बंदी सिंहों की रिहाई का मामला मानवीय आधार पर फैसला ले केन्द्र सरकार

लोकसभा में पारित किये गये तीन आपराधिक कानूनों पर हुई चर्चा को पूरा करते हुये विगत दिवस गृह मंत्री अमित शाह की ओर से की गईं कुछ टिप्पणियों से बलवंत सिंह राजोआणा की फांसी की सज़ा को उम्र कैद में बदलने तथा सज़ाएं पूरी कर चुके कुछ अन्य बंदी सिंहों की रिहाई का मामला एक बार फिर जटिल होता दिखाई दे रहा है। नये पारित किये गये तीन आपराधिक विधेयकों में यह व्यवस्था की गई है कि यदि किसी व्यक्ति को फांसी की सज़ा हुई है तो इस संबंध में रहम की अपील वह स्वयं या उसका परिवार ही कर सकता है, किसी तीसरे पक्ष को ऐसी अपील करने का अधिकार नहीं होगा। शिरोमणि अकाली दल की सांसद श्रीमती हरसिमरत कौर ने बलवंत सिंह राजोआणा की फांसी की सज़ा को उम्र कैद में बदलने तथा अन्य सज़ाएं पूरी कर चुके बंदी सिंहों की रिहाई का मुद्दा उठाते हुआ कहा था कि नये सम्भावित आपराधिक कानूनों से बंदी सिंहों की रिहाई के संबंध में मुश्किलें पैदा हो जाएंगी। उन्होंने यह भी कहा कि यदि फांसी की सज़ा प्राप्त किसी व्यक्ति का परिवार न हो या वह स्वयं रहम की अपील करने की स्थिति में न हो तो उसके लिए रहम की अपील कौन करेगा, तथा इस प्रकार उसके मानवाधिकारों का उल्लंघन होगा। इस पर अपनी प्रतिक्रिया प्रकट करते हुए गृह मंत्री अमित शाह ने कहा कि जो व्यक्ति अपनी ़गलती का स्वयं अहसास नहीं करता, वह किसी भी तरह के रहम का हकदार नहीं है।
गृह मंत्री द्वारा दिये गये इस बयान के बाद सिख गलियारों में कड़ी प्रतिक्रिया हुई है। शिरोमणि गुरुद्वारा प्रबन्धक कमेटी के प्रधान हरजिन्दर सिंह धामी तथा कई अन्य सिख नेताओं के इस संबंध में बयान आये हैं। विशेष रूप से हरजिन्दर सिंह धामी ने कहा है कि देश की जेलों में तीन दशकों से भी अधिक समय से नज़रबंद सिख बंदी जो अपनी सज़ाएं पूरी कर चुके हैं, उनके मानवाधिकारों को देश के संवैधानिक पद पर बैठे पदाधिकारियों द्वारा दृष्टिविगत नहीं किया जाना चाहिए। उन्होंने यह भी कहा कि गुरु नानक देव जी के 550वें प्रकाश पर्व के समागमों के समय 2019 में केन्द्र सरकार ने स्वयं एक अधिसूचना जारी करके बंदी सिंहों की रिहाई करने की मांग को सैद्धांतिक रूप में स्वीकार किया था। सरकार को अपनी उपरोक्त अधिसूचना लागू करनी चाहिए। उन्होंने यह भी कहा कि यह मामला मिल-बैठ कर विचार करने वाला है तथा इस संबंध में श्री अकाल तख्त साहिब के जत्थेदार सिंह साहिब ज्ञानी रघवीर सिंह द्वारा एक पांच सदस्यीय कमेटी ज्ञानी बनाई गई है, जिसने प्रधानमंत्री से मिलने के लिए समय भी मांगा है। उन्होंने सरकार को यह भी अपील की कि इस मामले पर संजीदा विचार करने की ज़रूरत है तथा इसके लिए सरकार को आगे आना चाहिए।
