नहरी पानी के वितरण में हुए अन्याय को समझें ‘आप’ नेता

शिबली के एक फूल से मनसूर की चीखें निकली,
तुमने पत्थर जो उठाया तो मेरी जान गई।
(लाल फिरोज़पुरी)
कुछ लिखने से पहले स़ूफी इतिहास की एक घटना का ज़िक्र करना ज़रूरी प्रतीत हो रहा है। मनसूर एक प्रमुख स़ूफी ़फकीर थे जो पारसी से मुसलमान बने थे। उनका जन्म ईरान में हुआ था। वह जुनैद ब़गदादी तथा अबुल हुसैन सूरी आदि स़ूफी दरवेशों की संगत में अद्वैतवाद (परमात्मा के अलावा कोई दूसरा नहीं) में विश्वास करने लगे व ‘अनहल हक’ का नारा बुलंद करने लगे, जिसका अर्थ था ‘मैं ही सच हूं।’ कट्टरपंथी मौलानाओं ने उन्हें क़ािफर घोषित करके  उन पर अत्याचार किया, 8 वर्ष कैद में रखा तथा अंतत: फांसी लगाने से पहले संगसार (भाव जीवित रहते शहर वासियों द्वारा पत्थर मारने) की सज़ा दी गई। जब लोग पत्थर मार रहे थे तो मनसूर अडिग होकर सहन कर रहे थे तथा अनहल हक का नारा बुलंद कर रहे थे। अचानक इसी समय वहां से एक अन्य स़ूफी, शेख शिबली जो मनसूर के दोस्त थे गुज़रे, उन्होंने देखा तथा सोचा यदि पत्थर न मारा तो शासक बर्दाश्त नहीं करेंगे, परन्तु दोस्त को पत्थर कैसे मारूं? उन्होंने एक फूल पत्थर की भांति मनसूर की ओर मारा। मनसूर चीख उठा तथा कहा दोस्त जितना दर्द तेरे इस फूल से हुआ है, उतना दर्द तो ़गैरों के सैकड़ों पत्थर लगने से भी नहीं हुआ। भाषा विभाग के पंजाबी विश्वकोष में लिखा गया है कि इस घटना के बाद शिबली पागल हो गया था। वास्तव में इस घटना का ज़िक्र इसलिए करना पड़ा क्योंकि पंजाब के पानी के मामले पर पंजाब से ही राज्यसभा सांसद डा. संदीप पाठक का बयान मनसूर को शिबली के फूल मारने से भी बड़ा दर्द देने वाला है।
छत्तीसगढ़ में जन्मे डा. संदीप पाठक को सिर्फ पंजाब से राज्यसभा सांसद ही नहीं बनाया गया, वह ‘आप’ के पंजाब  सहायक प्रभारी भी हैं। वह पंजाब पर सत्तारूढ़ पार्टी जिसके सिर पर इस समय पंजाब के हितों की रक्षा की ज़िम्मेदारी है के महासचिव संगठन हैं। कोई माने या न माने पर सच्चाई यह है कि उनकी ताकत कांग्रेस के के.सी. वेणुगोपाल तथा भाजपा में उनके समकक्ष बी.एल. सन्तोष से भी अधिक है। हमारे अनुसार वह आम आदमी पार्टी में अरविन्द केजरीवाल के बाद सबसे अधिक शक्तिशाली नेता हैं। वह गुजरात के भी प्रभारी हैं तथा हिमाचल के सह-प्रभारी भी हैं। हमारी जानकारी के अनुसार आम आदमी पार्टी की टिकटों के वितरण संबंधी अरविन्द केजरीवाल की स्वीकृति के बिना भी टिकटों का अंतिम फैसला भी वह ही करते हैं। वह अधिक पढ़े-लिखे भी हैं तथा वह आक्सफोर्ड यूनिवर्सिटी एवं एम.आई.टी. में अनुसंधानकर्ता भी रहे हैं।
स्वाभाविक है कि इतना योग्य तथा इतना शक्तिशाली व्यक्ति जो पंजाब का प्रतिनिधि है, जिसका पहला फज़र् ही पंजाब के हितों की रक्षा करना है, जबकि अपने फज़र् को भूल कर सिर्फ आगामी चुनावों को मुख्य रख कर पंजाब के हितों को भूल कर पंजाब के हितों को नुक्सान पहुंचाने वाली गोल-मोल बाते कहते हैं तो उसका दर्द मनसूर को शिबली के फूल मारने से भी अधिक महसूस होता है। 
