भारतीय दूरसंचार विधेयक को मिली संसद की मंजूरी

 

देश में आज भी ऐसे तमाम कानून है जो अंग्रेजों के समय से चले आ रहे है। कई कानून ऐसे है जिनमें बदलाव की ज़रूरत है। 150 वर्ष पुराने राजदोह से लेकर कई ऐसे कानून है जिस पर वर्तमान सरकार बदलाव भी कर रही है। ऐसो में दूरसंचार विधेयक, 2023 ध्वनिमत से गत दिवस पारित कर दिया गया। यह विधेयक 138 साल पुराने भारतीय टेलीग्राफ अधिनियम की जगह लेगा। इस विधेयक में सरकार को राष्ट्रीय सुरक्षा की दृष्टि से किसी भी देश या व्यक्ति के टेलीकॉम सेवा से जुड़े उपकरणों को निलंबित या प्रतिबंधित करने का अधिकार होने का प्रावधान किया गया है। साथ ही आपात स्थिति में मोबाइल सेवाओं और नेटवर्क पर प्रतिबंध लगाने के लिए भी प्रावधान किया गया है। नये विधेयक में उपग्रह स्पेक्ट्रम के आवंटन के लिए गैर नीलामी मार्ग प्रदान करने का भी प्रावधान है। सरकार राष्ट्रीय सुरक्षा और जन सुरक्षित लिए किसी भी टेलीकम्यूनिकेशन सेवा या नेटवर्क का अस्थायी अधिग्रहण कर सकती है।
केंद्र या राज्य सरकार द्वारा मान्यता प्राप्त संवाददाताओं के संदेशों को इंटरसेप्ट नहीं किया जा सकेगा, लेकिन अगर ये राष्ट्रीय सुरक्षित तहत प्रतिबंधित हैं तो इन्हें इंटरसेप्ट किया जा सकता है। भारत की संप्रभुता और अखंडता के अलावा रक्षा और सुरक्षा को ध्यान में रखते हुए सरकार टेलीकम्यूनिकेशन और सेवाओं से संदेशों के प्रसारण को लेकर निर्देश जारी कर सकती है। किसी भी संदेश को गैर-कानूनी रूप से इंटरसेप्ट करना दंडनीय है जिसके लिए तीन साल तक की सजा, दो करोड़ रुपए का जुर्माना या दोनों एक साथ हो सकते हैं। मसौदे में किसी कम्पनी द्वारा अपना परमिट सरेंडर करने की स्थिति में लाइसेंस, पंजीकरण का शुल्क वापस करने जैसे कुछ नियमों को आसान बनाने का प्रस्ताव किया गया था। नए बिल में सरकार को उपभोक्ताओं के हित में प्रवेश शुल्क, लाइसेंस शुल्क, जुर्माना माफ करने, बाज़ार में प्रतिस्पर्धा सुनिश्चित करने, दूरसंचार नेटवर्क की उपलब्धता या निरंतरता और राष्ट्रीय सुरक्षा सुनिश्चित करने की शक्ति प्रदान करने का प्रस्ताव है। संचार मंत्री अश्विनी वैष्णव के मुताबिक ये विधेयक जनता के हित में, सार्वजनिक आपातकाल के मामले में संदेशों के प्रसारण को रोकने और अवरोधन करने का प्रावधान करता है। यह नया विधेयक भारतीय टेलीग्राफ अधिनियम 1885, भारतीय वायरलेस टेलीग्राफी अधिनियम 1933 और टेलीग्राफ तार (गैर कानूनी कब्जा) अधिनियम 1950 की जगह लेगा। इस विधेयक में फर्जी सिम लेने पर 3 साल जेल और 50 लाख तक के जुर्माने का प्रावधान किया गया है। यही नहीं, विधेयक में उपभोक्ताओं को सिम कार्ड जारी करने से पहले अनिवार्य रूप से बायोमेट्रिक पहचान करने को कहा गया है। विधेयक के अनुसार कम्पनियों को प्रचार-विज्ञापनों के प्रसार के लिए उपभोक्ताओं की पूर्व अनुमति लेनी होगी। अधिक मूल्य की वसूली पर ट्राई सही कीमत तय करेगा। साथ ही, जांच के साथ कार्रवाई भी कर सकेगा। नए विधेयक में उद्योग जगत की चिंताओं का ख्याल रखते हुए ओवर द टॉप (ओटीटी) या इंटरनेट आधारित कॉलिंग और मैसेजिंग को दूरसंचार की परिभाषा में नहीं रखा गया है। इससे व्हाट्सएप और