प्रदेश की राजनीति में नई हलचल 

लोकसभा चुनाव निकट आ रहे हैं। पंजाब में भी इन चुनावों के लिए भिन्न-भिन्न राजनीतिक पार्टियों ने अपनी-अपनी रणनीति बनानी शुरू कर दी है। शिरोमणि अकाली दल द्वारा विगत दिवस अपना स्थापना दिवस मनाने सहित की गई अन्य गतिविधियों को भी इस संदर्भ में ही देखा जा रहा है। अकाली दल (ब) के अध्यक्ष स. सुखबीर सिंह बादल ने पार्टी के 103वें स्थापना दिवस पर श्री हरिमंदिर साहिब परिसर में हुए एक धार्मिक समारोह में पूरी विनम्रता से माफी मांगते हुए यह कहा कि स. प्रकाश सिंह बादल तथा उनके नेतृत्व में चली अकाली-भाजपा सरकार के 10 वर्ष के शासन के दौरान श्री गुरु ग्रंथ साहिब की बेअदबी की जो घटनाएं हुई थीं, उनसे सही ढंग से निपटने में उस समय जो भी गलतियां हुई थीं, उनके लिए वह समूचे पंजाबियों तथा विशेषकर पंथ से माफी मांगते हैं।  
उनके इस माफीनामे को विगत समय में उनसे अलग होकर अस्तित्व में आए अन्य नये अकाली दलों को शिरोमणि अकाली दल में पुन: शामिल करके मज़बूत पंथक एकता हेतु किये गये एक यत्न के रूप में भी देखा जा रहा है। इस घटना ने अकाली दलों तथा पंजाब की राजनीति में बड़ी चर्चा शुरू कर दी है। इस संदर्भ में दूसरे बड़े अकाली गुट, जिसका नेतृत्व स. सुखदेव सिंह ढींडसा कर रहे हैं, की ओर से भी एकता संबंधी सकारात्मक संकेत मिल रहे हैं। इसी क्रम में प्रदेश की भारतीय जनता पार्टी तथा अकाली दल के बीच पुन: गठबंधन की संभावनाओं को भी देखा जा सकता है। स्वर्गीय स. प्रकाश सिंह बादल के नेतृत्व में इन दोनों पार्टियों ने दस वर्ष पंजाब पर शासन किया था। चाहे किसान आन्दोलन के दौरान इन दोनों पार्टियों के रास्ते अलग-अलग हो गये थे और विगत में अकेले तौर पर भाजपा ने भी प्रदेश में अपनी राजनीतिक सक्रियता बढ़ा दी थी और अपने दायरे को भी विशाल करने का यत्न किया था, परन्तु इसके बावजूद राजनीतिक मंच पर बड़ी सीमा तक यह महसूस किया जा रहा है कि इन दोनों पार्टियों के आपसी सहयोग से ही इनकी राजनीतिक शक्ति बढ़ सकती है और पंजाब के भाईचारक माहौल के लिये भी यह बात अच्छा संदेश हो सकती है, परन्तु फिलहाल इन दोनों पार्टियों का और निकट आ पाना सम्भव नहीं लगता। फिर भी इस दिशा में काफी यत्न किये जा रहे हैं। 
दूसरी ओर प्रदेश में तीसरी बड़ी पार्टी कांग्रेस है, जिसके पंजाब के नेतृत्व ने पिछले समय में कड़ी मेहनत की है और शासन कर रही आम आदमी पार्टी की कमियों को भी लगातार उजागर किया है। इसके साथ ही इसने एक ज़िम्मेदार पार्टी होने का प्रभाव भी बनाया है, लेकिन राष्ट्रीय स्तर पर शासन कर रही भारतीय जनता पार्टी के प्रभाव को देखते हुए 20 पार्टियों ने जो ‘इंडिया’ नामक गठबंधन बनाया है, उसमें शामिल पार्टियों द्वारा लगातार यह कवायद जारी है कि वे इकट्ठे होकर भाजपा के उभार को रोकने का यत्न करें। ऐसा संयुक्त रणनीति के तहत ही संभव हो सकता है। इस गठबंधन में अन्य पार्टियों की तरह आम आदमी पार्टी भी शामिल है, परन्तु पंजाब में विगत लगभग दो वर्षों से जिस तरह भगवंत मान के नेतृत्व में आम आदमी पार्टी की सरकार ने प्रशासन चलाया है, उसने जहां बड़ी सीमा तक आम लोगों को बुरी तरह निराश किया है, वहीं इस सरकार ने विपक्षी पार्टियों के नेताओं के खिलाफ निजी रंजिश निकालने तथा उनको पूरी तरह ज़लील करने का यत्न भी किया है। बड़े कांग्रेस नेताओं को भी विशेष तौर पर निशाना बनाया गया है। उनको जेलों में बंद करके रखा गया है और आज भी हर ढंग-तरीके के साथ उनकी दुर्गति करने का यत्न किया जा रहा है। ऐसी हालत में पंजाब के अधिकतर बड़े कांग्रेसी नेता ‘इंडिया’ गठबंधन बनने के बावजूद पंजाब में आम आदमी पार्टी के साथ किसी तरह का चुनाव समझौता करने के लिए तैयार नहीं लगते। ऐसा उनके द्वारा लगातार दिये जा रहे बयानों से भी स्पष्ट होता है। वे अपनी इस भावना को लगातार हाईकमान के पास पहुंचाते भी रहे हैं और यह संदेश भी देते रहे हैं कि यदि आम आदमी पार्टी के साथ कांग्रेस हाईकमान के दबाव में ऐसा समझौता होता है तो इससे प्रदेश की कांग्रेस दो-फाड़ ही नहीं होगी बल्कि पूरी तरह से बिखर जाएगी। 
यह भी कि जिस प्रकार इस सरकार से आम कांग्रेसी कार्यकर्ता निराश हैं, उस कारण बनी उनकी मानसिकता के कारण किसी संभावित गठबंधन के सफल होने के बहुत कम आसार हैं। इसका दूसरी पार्टियों को भी लाभ मिल सकता है। ज़िला बठिंडा में ‘आप’ द्वारा की गई रैली में पार्टी के राष्ट्रीय संयोजक अरविंद केजरीवाल ने स्पष्ट रूप में चंडीगढ़ सहित प्रदेश की सभी लोकसभा सीटों पर अकेले ही चुनाव लड़ने का ऐलान कर दिया है। इस समूचे संदर्भ में सभी पार्टियों को दोबारा अपनी-अपनी नई रणनीति बनाने का प्रयास करना पड़ेगा। नि:संदेह रसातल की ओर जा रहे पंजाब को एक मज़बूत और प्रतिबद्ध राजनीतिक पक्ष की ज़रूरत होगी।

—बरजिन्दर सिंह हमदर्द