यहां सवाल उठ सकता है कि डा. संदीप पाठक के छत्तीसगढ़ में जमपल होने के कारण पंजाब से राज्यसभा में भेजने पर एतराज़ क्यों? राजनीतिक पार्टियों तो ऐसा करती ही रहती हैं। सबसे बड़ी उदाहरण तो पूर्व प्रधानमंत्री डा. मनमोहन सिंह की है, उन्हें भी तो पंजाबी होने के बावजूद असम से राज्यसभा  सदस्य बनाया गया था। उचित सवाल है परन्तु यदि एक पार्टी ने ़गलत किया तो दूसरी भी वैसी ही गलती करे तो वह ठीक नहीं होता, परन्तु इस समय बात यह नहीं कि छत्तीसगढ़ निवासी को पंजाब से राज्यसभा सांसद क्यों बनाया गया? सवाल तो यह है कि डा. संदीप पाठक अब आप पंजाब के प्रतिनिधि हैं, आपके पास आपकी पार्टी में बहुत बड़ी ताकत है। कृप्या अपना फज़र् न भूलें, आपका फज़र् है कि पंजाब के हितों की रक्षा के लिए डट कर खड़ा होना। ज़रा पंजाब के पानी संबंधी विस्तार में पढ़ें कि अन्तर्राष्ट्रीय तौर पर स्वीकृत तथा भारत में लागू रिपेरियन कानून के तहत तीन नदियों के पानी का मालिक सिर्फ और सिर्फ पंजाब है। हरियाणा, राजस्थान तथा दिल्ली का इस पर कोई भी हक नहीं। भारतीय संविधान की 7वीं सूची की धारा 17 के अनुसार पानी स्टेट (राज्य) का मामला है। केन्द्र सरकार को ऐसी किसी नदी के पानी के मामले में हस्तक्षेप देने का कोई अधिकार नहीं जो रिपेरियन तौर पर किसी प्रदेश से सांझा न हो। यदि हरियाणा, राजस्थान तथा दिल्ली को पंजाब से पानी चाहिए तो पंजाब  के अपने इस्तेमाल के बाद शेष बचे पानी को वे हमसे उसकी कीमत देकर ले सकते हैं, जैसे आपकी पार्टी हिमाचल से पानी कीमत देकर ले रही है। आप पंजाब के प्रतिनिधि हैं, थोड़ा दृष्टिपात करें कि पंजाब पुनर्गठन एक्ट में जोड़ी गईं धाराएं 78,79 तथा 80 किसी भी अन्य राज्य के विभाजन के समय नहीं दर्ज की गईं। यह बिल्कुल अन्याय है तथा पंजाब के अधिकारों का हृनन करने के लिए केन्द्र को अनधिकृत ताकतें देने के लिए डाली गई हैं। अब पंजाब में आपकी सरकार है। पूर्व सरकारें पंजाब के लिए इन्स़ाफ लेने में विफल रही हैं, अब आप पंजाब के प्रतिनिधि हैं, पंजाब के अधिकारों के लिए ये धाराएं खत्म करवाने के लिए अपनी सामर्थ्य को प्रयोग करें न कि स्वयं ही केन्द्र से कहें कि वह कोई फैसला करे। पंजाब के विनाश में हिस्सा डालने वाले ‘अपने’ तो पहले ही बहुत हैं। अमीर कज़लबाश के शब्दों में :
हम न सुकरात न मनसूर न ईसा लेकिन
जो भी कातिल है हमारा ही तम्मनाई है।
सिर्फ इरादे और अरदास ही क़ाफी नहीं
पंजाब के मुख्यमंत्री भगवंत मान के नेतृत्व में श्री दरबार साहिब में पंजाब को नशा मुक्त बनाने की अरदास करके प्रण लिया गया है। इस समागम में कई त्रुटियां तथा इससे राजनीतिक लाभ लेने के आरोप भी लग रहे हैं। नि:संदेह प्रथम दृष्टिकोण से इरादे उचित भी प्रतीत होते हैं परन्तु बात तो परिणाम की है। इससे पहले भी एक मुख्यमंत्री ने गुटका साहिब पर हाथ रख कर नशों को चार सप्ताह में खत्म करने की शपथ ली थी। पंजाबियों ने विश्वास भी किया था, परन्तु परिणाम सभी के सामने है। अब भी हम तो यही अरदास करते हैं कि यह अरदास प्रवान हो जाए, तथा पंजाब नशों की  गिरफ्त से बाहर निकल जाए, परन्तु राजनीतिज्ञों के वायदों, कथनों तथा गारंटियों का जो अनुभव रहा है, उसके दृष्टिगत विश्वास करना आसान नहीं प्रतीत