गुस्से का क्या है ....साहब

गुस्सा किस पर आता है। ये कहना शायद निश्चित नहीं है। गुस्सा छींक की तरह होता है। वो, कभी भी और कहीं भी आ सकता है। साहब को गुस्सा अर्दली के ऑफिस देर से आने कारण आता है। एक बार एक साहब को गुस्सा चपरासी के देर से चाय ले आने के कारण आ गया था। गुस्सा दरअसल इलीट क्लास का श्रृंगार होता है। एक साहब को गुस्सा इस बात पर आ गया था कि उनको चाय बहुत ठंडी मिली थी। लिहाजा साहब चपरासी पर बिदक गये थे। कुछ महीनों के बाद वही साहब बीबी से लड़कर दफ्तर आये थे। चपरासी ने जब चाय लाकर दी, तो चाय बहुत गर्म थी। इतनी गर्म थी कि उन्होंने बिना फूंक मारे ही चाय पी ली। लिहाजा, उनका मुंह जल गया। इधर, साहब इलीट क्लास के श्रृगांर का अनुसरण करते हुए चपरासी पर बिदक गये। तुमको कितनी बार कहा है कि चाय बहुत गर्म करके मत दिया करो। तुम्हारे इतने दिये हुए गर्म चाय के कारण ही मेरा मुंह जल गया। तैश में आकर साहब ने मुक्का दीवार पर दे मारा। लिहाजा उनका हाथ भी सूज गया। अब साहब हैं कि चाय के साथ मुक्का मारने की घटना को जोड़कर देखते हैं। एक साहब को दूसरे साहब के छींकने पर गुस्सा आ गया था। सबसे ज्यादा गुस्सा लोगों को दूसरों पर हंस देने से आता है। वैसे तो हंसना स्वास्थ्य के लिये सबसे ज्यादा लाभदायक होता है, लेकिन लोग अपने पर हंसा जाना बर्दाश्त नहीं कर पाते। गुस्सा, हंसना और स्टेटस सिंबल का एक अजीब संयोग है। कुछ वैसा ही जैसा मिंयां-बीबी और सौतन का होता है। दुनिया में भांति-भांति के लोग पाये जाते हैं। इसमें हमारे आपके स्टेट्स की जब बात आती है। तो तस्वीर कुछ ऐसा होता है। 
कल्पना कीजिये आपको किसी शादी में बुलाया गया हो और आप नहीं पहुंच पाते। सामने वाली चाची कहतीं हैं। ये लोग बहुत बड़े लोग हो गये हैं लेकिन हम भी किसी से कम नहीं हैं। बड़े होंगे तो अपने घर के होंगे। हम लोग छोटे हैं तो अपने घर में हैं। हां भला फलाने तो अब बहुत बड़े आदमी बन गयें हैं। हमारे घर में भला क्यों आने लगे। हम लोग तो गरीब आदमी हैं। ठीक इसके उलट अगर उनको अपने किसी ऑकेजन में नहीं बुलाया है, तो वही चाची कहेंगी कि भला गरीब को भी आजकल कोई पूछता है। हम लोग तो गरीब आदमी हैं। भला बड़े लोग हमें क्यों पूछने लगे। खैर हम भी अगली बार अपनी किसी शादी में इनको नहीं पूछेंगे। बड़े होंगे, तो अपने घर में होंगे। उनसे हम कुछ मांगने थोड़े ही जाते हैं तो हम लोग गुस्से की बात कर रहे थे। गुस्सा और बड़ा आदमी होना, इसमें कुछ-कुछ चोली दामन की तरह का संबंध होता है। बड़े आदमी की नाक बड़ी होती है। अपनी हंसी ना उड़ जाये इसलिये ऐसे लोग नाक की चिंता करते हैं। अक्सर प्रेम करने पर उनकी कुंठा को ठेस लगती है। इनकी नाक इनकी बेटियांँ होती हैं। आज़ाद देश में कानून,  न्यायपालिका से भी बड़ी होती है इनकी नाक। नाक के लिये ऐसे समाज और लोग ‘ऑनर कीलिंग’ को अंजाम देते हैं। ये वैसे ही लोग हैं, जो अपनी हंसी बर्दाश्त नहीं कर पाते। इनको दूसरों के द्वारा अपने पर हंसा जाना अखरता है लेकिन सालों से वो  दीन-हीनों पर हंसते आ रहे हैं। तब उनको दूसरों की बहू-बेटियों के साथ सोना गवारा था। आज जब युग बदला है, तो ये दीनहीनों का अपनी कुल-बिरादरी से संबंध जोड़ा जाना अपने पर हंसा जाना ही मान हैं। और इस तरह इनको अपने पर हंसा जाना चुभता है। लिहाजा ऑनर कीलिंग की घटनायें अंजाम दी जातीं हैं। गुस्से का आलम अलग-अलग है। एक बार की बात है कि एक राजा के नाक पर मक्खी बैठी थी। राजा ने म्यान से तलवार निकाली और मक्खी पर चला दी। मक्खी तो ना मरी, अलबत्ता राजा की नाक ज़रूर कट गई! इसलिए अपने गस्से पर काबू रखिये और अपने कुटुंब की नाक बचाईये! 

-मेघदूत मार्किट फुसरो, बोकारो झारखंड।