वायु प्रदूषण का लगातार बढ़ता खतरा

वायु प्रदूषण स्वास्थ्य के लिए एक बड़ा खतरा बनते जा रहा है। इससे बड़े-बूढ़े ही नहीं बच्चे भी बुरी तरह प्रभावित हो रहे हैं। उनकी ग्रोथ पर असर पड़ रहा है और तो और इसके चलते वो बचपन में ही कई और दूसरी बीमारियों का भी शिकार हो रहे हैं। वायु प्रदूषण के प्रति बच्चों की संवेदनशीलता कई कारणों से पैदा हो सकती है। उनके वायुमार्ग छोटे व कम विकसित होते हैं, जिससे वे हानिकारक प्रदूषकों के प्रति ज्यादा संवेदनशील हो जाते हैं। इसके अलावा, बच्चे बड़ों की तुलना में ज्यादा तेज़ी से सांस लेते हैं, जिससे उनके द्वारा ली जाने वाली हवा की मात्रा और उनके सम्पर्क में आने वाले प्रदूषकों की मात्रा बढ़ जाती है। उनका इम्यून सिस्टम भी कम मज़बूत होता है, जिससे उनमें ब्रीदिंग इन्फेक्शन और वायु प्रदूषण से जुड़ी अन्य स्वास्थ्य समस्याएं होने का खतरा ज्यादा होता है। 
हर वर्ष दुनिया भर में वायु प्रदूषण की वजह से लाखों लोगों की मौत असमय हो रही है। एक स्टडी के मुताबिक दुनियाभर के 16 प्रतिशत लोगों की मौत प्रदूषण के चलते समय से पहले ही हो जाती है। इस स्टडी में ये भी बताया गया है कि दुनियाभर में हर साल करीब 90 लाख लोगों की मौत का कारण पॉल्यूशन होता है। इसमें सबसे ज्यादा खतरनाक वायु प्रदूषण को ही बताया गया है। वायु प्रदूषण का खतरा हमारे चारों ओर मंडरा रहा है। यह हम सभी को भारी मात्रा में प्रभावित कर रहा है, चाहे हमें इसका एहसास हो या न हो। अपनी इच्छा अनुसार लंबे समय से हम जिस हवा में सांस लेते आ रहे हैं, अक्सर उसे हल्के में लेते आए हैं। लेकिन वर्तमान के शोध ने कुछ चिंताजनक पहलुओं पर प्रकाश डालना शुरू कर दिया है कि हमारे आस-पास की हवा में वास्तव में क्या है और यह हमारे शरीर को कैसे प्रभावित करती है। वैसे तो हवा के बिना कोई जीवित नहीं रह सकता लेकिन प्रदूषित हवा में सांस लेने से हमें बीमारी और शीघ्र मृत्यु का सामना करना पड़ता है। 
वायु प्रदूषण क्या कैंसर का खतरा बढ़ा देती है, इस बारे में समझने के लिए किए गए एक अध्ययन में स्वास्थ्य विशेषज्ञों ने अलर्ट किया है। अध्ययनकर्ताओं ने बताया कि वायु प्रदूषण पुरुषों और महिलाओं दोनों के लिए कैंसर कारक हो सकती है, इसका उच्च स्तर स्तन कैंसर से लेकर फेफड़े-गले के कैंसर के जोखिमों को बढ़ाने वाली मानी जाती है। शोध के मुताबिक फेफड़ों के कैंसर के लगभग 10 में से एक मामले के लिए बाहरी वायु प्रदूषण एक कारण हो सकता है। वायु प्रदूषण के कण कोशिकाओं में डीएनए को नुकसान पहुंचाते हैं, इससे इंफ्लामेशन और कैंसर का जोखिम हो सकता है। ब्रेस्ट कैंसर महिलाओं में कैंसर से हर साल होने वाली मौतों का