सदन में सरकार और विपक्ष के बीच बेहतर समन्वय ज़रूरी

संसद में हालिया सुरक्षा उल्लंघन के गंभीर राजनीतिक, चुनावी, विधायी और सुरक्षा निहितार्थ हैं। 146 सांसदों के अभूतपूर्व निलम्बन ने अब विपक्षी ‘इंडिया’ गठबंधन को एकजुट कर दिया है।
लोकसभा में दो घुसपैठियों को आगंतुक गैलरी से कूदते और लोकसभा के अंदर धुएं फैलाते हुए देखा गया। यह एक रहस्य है कि संसद की सुरक्षा करने वाली पांच स्तरीय सुरक्षा के बावजूद वे सदन में कैसे घुस गये।
दुर्भाग्य से अतीत में विभिन्न देशों की संसदों पर हमले हुए हैं। इनमें 1981 का स्पेनिश तख्ता-पलट का प्रयास, 2017 का ब्रिटिश संसद पर आतंकवादी हमला, 1987 का श्रीलंकाई संसद ग्रेनेड हमला, 2021 का यूएस कैपिटोल हमला और अक्तूबर 2023 का तुर्की सरकार भवन पर हमला शामिल है। प्रत्येक मामले में तुरंत उचित सुधारात्मक उपाय किये गये। भारतीय संसद पर हुए इस हमले के मामले में घटना के तुरंत बाद सुरक्षा और कड़ी कर दी गयी और संसद भवन की किलेबंदी कर दी गयी। यहां तक कि उल्लंघन की उच्च स्तरीय जांच के आदेश भी दिये गये। उच्च स्तरीय जांच रिपोर्ट सौंपे जाने के बाद और भी कदम उठाये जाने की उम्मीद है।
2023 का भारतीय संसद भवन की सुरक्षा का उल्लंघन पूर्व में 2001 के आतंकवादी हमले के बाद शुरू किये गये पहले से ही कठोर सुरक्षा उपायों को सख्ती से लागू करने के महत्व पर प्रकाश डालता है। आगंतुकों की गहन जांच के लिए यह ध्यान में रखना महत्वपूर्ण है। संसद सदस्यों को पास की अनुशंसा करते समय सतर्क रहना चाहिए और उन्हें अपने कार्यों के लिए जवाबदेह ठहराया जाना चाहिए। घुसपैठियों को भाजपा के मैसूरु सांसद की सिफारिश पर पास मिले थे।
सरकार ने गहन जांच के आदेश देकर त्वरित प्रतिक्रिया दी। घटना में शामिल सभी छह व्यक्तियों को पकड़ लिया गया है और उन पर कड़े कानूनों के तहत आरोप लगाये गये हैं। चौंकाने वाले सुरक्षा उल्लंघन के बाद विपक्ष ने गृह मंत्री अमित शाह से एक बयान की मांग की, जिसे उन्होंने देने से इन्कार कर दिया। इससे अराजकता और टकराव पैदा हुआ जिसे टाला जा सकता था अगर शाह ने संक्षिप्त बयान दिया होता। विपक्ष ने हंगामा किया जिसके कारण 146 अनियंत्रित सदस्यों को निलम्बित कर दिया गया, मुख्य रूप से ‘इंडिया’ गठबंधन से।
नियमों के मुताबिक दो कारणों से सदस्यों को सदन से निलम्बित किया जा सकता है। पहला तब होता है जब कोई सदस्य अध्यक्ष के अधिकार का अनादर करता है। दूसरा तब होता है जब कोई सदस्य जान बूझकर और लगातार सदन की कार्यवाही में बाधा डालता है। इस उदाहरण मेंए निलम्बित सदस्य राज्यसभा के अध्यक्ष और सभापति के अधिकार के खिलाफ गये।
संसद का अपमान करने राज्यसभा सभापति की नकल करने और सभापति की अवज्ञा करने के आरोप में कुल 146 सदस्यों को निलम्बित किया गया है। राज्यसभा सभापति और लोकसभा अध्यक्ष ने इस तरह के अनियंत्रित व्यवहार को अस्वीकार्य बताते हुए यह निर्णय लिया। 2024 के लोकसभा चुनावों को देखते हुए ऐसा प्रतीत होता है कि किसी भी पक्ष का ध्यान सदन चलाने पर नहीं है। अगले महीने होने वाले बजट सत्र में भी टकराव हो सकता है, लेकिन फिर भी लेखा बजट पर मतदान पारित किया जाना चाहिए।
