उपचारहीन रोगों का वरदान

आपको तकलीफ हो सकती है कि हम अभी तक क्यों जिये जा रहे हैं? आज के ज़माने में जबकि आपकी नसों में लाल नहीं, सफेद खून दौड़ रहा है, और आपकी आत्मा तक मुक्ति पथ की उड़ान भरने के स्थान पर भौतिकता के इस्पाती ढेर में दबा दी गई है, हम इस आपाधापी की घुड़ दौड़ में उन्हें नकार उन जंगलों की ओर क्यों निकल जाना चाहते हैं, जहां प्रकृति आपको हरी घास पर क्षण भर नहीं, जीवन भर जीने का इरादा रखती है।
लेकिन ऐसा नहीं हो पाता, क्योंकि इसके रास्ते में खड़ा हो जाता है एक बातूनी कोलाहल, आकाशधर्मी घोषणायें, और उत्सव जनित आंकड़ों की वाचाल सफलताएं। उनके अस्तित्व में आ जाने के नगाड़े बजाये जाते हैं, लेकिन इनके पैरों के नीचे की धरती इन बस्तियों का रुख क्यों नहीं करती, जिनके अंधेरे को इन्हें उजाले में बदल देना चाहिए?
रोटी, कपड़ा और मकान कतार में खड़े आखिरी आदमी तक पहुंचा देने का वायदा था, लेकिन इस बस्ती में वायदों के वफा होने का चलन नहीं है। यहां मरते हुए लोगों के लिए रोटी, कपड़ा और मकान उनकी कर्मशीलता का अधिकार नहीं, बल्कि उदारता और अनुकम्पा का परिणाम है, या उनके पिछले जन्म का पुण्य। वैसे जन्म मरण के इस लेखे में उनके पिछले जन्म में भी उनकी हालत आज से बेहतर रही हो ऐसा लगता तो नहीं, लेकिन मिज़र्ा ़गालिब उनके कानों में क्यों फुसफुसा देते हैं, ‘दिल के बहलाने को ़गालिब यह ख्याल अच्छा है।’
वैसे ख्याल तो अच्छे रहने ही चाहियें, क्योंकि वही भावी सपनों की आधार भूमि बनते हैं। आकाश में उनके लिए उस इन्द्रधनुष का सृजन कर देते हैं, जो आपके जीवन के धूपछांही रंगों में आपको चिलचिलाती धूप में निरन्तर चलते रहने की प्रेरणा देता है। यह बात उपेक्षणीय है कि बरसों चलने के बाद भी जब पौन सदी गुज़र जाने की घोषणा होती है, तो उसका पुण्य उत्सव मनाते हुए हम पाते हैं कि हमारी यात्रा शुरू करने के लिए मूलभूत आर्थिक ढांचा बनाने की अभी ज़रूरत है। हमें अभी कर्त्तव्य पथ पर चलने की नयी प्रेरणा ही जागी है। यह उपलब्धि उत्सव मनाया तो पाया कि अभी तो हमारी यात्रा शुरू ही नहीं हुई। अब यात्रा शुरू होगी। फिर जब शताब्दी उत्सव मनाया जायेगा तो गूदड़ बस्तियों में रहने वाले लोगों को बताया जाएगा कि लो अब तुम्हारे भी अच्छे दिन आ गये, जब तुम्हें अपनी मेहनत का परिणाम लेने का इस देश में हक होगा। बैंक खातों में अचानक धन आ जाने का बिल्ली के भागों छींका नहीं टूटेगा। राष्ट्र निर्माण में तुम्हारे यथोचित योगदान का प्रतिदान मिलेगा।
़खैर यह तो उस भविष्य की बात है, जब तुम्हारी बस्तियों पर भी एक नया सूरज उगेगा। वे परियोजनायें पूरी हो जायेंगी, कि फिलहाल लम्बित हो जाना जिनके भाग्य में है। आज योजनाओं की नई घोषणाओं से माहौल गुंजित होता रहता है। फिसड्डी शहरों को चुस्त दुरुस्त या स्मार्ट बना देने के संकल्प होते रहते हैं, बनी बनायी सड़कें तोड़ दी जाती हैं, क्योंकि इन्हें लकदक या नया रूप देना है। चुनाव दुंदुभि बज जाये तो फटीचर लोगों के लिए नई ज़िन्दगी फूलों की एक नई बिसात पर बिछा देने की घोषणा होती है। हाथ जोड़ अभिवादन करते हुए समय के मसीहा उनकी गलियों में पधारते हैं। उनकी बन्द गलियों के आखिरी मकान पर दस्तक देते हैं, और उनके लिए प्रशस्त रास्ते खोल देने के वायदे करते हैं। यह भी एक उत्सव है, चुनाव उत्सव बन्धु! जहां सपनों के बायस्कोप गरीब गुरबा को दिखाये जाते हैं, लेकिन बहुत जल्दी उत्सव का यह माहौल रुपयातीत हो जाता है। समय के मसीहा जिन अट्टालिकाओं से बाहर आ हम सबको उपकृत करने आये थे, वे अपनी अट्टालिकाओं में लौट उन्हें प्रासाद बनाने के जुगाड़ में लग जाते हैं। जो सड़क लकदक हो जाने का सपना लेकर तोड़ दी गयी थी, वह तो आज भी टूटी है। टूट कर गड्डों और खाइयों में तबदील हो गयी है। इन्हें बनाने वाले ठेकेदार प्रसन्न हैं। अहलकार प्रसन्न हैं। सड़कों की पूर्णता की रिपोर्ट दी जाती है, भुगतान हो जाते हैं। सड़क फिर टूट जाती है, उसका भाग्य! खोजी विशेषज्ञ शोध करते हैं, कि सड़क परिवहन क्रांति के बावजूद देश में दुर्घटनाओं की संख्या में इतनी वृद्धि क्यों हो गयी? जवाब नहीं मिलता।
स्मार्ट शहर तरक्की के स्थान पर कूड़े के नाबदान क्यों लगने लगे हैं। कूड़े के ढेर पहाड़ क्यों बनते जा रहे हैं, और अच्छी भली सड़कों का हुलिया क्यों बिगाड़ रहे हैं ये लोग? लगता है यहां कुछ लम्हे हैं जो खता कर रहे हैं, और आने वाली सदियां सज़ा पा रही हैं, लेकिन धरती का सच तो क्षण-जीवी हो गया है। भ्रष्टाचार को नेस्तोनाबूद कर देने वाली सरकार जब गद्दी खोती है, तो स्वयं को आरोपों के कटघरे में खड़े पाती है।
 पुरानी शुचिता का दम भरने वाली संस्कृतियां दम तोड़ रही हैं, और उनकी जगह तशरीफ ला रही है, भोगवादी संस्कृति जिसमें आज का भकोसवाद ही सच है। आने वाले कल के सूरज का इंतजार कौन करता है? बलिदान, समर्पण, मेहनत और अध्यवसाय ये शब्द उन किताबों में रह गये, जिनकी आज पुस्तक संस्कृति की मौत के कारण विदाई हो गयी है। अब तो ‘यहां सब चलता है’ का नया युग आया है, और किसी भी अकल्पनीय के घट जाने के बाद आज कोई नहीं चौंकता। नृशंसता सहज व्यवहार हो गयी। उसे प्रतिबंधित करने के स्थान पर उसकी वीडियो फिल्मिंग होती है, ताकि समय साक्षी रहे, और उन अदालतों में अपना भाग्य निर्णय ले, कि जिन्हें तारीख पर तारीख का मर्ज हो गया है।