अनुचित है टकराव की नीति

भगवंत मान की ‘आप’ सरकार नित्य-प्रति हर तरफ टकराव की नीति अपना कर प्रदेश का प्रत्येक पक्ष से भारी नुकसान कर रही है। प्रतिदिन अन्य पार्टियों के राजनीतिक नेताओं संबंधी अनावश्यक बयानबाज़ी करने से प्रदेश का राजनीतिक माहौल तो खराब होता ही है, इसके साथ एक-दूसरे के विरुद्ध दुष्प्रचार का दौर भी चलना शुरू हो जाता है। स्वयं को तथा अपने साथियों को दूध के धुले बताना तथा विपक्षी पार्टियों के नेताओं को भ्रष्टाचारी कहना किसी भी तरह से बड़प्पन नहीं है। इसलिए भी कि विगत डेढ़ वर्ष से पंजाब में भी तथा दिल्ली में भी आम आदमी पार्टी के ज्यादातर नेताओं पर जिस तरह के आरोप लगे हैं तथा जिस तरह उनमें से कइयों के ‘कारनामे’ सामने आये हैं, उससे भी सम्पूर्ण परिदृश्य सामने आ जाता है। दिल्ली में ‘आप’ के बड़े नेताओं तथा मंत्रियों पर भ्रष्टाचार के आरोप लगा कर चिरकाल से उन्हें जेलों में डाला गया है, जिस तरह घोटाले सामने आ रहे हैं, उनकी जांच करते हुए कई बड़े मंत्रियों की अब तक ज़मानतें भी नहीं हो सकीं क्योंकि इन मामलों की परतें-दर-परतें नित्य-दिन खुलती जा रही हैं।
यदि इस पार्टी के पंजाब के नेता दूध के धुले हुए होते तो अब तक उन्हें अनेक प्रकार की आलोचनाओं का सामना न करना पड़ता। दबाव तथा डराने की राजनीति जारी रखने, विपक्षी पार्टियों के नेताओं के पीछे पुलिस लगाने, अपनी विजीलैंस द्वारा निराधार आरोप लगाने, उनके वारंट निकालने तथा जेलों में बंद करने ने राजनीतिक विरोधों को दुश्मनियों में बदल दिया है। अति-गम्भीर मामले हल न होने पर इनके संबंध में दावे किए जाने ने सरकार को अति-महत्त्वहीन करके रख दिया है। पंजाब के लिए पानी जीवनधारा है, इस पर उठा विवाद बेहद गम्भीर है परन्तु मुख्यमंत्री जिस तरह नित्य-प्रतिदिन विपक्षी नेताओं को इस मामले पर बहस के लिए चुनौतियां दे रहे हैं, उनसे भी प्रतीत होता है कि वह इसका हल निकालने के मार्ग पर चलने की बजाय इसे और जटिल बनाने का ही यत्न कर रहे हैं। आम आदमी पार्टी के दिल्ली के बड़े नेताओं का पंजाब के साथ उतना ही प्यार है, जितना वे हरियाणा के बारे में दिखा रहे हैं। यहीं बस नहीं, पंजाब के सिर पर कुछ राज्यों में हो रहे चुनाव लड़ने की भी तैयारी की जा रही है जबकि आज ज़रूरत प्रदेश के संबंध में बेहद प्रतिबद्ध होने की है।
राजनीतिक पार्टियों के नेताओं को मुख्यमंत्री की ऐसी बयानबाज़ी तथा दी गईं चुनौतियों की चिन्ता नहीं करनी चाहिए, अपितु स्वयं एकजुट होकर इस गम्भीर मामले के संबंध में संयुक्त राय बनानी चाहिए, जो पंजाब के हितों की रक्षा कर सके। केन्द्र ने भिन्न-भिन्न कारणों के दृष्टिगत प्रदेश के अलग-अलग क्षेत्रों के लिए दी जाने वाली ग्रांटों पर रोक लगाई हुई है, जिनके बारे में प्रभावशाली ढंग से अपना पक्ष पेश करने की बजाय प्रदेश सरकार पहलवानी कुश्ती के लिए मैदान में उतरने को तत्पर दिखाई दे रही है। ऐसे दृष्टिकोण से उसे अब तक कुछ भी हासिल नहीं हुआ तथा न ही भविष्य में होगा। पंजाब के राज्यपाल के साथ मुख्यमंत्री ने छत्तीस का आंकड़ा क्यों बनाया हुआ है, यह बात भी किसी समझदार व्यक्ति की समझ से बाहर है। लोगों द्वारा चुनी हुई सरकार ने किसी संविधान या अनुशासन के साथ चलना होता है। उनको दृष्टिविगत करना उन्हें मार्ग से भटका सकता है। ऐसा कुछ ही प्रदेश में होता दिखाई दे रहा है। राज्यपाल भिन्न-भिन्न पार्टियों तथा वर्गों द्वारा उनकी ओर से उठाये गये मामलों के प्रति सरकार से स्पष्टीकरण मांग सकते हैं परन्तु उनके पत्रों का महीनों तक जवाब ही न देना मुख्यमंत्री द्वारा ़गैर-संवैधानिक बात है। सरकार चलाने या विधानसभा की कार्रवाई के लिए भी कुछ नियमों का पालन करना पड़ता है। यदि ऐसा नहीं किया जायेगा तो टकराव भी बढ़ेंगे तथा सरकार के कामों में भी बाधा पड़ती रहेगी। 
ऐसा ही एक बड़ा विवाद विधानसभा के बजट सत्र संबंधी  भी पड़ा हुआ है। यह सत्र 3 मार्च से 22 मार्च, 2023 तक चला था तथा बजट से संबंधित कामकाज खत्म करने के बाद सत्र पूरा हो गया था परन्तु उसे पुन: कुछ मास के बाद बुलाने को उचित नहीं ठहराया जा सकता। इस संबंध में राज्यपाल ने इसके संवैधानिक न होने के बारे में पत्र भी लिखा था परन्तु प्रदेश की सरकार ने इस पर ध्यान नहीं दिया तथा इसमें से चार बिल भी पारित कर दिये थे, जिनकी फाइलें अभी तक राज्यपाल की मेज़ पर पड़ी हैं। इसी तरह अब एक बार फिर पंजाब सरकार द्वारा 20 से 21 अक्तूबर को बजट सत्र की कड़ी के रूप में विधानसभा सत्र बुला लिया गया है, जिसे राज्यपाल द्वारा पुन: ़गैर-संवैधानिक कहा जा रहा है। समाचारों के अनुसार इसमें जी.एस.टी. के संबंध में ट्रिब्यूनल स्थापित करने के लिए भी विधेयक लाया जा रहा है। इसे पारित न किये जाने के कारण सरकार के राजस्व पर ब्रेक लग सकती है, क्योंकि सत्र बुलाने के विधि-विधान संबंधी राज्यपाल ने आपत्ति प्रकट की है। यदि सरकार के हठ के कारण इसमें कुछ बिल पारित भी किये जाते हैं, परन्तु बाद में राज्यपाल द्वारा अहम बिलों को स्वीकृति न दी गई तो सरकार के लिए काम चलाना कठिन हो जाएगा। बिना योजनाबंदी के की जाती अनियोजित कारगुज़ारी का हश्र ऐसा ही होता है, परन्तु इसमें प्रदेश का कितना नुकसान होगा तथा उसकी भरपाई कैसे की जा सकेगी, इस के लिए उत्तरदायी तो प्रदेश सरकार को ही होना पड़ेगा, इसलिए उसे अपना हठपूर्ण व्यवहार बदलना चाहिए। 

-बरजिन्दर सिंह हमदर्द