चौंकाने वाले संसद उल्लंघन का चुनावी असर होगा क्योंकि विपक्षी दल मोदी सरकार के कथित अधिनायकवाद के विरोध में एक साथ आये हैं। वे इस मुद्दे को सड़कों पर ले गये हैं और इसे एक महत्वपूर्ण चुनावी मुद्दा बना दिया है। विपक्ष सरकार से पूछ रहा है कि जब वह संसद जैसी हाई-प्रोफाइल सम्पत्ति की रक्षा करने में विफल रही तो वह नागरिकों की सुरक्षा कैसे सुनिश्चित कर सकती है।
बेशक, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की एक मज़बूत नेता की प्रतिष्ठा को नुकसान पहुंचाना 2024 के चुनावों के लिए महत्वपूर्ण है। इसलिए पहले कदम के रूप में विपक्ष ने विपक्षी वोटों को विभाजित होने से बचाने के लिए लोकसभा चुनाव में भाजपा उम्मीदवारों के खिलाफ  एक संयुक्त उम्मीदवार खड़ा करने का फैसला किया है।
जहां तक कानून का सवाल है, आपराधिक कानून संशोधन विधेयक जैसे महत्वपूर्ण विधेयक पारित किये गये जबकि निलम्बित सदस्यों ने बाहर विरोध प्रदर्शन किया। अतीत में भी, कई कानून मिनटों में पारित कर दिये गये थे। सुप्रीम कोर्ट के पूर्व मुख्य न्यायाधीश एन.वी. रमना ने एक बार इस बात पर निराशा व्यक्त की थी कि संसद सदस्यों ने पारित किये गये विधेयकों पर पूरी तरह से बहस और चर्चा नहीं की।
संसद सदस्यों के पांच प्राथमिक कार्य हैं—कानून बनाना, बजट की समीक्षा करना, सरकारी गतिविधियों की देख-रेख करना, लोगों का प्रतिनिधित्व करना और सरकार को जवाबदेह बनाना, लेकिन सांसदों के सर्वोत्तम प्रयासों के बावजूद जब संसद सुचारू रूप से नहीं चल रही है तो उन्हें कठिनाइयों का सामना करना पड़ता है। सदन में व्यवस्था के बिना मुद्दों को उजागर करना और विशिष्ट विषयों पर अच्छी समझ स्थापित करना चुनौतीपूर्ण हो जाता है।
हालांकि संसद के कुशल कामकाज को सुनिश्चित करना सरकार की ज़िम्मेदारी है, विपक्ष को भी सार्थक प्रतिक्रिया देनी चाहिए। आखिरकार, संसद सदस्यों को एक कारण से ‘कानून निर्माता’  कहा जाता है और जब कानूनों की पूरी तरह से जांच और बहस नहीं की जाती है तो विधायी निकाय कमज़ोर हो जाता है। जनता की क्या प्रतिक्रिया है? जनता सांसदों के आचरण से स्तब्ध है और 146 का निलम्बन अभूतपूर्व था। अपने साथियों की चिंताओं को दूर करने के बजाय सांसद खुलेआम सदन में अराजकता फैलाते हैं, जो जनता के लिए बहुत निराशाजनक है।
कानून बनाने का कार्य संविधान द्वारा विधायिका को सौंपा गया है। सरकार इन कानूनों को क्रियान्वित करती है जबकि न्यायपालिका उन्हें संविधान की भावना के अनुसार लागू करती है। लोकतंत्र के फलने-फूलने के लिए संसद का प्रभावी कामकाज महत्वपूर्ण है। सदन को सुचारू रूप से चलाने के लिए सरकार और विपक्ष के बीच बेहतर समन्वय आवश्यक है। (संवाद)