होता। आम आदमी पार्टी ने पहले कुछ मास में नशा खत्म करने की गारंटी दी थी। यह गारंटी किसी अन्य ने नहीं, स्वयं पार्टी प्रमुख अरविन्द केजरीवाल ने दी थी, परन्तु पिछले डेढ़ वर्ष में नशा कम नहीं हुआ अपितु इसमें वृद्धि हुई है। पंजाब तथा हरियाणा हाईकोर्ट के सुयोग्य न्यायाधीश ने अभी पिछले सप्ताह ही टिप्पणी की है, जो कानों में गूंज रही है, क्या लगता है कि पुलिस भी ड्रग माफिया के साथ मिली हुई है। इसके बावजूद पुलिस अधिकारी वहीं के वहीं हैं। यह बात सिर्फ इरादे या दावे या अरदास की नहीं, अमल की है, परिणाम की है। शायर अनवर शऊर के लफ्ज़ों में : 
‘शऊर’ सिर्फ इरादे से कुछ नहीं होता, 
अमल है शरत इरादे सभी को होते हैं।
किसान यूनियनों में एकता एक अच्छी शुरूआत
किसान मोर्चा जीत कर हारने के बाद संयुक्त किसान मोर्चा बिखर गया था। जिसका परिणाम है कि पंजाब की स्थिति तथा ताकत और भी कमज़ोर पड़ गई दिखाई दे रही है। पंजाब की मांगें और अधिकार जिनमें पानी का मलकीयत, चंडीगढ़ व अन्य पंजाबी बोलते इलाके, पंजाबी जुबान का हक, पाकिस्तान के साथ पंजाब की सीमा द्वारा व्यापार खोलने का मुद्दा, राज्यों के अधिकार और अन्य अनेक मामलों में पंजाब हारता तो क्या बोलता भी नज़र नहीं आ रहा था। क्योंकि पंजाब की राजनीतिक पार्टियां पंजाब, पंजाबी और पंजाबियत की अलंबरदार नहीं रहीं। उनके लिए सिर्फ वोट लेना और जीतना ही अंतिम और पहला निशाना बन गया है।
संयुक्त किसान मोर्चे ने जिस जिंदादिली के साथ आंदोलन चलाया था, वह अपनी मिसाल खुद है। इसलिए यदि पंजाब के किसान संगठन फिर एक होकर पंजाब के सभी लोगों को साथ लेकर पंजाब, पंजाबी और पंजाबियत की लड़ाई के लिए आगे आ जाएं तो यह पंजाब के लिए एक शुभ संकेत ही नहीं, शुभ शगुन भी माना जाएगा।
32 किसान यूनियन के संयुक्त किसान मोर्चे ने ज़मीनी हकीकत को समझते हुए 3 प्रमुख किसानों संगठनों के साथ एकता करने के लिए 3 अलग-अलग पांच सदस्यीय कमेटियां बनाई हैं। बलवीर सिंह राजेवाल के नेतृत्व वाले 5 किसान संगठनों के साथ मनजीत सिंह धनेर, रमिंदर सिंह पटियाला, सतनाम सिंह बहिरू, बलदेव सिंह लतारा और रुलदू सिंह मानसा पर आधारित कमेटी ने बात की और मामला 99.9 प्रतिशत पूरा हो गया है। जबकि कीर्ति किसान यूनियन के पन्नू-पंधेर गुट के साथ हरिंदर सिंह लक्खोवाल, सतनाम सिंह साहनी, कुलवंत सिंह संधू, बलदेव सिंह निहालगढ़ और रणजीत सिंह बाजवा की कमेटी बात कर रही है। गिले-शिकवे दूर हो चुके हैं। उम्मीद है कि मामले का समाधान हो जाएगा। जगजीत सिंह ढल्लेवाल के नेतृत्व वाले संयुक्त किसान मोर्चा (़गैर-राजनीतिक) के साथ बलविंदर सिंह मल्ली नंगल, बलकरन सिंह बराड़, बूटा सिंह शादीपुर, हरबंस सिंह संघा और मनजीत सिंह राय की पांच सदस्यीय कमेटी की अगले कुछ दिनों में बात होने की संभावना है। वैसे इस दौरान पता चला है कि डल्लेवाल और राजेवाल के संबंधों में जमी बर्फ भी कुछ पिघली है। ज़फर मलीहाबादी के लफ्ज़ों में :
दिलों में हुब्ब-ए-वतन है अगर तो एक रहो।
निखारना ये चमन है अगर तो एक रहो।
(हुब्ब-ए-वतन —देश का प्यार)
-1044, गुरु नानक स्ट्रीट, समराला रोड़, खन्ना।
मो-92168-60000