैश्विक राजनीति में अलग-थलग दिखाई देते हैं। भारत की पहली कोशिश भी यही है कि वह इन देशों की आवाज़ बन सके। भारत इन देशों की समस्याओं से दुनिया को परिचित कराना चाहता है और यह भी चाहता है कि ये देश खुद आगे बढ़कर इस काम को करें। जी-20 में अफ्रीकन यूनियन को स्थायी सदस्य के रूप में शामिल कराना भारत की इसी कोशिश का नतीजा है। इन देशों को विकसित देशों द्वारा पैदा की गई समस्याओं से जूझना पड़ता है जबकि इनका इन समस्याओं से कोई मतलब नहीं होता। रूस-यूक्रेन युद्ध का इन देशों से दूर-दूर तक कोई सम्बन्ध नहीं है, लेकिन सबसे ज्यादा मार इन्हीं देशों पर पड़ रही है। इस युद्ध के कारण इन देशों में गरीबी और भुखमरी बढ़ती जा रही है।
भारत जी-20 को संयुक्त राष्ट्र का वैकल्पिक संगठन बनाने की कोशिश कर रहा है क्योंकि संयुक्त राष्ट्र में इन देशों का महत्व न के बराबर है। वैश्विक दक्षिण देशों की समस्याएं गरीबी, अशिक्षा, बीमारी, अराजकता और गुलाम मानसिकता है। ये देश लम्बे समय तक वैश्विक उत्तर देशों के उपनिवेश रहे हैं। इन देशों का वैश्विक उत्तर के देशों ने बहुत शोषण और उत्पीड़न किया है।  जब भारत पूरी ताकत से इन देशों की आवाज़ बन रहा है तो इनको भी भारत के खड़ा होना चाहिए। (युवराज)