अहम है आवारा जानवरों संबंधी उच्च् न्यायालय का ़फैसला

कुत्तों के काटने संबंधी पंजाब तथा हरियाणा हाईकोर्ट के ताज़ा ़फैसले को प्रशंसनीय कहा जा सकता है। इस ़फैसले के अनुसार आवारा कुत्तों के काटने पर जुर्माना प्रशासन को देना पड़ेगा तथा पालतू कुत्तों संबंधी जुर्माना उनके मालिकों को अदा करना पड़ेगा। इस संबंध में उच्च न्यायालय द्वारा पौने दो सौ से अधिक दायर हुईं याचिकाओं संबंधी जो फैसला आया है, इनकी संख्या से ही अनुमान लगाया जा सकता है कि जन-साधारण ज़िन्दगी में किस तरह कुत्तों से परेशान हैं। उच्च न्यायालय ने अपने ़फैसले में सिर्फ कुत्तों को ही शामिल नहीं किया, अपितु गाय, भैंस, सांड, बैल एवं गधों आदि को भी शामिल किया है।
इन आवारा पशुओं से हर वर्ग के लोगों को जिस तरह  भिन्न-भिन्न तरह की परेशानी का सामना करना पड़ता है, उसका अनुमान सहज ही लगाया जा सकता है, परन्तु यह सिलसिला वर्षों से नहीं, अपितु दशकों से जारी चला आ रहा है। प्रदेश सरकारें इस गम्भीर मामले संबंधी कभी भी कोई ठोस तथा प्रभावशाली योजना तैयार नहीं कर सकीं। यदि ये योजनाएं बनाई भी गईं तो समय रहते ये बुरी तरह विफल हो गईं तथा क्रियान्वयन से वंचित ही साबित हुईं। यदि आवारा कुत्तों की बात की जाये तो दो दशक पहले सरकारों द्वारा आवारा कुत्तों की नसबंदी करने की योजना बनाई गई थी। यदि इस योजना पर क्रियान्वयन किया जाता तो आज तक इन आवारा कुत्तों की संख्या बहुत कम हो जानी थी, परन्तु आंकड़ों के अनुसार इन आवारा कुत्तों की संख्या में लगातार वृद्धि होती जा रही है। प्राप्त आंकड़ों के अनुसार पंजाब में वर्ष 2019 में 3 लाख के लगभग कुत्ते थे। बीस वर्ष पूर्व कुत्तों की नसबंदी करके इनकी संख्या कम करने के किये गये यत्न भी बुरी तरह विफल हुए तथा इन कुत्तों की जनसंख्या लगातार बढ़ती गई। प्राप्त सरकारी आंकड़ों के अनुसार कुछ शहरों जैसे अमृतसर में वर्ष 2023 में डेढ़ हज़ार के लगभग कुत्तों के काटने की घटनाएं घटित हुईं। पंजाब भर में वर्ष 2022 में कुत्तों से घायल होने वालों की संख्या एक लाख 65 हज़ार से अधिक थी। वर्ष 2023 में भी ऐसा आंकड़ा ही बना रहा। प्रदेश में इसके लिए स्थानीय सरकारें विभाग, ग्रामीण विकास तथा पंचायत विभाग एवं पशु पालन विभाग ज़िम्मेदार हैं। प्रत्येक विभाग इस मामले में कारगुज़ारी के पक्ष से निकम्मा साबित हुआ है, क्योंकि विगत पांच वर्षों में आवारा कुत्तों की संख्या में हुई वृद्धि से घायल होने वालों की संख्या में 70 प्रतिशत बढ़ौतरी हुई है। आज आवारा पशुओं से किसान भी बुरी तरह तंग तथा परेशान हैं परन्तु प्रशासन इस संबंध में गहन निद्रा में है। आवारा गायों के लिए गौशालाओं का प्रबन्ध किया गया है। लोगों पर इनकी देखभाल के लिए अतिरिक्त टैक्स भी लगाया गया। बहुत-से स्वयं-सेवी संगठन भी इस ओर बड़े यत्न कर रहे हैं परन्तु इसके बावजूद गांवों तथा शहरों में आवारा कुत्तों के झुंड तथा आवारा पशुओं का जमघट लगा रहता है।
भारतीय समाज में बेज़ुबानों की हर तरह से रक्षा करने के प्रवचन दिये जाते रहे हैं, परन्तु अभी देश भर में इन करोड़ों बेज़ुबानों की सड़कों, गलियों तथा बाज़ारों में जो दुर्दशा होती है, जिस तरह की गन्दगी ये निगलते हैं, जिस तरह से इन्हें प्यास बुझाने के लिए पानी नहीं मिलता, क्या ऐसे भटकते जानवरों के प्रति हमारे भीतर किसी तरह की दया भावना पैदा नहीं होती? क्या इस देश का ऐसा ही धार्मिक सदाचार है? क्या हम इस विशाल समस्या के संबंध में कोई योजनाबंदी करने में असमर्थ ही सिद्ध हो रहे हैं? क्या आज किसी भी विकसित देश में ऐसा होना सम्भव है? विकसित देशों ने हर क्षेत्र में गम्भीर क्रियात्मक सक्रियता दिखा कर सार्थक परिणाम निकाले हैं। इन देशों के मुकाबले में हमारी हर तरह की मान्यताएं छोटी प्रतीत होने लगी हैं। चांद-सितारों तक पहुंचने पर गर्व करने वाले देश को पहले अपनी धरती को संवारने का यत्न ज़रूर करना चाहिए। विगत अवधि में स्वच्छ-भारत अभियान की योजनाबंदी में कई बड़ी तथा अच्छी उपलब्धियां हासिल की जा चुकी हैं। अब केन्द्र तथा प्रदेश सरकारों को पैदा हुई इस गम्भीर समस्या के संबंध में भी पूरी तरह जागरूक होकर प्रभारी योजनाबंदी करके उसकी पहरेदारी करनी होगी ताकि एक निश्चित समय के भीतर सामने खड़ी इस समस्या से निजात पायी जा सके।
—बरजिन्दर सिंह हमदर्द