बंदी सिंहों की रिहाई

चार दशक पहले पंजाब बेहद गड़बड़ वाले तथा गम्भीर दौर से गुज़रा था। उस समय तथा उसके बाद यहां जो कुछ बेहद भयावह एवं दुखद घटित हुआ था, उसकी यहां पुन: चर्चा करने की इस समय अधिक ज़रूरत नहीं है, क्योंकि ज्यादातर पंजाबियों ने घटित इस त्रासदी को स्वयं भोगा था तथा नई पीढ़ियों के मन में भी अधिक समय न होने के कारण उसके संबंध में किसी न किसी रूप में याद बरकरार है। इसका दर्द अभी तक शेष है, क्योंकि इससे प्रभावित हुये  लाखों परिवार अभी तक किसी न किसी रूप में इस को भोग रहे हैं। यहां तक कि1984 में इंदिरा गांधी की हत्या के बाद घटित सिख नरसंहार के भयावह घटनाक्रम को भी भुलाया नहीं जा सकेगा, अपितु यह इतिहास का एक अहम पृष्ठ बन चुका है।
अभी तक कई सरकारों के यत्नों के बावजूद यह दुखद घटनाक्रम इन्स़ाफ की मांग करता है। उस समय अनेकानेक घटनाओं से पंजाब की धरती लाल हो गई थी। हज़ारों लोग सरकारी तथा ़गैर-सरकारी गुटों की हिंसा का शिकार हो गये थे। भिन्न-भिन्न प्रदेशों में बहुत-से सिख ऐसे माहौल की भेंट चढ़ गये। ज्यादातर को अदालतों द्वारा लम्बी तथा कड़ी सज़ाएं भी दी गईं, परन्तु अब बलवंत सिंह राजोआना द्वारा अकाल तख्त के जत्थेदार को उनकी सज़ा संबंधी लिखे गये पत्र तथा शिरोमणि गुरुद्वारा प्रबन्धक कमेटी के अधिकारियों द्वारा राज्यपाल को सौंपे गये दस्तावेज़ों के साथ एक बार फिर विगत 30 वर्षों से जेल में बंद कुछ बंदी सिंहों की रिहाई का मामला उभर कर सामने आया है। विगत दिवस शिरोमणि कमेटी के प्रधान एडवोकेट हरजिन्दर सिंह धामी के नेतृत्व में एक प्रतिनिधिमंडल पंजाब के राज्यपाल को भी मिला था। उन्होंने 26 लाख लोगों के हस्ताक्षरों वाले प्रोफार्मे पैन ड्राइव के रूप में राष्ट्रपति को भेजने के लिए उन्हें दिये थे। स. धामी ने यह भी कहा है कि वह इस संबंध में शीघ्र ही देश के गृह मंत्री से भी मिलेंगे। इस प्रोफार्मा में 9 ऐसे बंदी सिंहों की सूची भी दी गई है, जो विगत 30-30 वर्षों से देश के भिन्न-भिन्न प्रदेशों की जेलों में बंद हैं। उस समय उन पर जो भी आरोप लगाये गये थे तथा संबंधित अदालतों द्वारा जो भी उन्हें सज़ाएं सुनाई गई थीं, उन्हें वे चिरकाल पहले तक भुगत चुके हैं। इन बंदी सिंहों में कइयों को समय-समय पर पैरोल पर रिहा भी किया जाता रहा है। घटित हो रहे इस घटनाक्रम में सरकार तथा अदालतों से यह बात पूछना हर तरह से जायज़ है कि दशकों पहले अपनी सज़ाएं पूरी चुके इन सिंहों को रिहा क्यों नहीं किया जा रहा?
भाई बलवंत सिंह राजोआना का मामला इस से भिन्न है। उन्हें वर्ष 2007 में फांसी की सज़ा सुनाई गई थी, परन्तु शिरोमणि कमेटी द्वारा उनकी सज़ा को उम्र कैद में बदलने की अपील पर उन्हें फांसी देने पर रोक लगा दी गई थी, परन्तु केन्द्र सरकार ने विगत 17 वर्षों में इस संबंध में कोई भी फैसला नहीं लिया, चाहे सुप्रीम कोर्ट भी इस संबंध में सरकार को कोई फैसला लेने के लिए कह चुकी है। राजोआना अभी भी जेल में बंद हैं। हम प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी तथा केन्द्रीय गृह मंत्री अमित शाह से यह अपील करते हैं कि वह सिख जगत की भावनाओं को समझते हुये ऐसे 9 बंदी सिंहों के मामलों की जांच करवा करके उनकी रिहाई में सहायक बनें। कौम की भावनाओं के अलावा देश की न्यायिक प्रणाली भी इसी दिशा की ओर संकेत कर रही है, जिसे संबंधित संस्थाओं तथा व्यक्तियों द्वारा समझा जाना बेहद ज़रूरी है।

—बरजिन्दर सिंह हमदर्द