प्रमुख कारण रहा है। एक अध्ययन में शोधकर्ताओं ने पाया कि स्तन कैंसर की घटनाओं में सबसे अधिक वृद्धि उन महिलाओं में रिपोर्ट की गई, जिनका पार्टिकुलेट मैटर स्तर यानी पीएम 2.5 से संपर्क अधिक था। मोटर वाहन से निकलने वाले धुंआ, तेल-कोयला जलाने या लकड़ी के धुआं आदि में पीएम 2.5 अधिक होता है। साल 2018 में भारत में महिलाओं में रिपोर्ट किए गए सभी प्रकार के कैंसर में से 27.7 प्रतिशत केस स्तन कैंसर थे। भारत में अनुमानित 1,62,468 महिलाओं में स्तन कैंसर का पता चला था। वायु प्रदूषण इसका एक जोखिम कारक हो सकता है।
आंकड़ों की मानें तो लगभग वर्ष 2000 के बाद से ट्रकों, कारों और उद्योगों से आने वाली गंदी हवा के कारण मरने वालों की संख्या में 55 प्रतिशत की बढ़ौतरी हुई है। दुनिया में सबसे ज्यादा आबादी वाले देश चीन और भारत में वायु प्रदूषण से होने वाली मौतों के मामले सबसे ज्यादा हैं। यहां हर वर्ष लगभग 22 से 24 लाख मौतें वायु प्रदूषण से होती हैं, जबकि वैश्विक स्तर पर वायु प्रदूषण से लगभग 66.7 लाख लोगों की मौतें हर साल होती हैं। विश्व स्वास्थ्य संगठन की मानें तो वायु प्रदूषण से कई गंभीर बीमारियों का खतरा अधिक बढ़ जाता है। इनमें दिल की बीमारियां, फेफड़ों का कैंसर, क्रॉनिक ऑब्सट्रेक्टिव पल्मोनरी डिजीज यानी सी.ओ.पी.डी. व तीव्र श्वसन संक्रमण प्रमुख हैं। 
बच्चे, ‘एक्यूट रैस्पिरेटरी इन्फैक्शन’ यानी तीव्र श्वसन संक्रमण के अधिक शिकार होते हैं। प्राय: सर्दी के मौसम में वायु प्रदूषण का खतरा अधिक बढ़ जाता है। खबरों की मानें तो वर्तमान समय में देश की राजधानी दिल्ली और उसके आसपास के इलाकों में हवा की गुणवत्ता बेहद खराब हो गई है। इससे आम जनजीवन पर बुरा असर पड़ रहा है। लोगों को सांस संबंधी तकलीफों का सामना करना पड़ रहा है।
जीवनशैली व आहार में गड़बड़ी को डायबिटीज रोग के प्रमुख कारक के तौर पर देखा जाता रहा है, इस बीच हालिया अध्ययन में शोधकर्ताओं ने कहा कि वैश्विक स्तर पर बढ़ते वायु प्रदूषण के कारण भी टाइप-2 डायबिटीज का जोखिम बढ़ रहा है। भारत में अपनी तरह के पहले अध्ययन में पाया गया है कि प्रदूषित हवा में सांस लेने से टाइप 2 मधुमेह का खतरा बढ़ सकता है। जिस तरह से हर साल हम प्रदूषण के नए स्तर का सामना कर रहे हैं, ये डायबिटीज को लेकर भी चिंता बढ़ाने वाली स्थिति है। यह अध्ययन भारत में क्रोनिक बीमारियों पर चल रहे शोध का हिस्सा है जो 2010 में शुरू हुआ था। विशेषज्ञों का कहना है कि सबसे बड़ी और महत्वपूर्ण बात यह है कि वायु प्रदूषण की रोकथाम और नियंत्रण के लिए सिर्फ सरकार के भरोसे बैठने की बजाय प्रत्येक नागरिक को अपनी ज़िम्मेदारी समझते हुए सहयोग करना होगा।