रोज़ाना ‘देश सेवक’ के 28 वर्ष

पहली जनवरी के दिन बाबा सोहन सिंह भकना का चंडीगढ़ में पंजाबी समाचार पत्र ‘देश सेवक’ के कार्यालय में 28वां जन्म दिन मनाया गया। मेरी सेहत ने मुझे उपस्थित होने की इजाज़त नहीं दी, परन्तु मीडिया में प्रकाशित समाचारों व तस्वीरों ने मुझे 28 वर्ष पहले वाले वे दिन याद करवा दिये जब कामरेड हरकिशन सिंह सुरजीत ने मुझे भकना भवन में बिठा कर इस समाचार पत्र की सम्पादकीय सौंपी थी। 
सम्पादक की ज़िम्मेदारी तो मैं इससे एक दशक पहले ‘पंजाबी ट्रिब्यून’ में भी निभा चुका था, परन्तु यहां का चाव अलग था। पंजाबी ट्रिब्यून को अपेक्षित रूप बरजिन्दर सिंह हमदर्द ने दिया था, यहां यह कार्य मैंने करना था। कार्य करने वाले स्टाफ के चयन सहित। कामरेड सुरजीत को मेरा मित्र रघबीर सिंह सिरजना जानता था, जिसने मेरा नाम सुरजीत को सुझाया था। मैंने अपने पत्रकारिता के जानकार चयनित कर लिये, जिनमें से अधिकतर पंजाबी विश्वविद्यायल पटियाला में मेरे विद्यार्थी रह चुके थे। तीन-चार को मैंने अपने घर ही ठहराया और वे मेरे साथ मेरी गाड़ी में ही भकना भवन जाते व आते रहे। 
मेरे मन में अपने विद्यार्थियों की इच्छा पूरी करना भी था और रघबीर सिंह का विश्वास बनाए रखना भी। विश्वास यह कि इससे पहले भी नये कार्यों को शुरू करके सफल हो चुका था। पंजाब रैडक्रास के सचिव एवं पंजाबी विश्वविद्यालय के प्रोफैसर सहित, परन्तु यह कार्य अलग एवं उत्तम था। इसमें मेरी मदद करने वाले याददाश्त एवं तेज़तररी के क्रमश: मुज्जसमे कामरेड हरकंवल सिंह तथा सात समुद्र पार से आया नौजवान गुरदर्शन बीका भी थे। सभी की सोच एवं दृष्टि सांझी थी एवं मंज़िल भी।
समागम में  सीपीएम के कई नेता केरल जैसे दूर के राज्य से भी आये हुए थे। मैंने तब की देश सेवक डायरी को आज तक संभाल कर रखा है। बड़ी बात यह कि अब वाला ‘देश सेवक’ भी मुझे लगातार मिल रहा है और पासला टीम द्वारा जारी की मासिक पत्रिका ‘संग्रामी लहर’ भी।
अच्छा हो यदि लोकसभा चुनाव से पहले विपक्ष वामपंथी सोच को समर्पित सशक्त काडर से हाथ मिला कर ऐसे परिणाम निकाले, जिनके अधीन प्रत्येक भारतवासी धार्मिक एवं विभाजित करने वाली कट्टरता त्याग करके अच्छे माहौल का निर्माण कर सके। वर्तमान केरल जैसी शैक्षिणक एवं स्वास्थ्य सुविधाओं वाला प्रबंध पूरे देश में बने। 
पढ़ने-सुनने का कच्च-सच्च
स्कूल में पढ़ते हुए जब किसी पुस्तक में कोई नई बात पढ़नी तो घर आ कर अपनी मां से साझा करनी। उसे विश्वास नहीं होता तो बताना पड़ता कि मैंने यह बात पुस्तक में पढ़ी है। मां ने चुप हो जाना। यह भी मान लेना कि धरती गोल है।
कालेज की पढ़ाई पूरी हुई तो मैं गांव छोड़ कर रोज़ी-रोटी की तलाश में अपने मामाओं के पास दिल्ली चला गया। वहां उनका टैक्सियों का कारोबार था। चांदनी चौक की प्लीयर गार्डन में पड़ते प्रकाशकों के साथ उठने-बैठने सी जल्द ही मुझे दरिया गंज से प्रकाशित दो साहित्यिक समाचार पत्रों के सम्पादकीय स्टाफ में काम मिल गया। कविता-कहानियां लिखने वाले अपनी रचना देने मेरे कार्यालय आते तो अपने बारे बातें भी करते। मैं लिखने-लिखाने की दुनिया, पुस्तकों एवं पैम्फलिटों का अनुवाद करता और डाक के माध्यम से छोटे भाई-बहनों के लिए गांव भी भेज देता। 
एक बार गांव गया तो किसी बात पर मां से तकरार हो गया। वह नहीं मानी तो मैंने अपना अंतिम हथियार इस्तेमाल किया, ‘पुस्तक में प्रकाशित हुआ, दिखाऊं।’
मां इनती पढ़ी हुई तो नहीं थी, परन्तु समझदार थी। चूल्हे पर पकती सब्ज़ी में कड़छी फेरते हुए बोली, ‘किसी तेरे जैसे ने लिख दिया होगा।’ मैं अपनी मां का यह उत्तर उन्हें भी सुनाता हूं, जो मुझे अपनी प्रकाशित पुस्तकें देने आये मुझ से आशा करते हैं कि मैं कोई टिप्पणी करांगा। जैसे-जैसे बड़ा होता जाता हूं, पुस्तकों के पार्सल भी बढ़ते जाते हैं। कोरियर वाले घंटियां बजा कर आराम में विघ्न डालते हैं और घर आकर पुस्तकें देने वाले दो-चार घंटे पहली ही फोन खड़का देते हैं। महीने के अंत तक पुस्तकों का ढेर लग जाता है। जिल्द वाली पुस्तकों को रद्दी वाले भी हाथ नहीं डालते। पहलियों में मिलने आये लेखक बातों से मनोरंजन कर जाते हैं। अब उनके हाथ में भी मोबाइल होता है, जिसके पेट में सांस ले रहा ‘गूगल बाबा’ सवालों के उत्तर देने के लिए सदा तैयार रहता है। पुस्तकों व पत्रिकाओं के पृष्ठ खंगालने की आवश्यकता ही नहीं। अपने बचपन में हम चौबारे पर चढ़ कर उस डाकिये का रास्ता देखते थक जाते थे जिसने ‘प्रीत लड़ी’, ‘फुलवाड़ी’, ‘लोक साहित्य’ या ‘पंज दरिया’ लेकर आना होता था। 
पुस्तकें लिखने वालों में अध्यापक सबसे आगे हैं। सेवामुक्त होते ही आत्मकथा लिख लेते हैं। समझते हैं कि उनका जीवन सबसे अलग था। कौन, किसे पढ़े। लिखने वाले मेरी मां के कहने की भांति मेरे जैसे हैं। मैं अपनी स्वर्गीय मां जैसा।
अंतिका
—प्रकाश कौर संधू—
तवील स़फर है, याद-ए-राह कुछ साथ ले चलें,
कुछ पुर स्कून यादें, कुछ ़ख्वाब ले चलें।