चौतरफा घिरी सरकार

पंजाब में भगवंत मान के नेतृत्व वाली आम आदमी पार्टी की सरकार को प्रशासन चलाते हुए 18 मास हुए हैं। इतने समय में ही यह सरकार चौतरफा घिरी दिखाई देने लगी है, जिस तरह यह दिशाहीन हुई दिखाई देती है, वह प्रदेश के लिए ़खतरे की घंटी है। यदि सरकार विधानसभा के कामकाज को भी उचित ढंग से नहीं चला सकती तो वह चुनौतियों में घिरे प्रदेश का क्या और किस तरह नेतृत्व कर सकेगी, यह विचार करने वाली बात है। जिस तरह का प्रभाव इसने अभी बुलाए गए सत्र के दौरान दिया है, उसने इसे कमज़ोर करके रख दिया है।
इसकी ओर से 3 मार्च, 2023 को बुलाए गए बजट सत्र को समय-समय पर बढ़ाए जाने पर राज्यपाल श्री बनवारी लाल पुरोहित ने आपत्ति व्यक्त की थी तथा इस प्रक्रिया को असंवैधानिक करार दिया था। इसी कारण ही राज्यपाल ने पिछले 19-20 जून को बढ़ाए गए सत्र में पारित किए विधेयकों की स्वीकृति रोक ली थी। इस पर सरकार राज्यपाल के साथ बहस पर उतर आई थी तथा उनके इस फैसले पर किन्तु-परन्तु किया था, परन्तु इसके बावजूद मान सरकार ने बजट सत्र को ही एक बार फिर आगे बढ़ाने की बात करते हुए पुन: 20 से 21 अक्तूबर को विधानसभा सत्र बुला लिया, परन्तु इसके शुरू होने से पहले ही बुलाए गए इस दो दिवसीय सत्र को राज्यपाल ने पुन: असंवैधानिक करार दे दिया था तथा उन्होंने यह भी चेतावनी दी थी कि इसमें पारित किए जाने वाले विधेयकों को वह स्वीकृति नहीं देंगे। उन्होंने यह भी कहा था कि यदि सरकार ने फिर ़गैर-कानूनी कार्रवाई जारी रखी तो वह राष्ट्रपति को शिकायत करने के साथ-साथ देश के संविधान के अनुसार और कदम भी उठाने के लिए पाबंद होंगे, परन्तु इस पत्र के बाद भी सरकार ने निडरता दिखाते हुए सत्र के पहले दिन की कार्रवाई पूरी कर ली, जिस पर विपक्ष के नेता स. प्रताप सिंह बाजवा ने आपत्ति व्यक्त करते हुए कहा कि सरकार को पहले यह स्पष्ट कर लेना चाहिए कि यह सत्र राज्यपाल के कहने अनुसार असंवैधानिक तो नहीं है? परन्तु स्पीकर ने इस सत्र को पूरी तरह संवैधानिक बताया तथा कार्यवाही जारी रखने पर ज़ोर दिया। यदि सरकार अपनी पहुंच में इतनी ही स्पष्ट थी तो मुख्यमंत्री ने पहले ही दिन इसे बीच में समाप्त करने की घोषणा क्यों की तथा इस मामले पर सर्वोच्च न्यायालय तक पहुंच करने की बात क्यों कही? इससे स्पष्ट है कि सरकार की पहुंच अंधेरे में तीर मारने के समान है। उसने अब तक कई अन्य महत्त्वपूर्ण मामलों के प्रति भी इसी तरह का रवैया अपनाए रखा है। यदि मुख्यमंत्री ज़ोर-शोर से भ्रष्टाचार की शिकायतों संबंधी ठोस कदम उठाने की बात भी करते हैं तो अब तक उन्होंने अपने कार्यालय में पहुंची लाखों ही शिकायतों पर कार्रवाई करने के स्थान पर केवल अपने कुछेक विरोधियों को सबक सिखाने के लिए, चयनित रूप में ही भ्रष्टाचार संबंधी कार्रवाई क्यों की? यदि वह बार-बार सरकार द्वारा हज़ारों ही नौकरियां दिए जाने का दम भरते हैं तो आज प्रतिदिन अस्थायी कर्मचारियों तथा बेरोज़गार युवाओं द्वारा किए जा रहे प्रदर्शन क्यों नहीं रुक सके? यदि सरकार ने अब तक अरबों रुपए मुफ्त की योजनाओं पर लुटा दिए हैं तो वह इस संबंध में सन्तोषजनक ढंग से जवाब क्यों नहीं दे सके? श्री पुरोहित ने भी मुख्यमंत्री को अपने द्वारा लिखे गए पत्रों में उनकी सरकार द्वारा उठाए गए बे-हिसाब ऋण संबंधी पूछा है, जिसका अभी तक कोई उचित उत्तर आना शेष है। बहुत-से अन्य क्षेत्रों में भी सरकार की कारगुज़ारी घटिया ही रही है।
पिछले 18 मास की अवधि में पंजाब में नशा खत्म होने के स्थान पर इसका प्रचलन ़खतरनाक  सीमा तक बढ़ गया है। ऐसी ही स्थिति प्रदेश की अमन-कानून की है। मूलभूत सुविधाओं तथा प्रदेश के विकास की बात हम इसलिए नहीं करते, क्योंकि सरकार के पास विज्ञापनबाज़ी द्वारा अपना प्रचार करने के अलावा और कुछ बचा दिखाई ही नहीं देता। प्रदेश के सिर पर लगातार ऋण की गठरी भारी करने के साथ-साथ दावों तथा वायदों की झड़ी लगाने को सरकार की कोई सार्थक तथा ठोस नीति नहीं कहा जा सकता। इसलिए सरकार पर ‘हाले कोह नहीं चल्ली ते तिरहाई’ की कहावत उचित लगने लगी है। आगामी समय में इसकी स्थिति क्या होगी, इस संबंध में अब किसी को कोई सन्देह नहीं रहा। ऐसी अनिश्चितता वाले हालात आगामी समय में प्रदेश के लिए और भी घातक सिद्ध होंगे।

—बरजिन्दर सिंह हमदर्द