प्रभावी कदमों की ज़रूरत

उत्तर भारत विशेष रूप से राजधानी दिल्ली के क्षेत्र में वायु प्रदूषण की पैदा हुई गम्भीर स्थिति के दृष्टिगत पिछले कुछ दिनों से सर्वोच्च न्यायालय तथा नैशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल द्वारा बड़ी सख्ती दिखाई जा रही है। नि:संदेह इस संबंध में केन्द्र सरकार, पंजाब, हरियाणा, राजस्थान एवं उत्तर प्रदेश आदि दिल्ली के आस-पास लगते राज्यों की सरकारों को आपसी सहयोग से प्रभावी कदम उठाने की ज़रूरत है, क्योंकि वायु प्रदूषण बेहद गम्भीर रूप धारण कर चुका है। दिल्ली में एयर क्वालिटी इन्डैक्स (वायु गुणवत्ता सूचकांक) बुधवार को 426 तथा वीरवार को 437 पाया गया था,जबकि 100 वायु गुणवत्ता सूचकांक को सन्तोषजनक तथा 50 को अच्छा माना जाता है। 400 से अधिक वायु गुणवत्ता सूचकांक को तो स्वास्थ्य के लिए बेहद घातक ही माना जाएगा। पंजाब में भी बठिंडा तथा राज्य के कई अन्य ज़िलों में पिछले दिवस लगभग दिल्ली जितना ही वायु गुणवत्ता सूचकांक बना हुआ था।
सर्वोच्च न्यायालय के निर्देशों अनुसार बुधवार को केन्द्रीय मंत्रिमंडल के सचिव राजीव गाबा ने पंजाब, हरियाणा, राजस्थान तथा उत्तर प्रदेश के अधिकारियों के साथ इस संबंध में बैठक भी की है, जिसमें विशेष रूप से पंजाब को पराली को आग लगाने की घटनाएं रोकने के लिए ये निर्देश दिए गए हैं कि राज्य सरकार द्वारा ज़िलाधीशों, पुलिस अधीक्षकों तथा थानों के एस.एच.ओज़ को किसानों द्वारा पराली को आग लगाने की हो रही घटनाएं को रोकने के लिए मैदान में उतारा जाए। केन्द्रीय मंत्रिमंडल के सचिव ने यह भी कहा है कि वायु गुणवत्ता पर नज़र रखने वाले केन्द्रीय आयोग के विशेष दस्तों द्वारा अगले दिनों में पंजाब तथा हरियाणा के दौरे भी किए जाएंगे तथा इसकी रिपोर्ट केन्द्र को दी जाएगी। इसी दौरान केन्द्र सरकार ने एक रिपोर्ट जारी करके राजधानी दिल्ली के क्षेत्र में वायु प्रदूषण के लिए मुख्य रूप से पंजाब को ज़िम्मेदार ठहराया है। इस रिपोर्ट में कहा गया है कि इस वर्ष पराली को आग लगाने की देश में जो कुल 24695 घटनाएं घटित हुई हैं, उनमें 93 प्रतिशत घटनाएं सिर्फ पंजाब से संबंधित हैं। इस रिपोर्ट में यह भी कहा गया है कि पंजाब को पराली को आग लगाने की घटनाओं को रोकने के लिए अब तक केन्द्र द्वारा 1426 करोड़ रुपये की सहायता दी गई है परन्तु यह समस्या पहले की भांति ही बनी हुई है। रिपोर्ट के अनुसार पंजाब को यह राशि हैपीसीडर तथा अन्य मशीनें खरीदने के लिए दी गई थी ताकि पराली को आग लगाने के बिना ही गेहूं की बुआई करने के लिए किसान इन मशीनों का इस्तेमाल कर सकें। केन्द्र सरकार ने यह भी आरोप लगाया है कि इन मशीनों का किसानों द्वारा इस्तेमाल नहीं हो रहा।
उपरोक्त रिपोर्ट तथा तथ्यों के दृष्टिगत यह बात तो स्वीकार करनी ही पड़ेगी कि पंजाब में पराली जलाने की घटनाएं अन्य पड़ोसी राज्यों के मुकाबले अधिक घटित हो रही हैं परन्तु इसके साथ ही यह मानना पड़ेगा कि पंजाब का अधिकतर क्षेत्र धान की काश्त के अधीन है तथा देश की अनाज सुरक्षा में भी यह बड़ा हिस्सा डालता आ रहा है, परन्तु फिर भी इस बात की बेहद ज़रूरत है कि पंजाब सरकार तथा किसान आपस में सहयोग करके इस समस्या पर काबू पाने के लिए प्रभावी कदम उठाएं तथा इस संबंध में केन्द्र सरकार की ओर से भी बनता सहयोग दिया जाना चाहिए। इसके लिए बाकायदा एक ठोस योजना बननी चाहिए तथा उस पर लगातार क्रियान्वयन होना चाहिए। एक-दूसरे पर आरोप लगा कर इस समस्या का हल नहीं हो सकता। इस बात से भी इनकार नहीं किया जा सकता कि पंजाब की पूर्व सरकारों तथा वर्तमान सरकार को भी प्रदेश में धान की पराली तथा गेहूं के नाड़ को आग लगाए जाने के क्रियान्वयन को रोकने के लिए योजनाबद्ध ढंग से जितने प्रभावी कदम उठाने की ज़रूरत थी, वे कदम सरकारें उठाने में विफल रही हैं। इस संबंध में जो भी कदम उठाए गए हैं, वह आधे-अधूरे मन से ही उठाए गए हैं। सरकारों द्वारा किसानों को हैपीसीडर या अन्य मशीनों के लिए जो सबसिडी दी गई है, उसमें भी भ्रष्टाचार हुआ है। अधिकारियों तथा मशीनें बनाने वाली कम्पनियों द्वारा मिलीभुगत करके केन्द्र से आई ऐसी राशि को खुर्द-बुर्द किया गया है तथा इस संबंध में मीडिया में कई रिपोर्टें भी प्रकाशित हुई हैं। दूसरी तरफ जिन किसानों को सबसिडी पर ऐसी मशीनें मिली भी हैं, उन्होंने भी सौहादपूर्ण ऐसी मशीनों का इस्तेमाल नहीं किया, अपितु खेतों में पराली को आग लगाने को ही प्राथमिकता दी है।
अब जबकि सर्वोच्च न्यायालय, नैशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल के दबाव के कारण केन्द्र सरकार भी इस मामले पर सख्त हुई दिखाई देती है तो सभी संबंधित पक्षों को समयबद्ध प्रभावी कदम उठाने ही पड़ेंगे। किसान भी अब इस संबंध में ढिलमुल वाली नीति धारण नहीं कर सकते, परन्तु साथ ही हम यह भी कहना चाहेंगे कि अकेले प्रशासनिक तथा पुलिस कार्रवाई से इस मामले का हल नहीं किया जा सकता। इसके लिए किसानों को जागरुक करने के साथ-साथ उन्हें ऐसी टैक्नालोजी तथा साधन भी उपलब्ध करवाने पड़ेंगे, जिनसे खेतों में धान की पराली तथा गेहूं के नाड़ का समुचित ढंग से समाधान हो सके। वैसे ज़रूरत इस समस्या को प्राथमिकता के आधार पर हल करने की है। आगामी समय में यह देखा जाएगा कि इस संबंध में केन्द्र तथा संबंधित राज्य सरकारें मिल कर कैसी प्रभावी नीति तैयार करके उसे लागू करती हैं।