टेलीग्राम जैसे संचार सेवा मुहैया कराने वाली कंपनियों को बड़ी राहत मिलेगी। इस विधेयक से दूरसंचार कंपनियों के लिए कई अहम नियम सरल तो होंगे ही, इसके जरिये उपग्रह सेवाओं के लिए भी नए नियम भी लाए जाएंगे। इसमें उपग्रह स्पेक्ट्रम के आवंटन के लिए गैर-नीलामी का मार्ग उपलब्ध कराने के प्रावधान हैं। परिभाषित किया गया है कि किस परिस्थिति में प्रशासनिक तरीके से स्पेक्ट्रम आवंटित किए जाएंगे। विधेयक के अनुसार, केंद्र या राज्य सरकारों से मान्यता प्राप्त संवाददाताओं के भारत में प्रकाशन के लिए जारी किए गए प्रैस संदेशों को तब तक रोका नहीं जाएगा, जब तक कि उनके प्रसारण को सार्वजनिक आपातकाल, सार्वजनिक व्यवस्था के लिए लागू नियमों के तहत प्रतिबंधित नहीं किया गया हो। ये कानून तेज़ी से बदलते इस क्षेत्र के लिए पुराने पड़ते जा रहे थे और इन्हें बदलने की ज़रूरत काफी समय से महसूस की जा रही थी। लेकिन इस बिल में प्रस्तावित बदलावों पर विचार करने से पहले पिछले दस वर्षों के दौरान इस क्षेत्र में हुए सुधारों और उनके परिणामों पर एक नज़र डाल लेना बेहतर होगा।
सरकार ने इस दौरान एडजस्टेड ग्रॉस रेवेन्यू की परिभाषा, बैंक गारंटी की ज़रूरत में तो बदलाव किया ही, वायरलेस प्लानिंग एंड कोऑर्डिनेशन विंग की प्रक्रिया में भी पूर्ण सुधार किया। राइट्स ऑफ वे की प्रक्रिया भी आसान बनाई गई और वाजिब शुल्क निर्धारित किए गए। यही नहीं सुरक्षा उपायों के साथ 100 प्रतिशत एफडीआई की भी इजाजत दी गई। ज्ञात हो कि 2जी एलोकेशन को लेकर हुए विवाद और सुप्रीम कोर्ट द्वारा उसे अवैध करार दिए जाने के बाद इस क्षेत्र में जो शिथिलता दिखने लगी थी, वह इन सुधारों से दूर हुई। इसका असर भी इंडस्ट्री पर दिखा। बेस ट्रांससीवर स्टेशन की संख्या इस दौरान 6.25 लाख से बढ़कर 25.5 लाख हो गई। ब्रॉडबैंड इंटरनेट के उपभोक्ता 1.5 करोड़ से बढ़कर 85 करोड़ हो गए। राइट्स ऑफ वेमंजूरी में लगने वाला औसत समय 230 दिनों से घटकर 10 दिन हो गया। परिणाम यह कि 3 लाख करोड़ के अधिक एडजस्टेड ग्रॉस रेवेन्यू के साथ टेलिकॉम अब एक सनराइज सेक्टर के रूप में देखा जा रहा है। टेलिकम्युनिकेशंस बिल 2023 इन्हीं सुधारों की कड़ी को आगे बढ़ा रहा है। इसके मुताबिक स्पेक्ट्रम सौंपने का मुख्य तरीका ऑक्शन होगा। एडमिनिस्ट्रेटिव असाइनमेंट केवल जनहित (जैसे मेट्रो, सामुदायिक रेडियो) सरकारी कार्य (जैसे रक्षा, रेलवे, पुलिस) और उन क्षेत्रों तक सीमित होगा, जिनमें तकनीकी या आर्थिक कारणों से ऑक्शन को प्राथमिकता नहीं दी जा सकती। 
इसमें काम में न लाए जाने वाले स्पेक्ट्रम सरकार को वापस लौटाने का भी प्रावधान है। भूलवश कानून का उल्लंघन होने पर स्वेच्छा से अपनी गलती मानने का विकल्प है। विवाद निपटाने के लिए भी बहुस्तरीय व्यवस्था है और इस पूरी प्रक्रिया को डिजिटल रखा गया है। राष्ट्रीय सुरक्षा के लिहाज से इंटरसेप्शन के कुछ अधिकार सरकार के पास होने ज़रूरी हैं। फिर भी कुछ हलकों में इससे जुड़े पहलुओं पर चिंता है। लेकिन इस चिंता का औचित्य और उसका हल सही अर्थों में तभी सामने आएगा जब यह बिल कानून बनेगा और इसके उपयोग या दुरुपयोग से जुड़े पहलू व्यवहार में दिखने शुरू होंगे।