खुशवंत सिंह की याद में मनाया गया कसौली उत्सव

इस बार भी अक्तूबर माह वाला तीन दिवसीय खुशवंत सिंह उत्सव बुद्धिजीवियों की आमद से गहमा-गहमी का केन्द्र रहा। 13 अक्तूबर से 15 अक्तूबर तक देश-विदेश के सामाजिक, सांस्कृतिक तथा साहित्यिक महारथी अपने-अपने पेपरों पर भाषण द्वारा श्रेताओं के रूबरू हुए। ब्रिटिश कोलम्बिया के उज्जल दुसांझ ने पंजाबी प्यारों की सात समुद्र पार की उडारियों तथा कठिनाइयों का नक्शा खींचा। याद रहे कि उज्जल दुसांझ ब्रिटिश कोलम्बिया का मुख्यमंत्री रह चुका है और वर्तमान में रघबीर सिंह सिरजना की बेटी रचना सिंह उस प्रांत की शिक्षा मंत्री हैं। इसी प्रकार सांस्कृतिक, सामाजिक तथा राजनीतिक महारथी पाराकला प्रभाकर ने विश्व भाईचारे में आ रहे क्रांतिकारी परिवर्तन से पर्दा उठाया तथा जयदीप मुखर्जी तथा राहुल सिंह ने भारत को डेविस कप के फाइनल तक ले जाने वाले खिलाड़ियों की बात की। 
उस उत्सव में बिल्कुल ही अनोखे विषय एयर इंडिया की पहुंच व उपलब्धियों की भी चर्चा हुई और आर. गोपाला कृष्णन ने कज़र् का शिकार हुई प्रमुख एयर लाइन्स तथा एक-दो बैंकों के हवाले से इस व्यवसाय की उंचाइयों व गहराइयों की बात की। अमरजीत सिंह दुल्लत ने अपने निजी अनुभव के आधार पर हैरान करने वाली जासूसी कथाओं पर प्रकाश डाला तथा मणिशंकर अय्यर ने अपने राजनीतिक अनुभव, अपने पारिवारिक सदस्यों के दृष्टिकोण पेश किये। दिनेश ठाकुर तथा प्रशांत रैडी ने नशे के कानून को आधार बना कर दवाईयां बनाने तथा बेचने वालों के सकारात्मक-नकारात्मक पक्ष पेश किये।
एक पूरा सत्र नशाखोरी की उलझनों तथा परहेज़ की खूबियों को भी समर्पित रहा। बिक्रमजीत सिंह ने दान देने तथा सेवा की भावना से मिलने वाली संतुष्टि का गुणगान किया और काडेज़ो ने पूंजीपति होने के गुण तथा चढ़ाई पर व्यंग्य कसा। 
अंजुम हसन का 9वां नावल History Angel (ऐतिहासिक फरिशता) भी चर्चा का विषय रहा जिसमें मुसलमान होने को ‘हम’ तथा ‘वह’ की भावनाओं से देखा जाता है।
यह उत्सव वर्तमान भारत की राजनीतिक तथा सांस्कृतिक उलझनों तक ही सीमित नहीं था। यहां राज बब्बर तथा जुही बब्बर ने बाप-बेटी के निजी वार्तालाप से वर्तमान संस्कृति में आ रहे बदलावों की नाटकीय पेशकारी की। इस प्रकार योगिता शर्मा के गीतों तथा भजनों ने भी खूब रंग बांधा। ‘वह सुबह कभी तो आएगी’ की आशा देकर। उम्मीद है कि कसौली उत्सव चंडीगढ़ वाले रंधावा उत्सव की भांति स्वर्गीय खुशवंत सिंह की सदा ही याद दिलाता रहेगा। 
दुबई से लौटी अज़ीज़ जोड़ी
हमारे बड़े परिवार के प्रसिद्ध सदस्यों दिलदार तथा सुल्ताना की जोड़ी की ताज़ा दुबई यात्रा वहीं के समुदाय व समाज के अनूठे किस्सों का आधार है। सबसे बड़ी बात यह कि उस देश में पुलिस नाम की कोई चीज़ नहीं। स्थान-स्थान पर लगे कैमरे आरोपियों को पकड़ते और चालान  का आधार बनते हैं। इस पक्ष से मैं इस देश को मालदीव को मात देता देखता हूं, जहां की पुलिस को पास डंडे से बड़ा हथियार नहीं होता। यह भी नोट करने वाली बात है कि दुबई रहते हुए आपको लखपति तथा करोड़पति होते हुए भी कोई आयकर नहीं देना पड़ता। दिलचस्प बात यह भी कि आप वहां से कोई भी चीज़ खरीदें, इस पर सिर्फ 5 प्रतिशत जीएसटी लगेगा, जो वापसी के समय हवाई अड्डे पर पहुंचने पर आपको लौटा दिया जाएगा। हैरानी की बात यह है कि इस देश में न कहीं कोई भिखारी मिलता है और न ही सड़कों के किनारे सो रहा कोई गरीब। 
पंजाबी हैरान न हों कि वहां के वाहनों के अधिकतर चालक पाकिस्तानी हैं जो वहां के निवासी होने के बावजूद हम से अच्छी तथा शुद्ध पंजाबी बोलते हैं। दिलदार तथा सुल्ताना जोड़ी ने यह भी बताया कि सिर्फ दुबई में ही नहीं सभी यूनाइटेड अरब देशों में 70 प्रतिशत बाहरी देशों के लोग हैं जिन पर वहां के नागरिक बनने की कोई बंदिश नहीं। यह भी कि इन 70 प्रतिशत परदेसियों में 60 प्रतिशत भारतीय हैं। मेरी इस यात्रा में दिलचस्पी का कारण दिलदार के माता-पिता सिख तथा सुल्ताना के मस्लिम होने का भी है।
1984 में सिखों की नस्लकुशी
मोमबत्तियों के उत्सवों में इंदिरा गांधी की हत्या के बाद देश के अलग-अलग भागों में रहते सिखों को जिस आफत का सामना करना पड़ा, उसकी याद आना स्वाभाविक है। इस आफत के समय मैं दिल्ली में रहता था। इस प्रसंग में मैं दिल्ली में रहते अपने मित्र कवि की दानिशवर कविता की  कुछ पंक्तियां पेश करना चाहूंगा। देखें अंतिका!
अंतिका
—तारा सिंह कामिल—
काहनूं बालदैं बनेरियां ’ते मोमबत्तियां
लंघ जाण दे बज़ार ’चों हवावां तत्तीयां। 
बूहे उत्ते शर्मिंदगी दे द़ाग रहिन दे
बदनाम राजनीति दे सुराग रहिन दे  
आऊण वालियां ने अज्ज दा कसूर लभणा 
इन्हां घरां विच्च बुझे होये चराग रहिन दे
कित्थे जाएंगा दिशावां सब लहू-रत्तीयां
काहनूं बालदैं बनेरियां ’ते मोमबत्तियां।
जदों गल्ल ते दलील बलवान ना रहे 
उदों त़ेग तलवार वी म्यान ना रहे 
ऐसी वगी ए हवा, असीं अक्खीं देखिया
जिन्द जान कहिन वाले, जिन्द जान ना रहे
नहीं रुकीयां हवावां अजे माण-मत्तीयां
अजे बाल ना बनेरियां ’ते मोमबत्तियां
लंघ जाण दे बज़ार ’चों हवावां तत्तीयां।