इस संबंध में हमारा यह मत है कि आठवें दशक पंजाब बेहद बुरे दौर से गुज़रा था। इस दौरान बहुत कुछ बुरा घटित हुआ था। ऐसी दुखद घटनाएं घटित हुई हैं जिनका आज भी सिख पंथ तथा पंजाबियों के एक बड़े वर्ग के दिल पर गहरा प्रभाव है। आप्रेशन ब्लू स्टार, नवम्बर 84 का सिख नरसंहार, उस समय की प्रधानमंत्री श्रीमती इन्दिरा गांधी की हत्या तथा इसके बाद डेढ़ दशक तक पंजाब में गड़बड़ वाला दौर चलता रहा, जिसमें ज्यादातर लोग सरकारी तथा ़गैर-सरकारी हिंसा का शिकार हुये। उनकी ज़िन्दगियों पर इस पूरे घटनाक्रम का गहरा प्रभाव पड़ा। पंजाब ऐसे दुखद दौर में क्यों दाखिल हुआ और इसके लिए किसका कितना दोष था, इस संबंध में विगत लम्बे समय से चर्चा होती रही है। बहुत-सी किताबें इस संबंध में प्रकाशित हुई हैं। समाचार पत्रों तथा पत्रिकाओं में भी अनेक लेख लिखे गये हैं। आगामी समय में भी यह चर्चा होती रहेगी, परन्तु पंजाब तथा देश के हित यह मांग करते हैं कि उपरोक्त पूरे घनटाक्रम के दौरान सिख समुदाय तथा समूह पंजाबी जिस बड़े दुखांत में से गुज़रे हैं, और इस कारण जो ज़ख्म उनके मन पर लगे हैं, उन पर मरहम लगाया जाये और एक नई शुरुआत की जाये। 
जहां तक बंदी सिंहों की रिहाई का मामला है, इस संबंध में यदि श्री गुरु नानक देव जी के 550वें प्रकाश पर्व पर 2019 में सरकार ने अधिसूचना जारी करके इस मांग को स्वीकार किया, तो इसे पूरा भी किया जाना चाहिए। वैसे भी सज़ाएं पूरी कर चुके नज़रबंदों को लम्बे समय तक कैद में रखना नैतिक तथा कानूनी तौर पर भी उचित नहीं है। जहां तक बलवंत सिंह राजोआणा की ़फांसी की सज़ा को उम्र कैद में बदलने की सिख समुदाय द्वारा की जा रही मांग का संबंध है, इस संबंध में शिरोमणि गुरुद्वारा प्रबंधक कमेटी ने राष्ट्रपति को अपील की थी और राष्ट्रपति ने इस अपील पर क्रियान्वयन करते हुए फांसी की सज़ा पर रोक भी लगा दी थी, परन्तु इससे आगे और कोई कार्रवाई नहीं हुई। 12 वर्ष से यह अपील लम्बित पड़ी है। इस समय के दौरान पटियाला जेल में बलवंत सिंह राजोआणा 8म8 की कोठरी में कैद है। 27 वर्ष की नज़रबंदी गुज़ार चुका है और नये बनाये जा रहे आपराधिक कानूनों में चाहे यह व्यवस्था की गई है कि रहम की अपील सिर्फ संबंधित व्यक्ति या उसका परिवार ही कर सकता है, परन्तु हमारा इस संबंध में यह विचार है कि बलवंत सिंह राजोआणा के पुराने मामले को इससे नहीं जोड़ना चाहिए, क्योंकि सैद्धांतिक तौर पर देश के राष्ट्रपति शिरोमणि गुरुद्वारा प्रबंधक कमेटी द्वारा की गई अपील को स्वीकार कर पहले ही बलवंत सिंह राजोआणा की ़फांसी की सज़ा पर रोक लगा चुके हैं, और अब उनकी ़फांसी की सज़ा को उम्र कैद में बदलने की आगामी कार्रवाई करना बनता है। 
आशा करते हैं कि केन्द्र सरकार बलवंत सिंह राजोआणा की ़फांसी की सज़ा को उम्र कैद में बदलने तथा सज़ा पूरी कर चुके अन्य बंदी सिंहों की रिहाई के लिए मानवीय आधार पर सकारात्मक निर्णय लेगी और पंजाबियों तथा विशेषकर सिख समुदाय को 80वें में लगे जख्मों से उभरने के लिए एक नया अवसर प्रदान करेगी।