दिशाहीनता का आलम

विगत समय में मुख्यमंत्री भगवंत मान ने ज़ोर-शोर से जो घोषणाएं की थीं, उनमें से एक अहम घोषणा प्रदेश-वासियों को मुफ्त बिजली देने की थी। प्रदेश के चुनावों से पहले की गई इस घोषणा को नई सरकार अमली जामा पहनाने के लिए बड़ी उत्सुक थी। विगत सरकारों ने भी कुछ वर्गों को भरमाने के लिए इसी तरह मुफ्त बिजली देने की घोषणाएं की थीं, तथा इन घोषणाओं को उन पार्टियों ने इस तरह लागू किया था, जैसे बिजली के उत्पादन पर कोई खर्च न आता हो और न ही सरकारें ऐसा करते हुए किसी तरह आर्थिक बोझ पड़ा महसूस करती थीं।
यदि पिछली सरकारें ऐसा करती रही हैं तो मतदाताओं को भरमाने के लिए यह जादू की छड़ी नई   उठी पार्टी क्यों नहीं पकड़ती? ऐसे वायदों तथा दावों के दम पर पंजाब में आम आदमी पार्टी की सरकार बन गई। इसलिए उसने सभी वर्गों के लोगों के लिए प्रति परिवार मासिक 300 यूनिट मुफ्त बिजली देने की प्रक्रिया शुरू कर दी। आज ऐसी मुफ्तखोरी करने वाले उपभोक्ताओं की संख्या 97वें प्रतिशत से ऊपर बनती है। आज भी मुख्यमंत्री साहिब पूरे जोश से बिजली के क्षेत्र में अपनी उपलब्धियों का प्रचार अपनी फोटो लगा कर मीडिया में लगातार कर रहे हैं। उन्होंने समाचार पत्रों में प्रकाशित अपने विज्ञापन में दावा किया है कि 90 प्रतिशत से अधिक लोगों का ज़ीरो बिल आ रहा है। यह भी कि 100 प्रतिशत ट्यूबवैलों के लिए मुफ्त बिजली दी जा रही है। यह भी कि किसानों को सिंचाई हेतु निर्विघ्न बिजली सप्लाई की जा रही है। इसके साथ ही वह यह दावा भी कर रहे हैं कि उनकी ओर से एक निजी थर्मल प्लांट खरीद कर बड़े इतिहास का सृजन किया गया है तथा इससे 350 करोड़ रुपये की वार्षिक बचत होगी। इसके साथ ही औद्योगिक इकाइयों की बिजली संबंधी समस्याओं का प्राथमिकता के आधार पर उनकी ओर से समाधान किये जाने का दावा किया जा रहा है तथा सब से बड़ा दावा यह कि विद्युत निगम को 6 मास में 564 करोड़ से अधिक का लाभ हुआ है। ऐसे जादुई बयानों से लोगों को कुछ समय के लिए भ्रमित तथा मूर्ख बनाने का यत्न ज़रूर किया जा सकता है परन्तु ऐसा कुछ करने की भी एक सीमा होती है। अंतत: तथ्यों के आधार पर वास्तविक तस्वीर लोगों के सामने आ ही जाएगी। जब से यह घोषणा हुई है, तभी से ही सरकार की ओर से विद्युत निगम को दी जाने वाली सबसिडी की राशि लगातार बढ़ती जा रही है। बिजली की खप्त आसमान छूती दिखाई दे रही है। 300 यूनिट मुफ्त का आंकड़ा तो परिवारों ने पूरा करना ही है। यदि यह आंकड़ा बढ़ता है तो परिवारों के भिन्न-भिन्न यूनिट बना कर नये मीटर लगवाये जा सकते हैं। इसलिए विगत वर्षों में नये मीटरों की भरमार हो गई है तथा सबसिडी का बिजली बिल भी उसी तरह बढ़ता जा रहा है। उदाहरण के रूप में दिसम्बर, 2022 में 200.89 लाख से अधिक ज़ीरो बिल जारी हुये थे तथा ज़ीरो बिलों की राशि 388 करोड़ से अधिक बनती थी। दिसम्बर 2023 में यह सबसिडी बढ़ कर 540 करोड़ से पार हो गई थी। अभिप्राय एक वर्ष में ही इसमें 152 करोड़ रुपये की वृद्धि हो गई थी। वैसे तो अक्सर यह कहा जाता है कि सर्दी के मौसम में बिजली की मांग कम हो जाती है परन्तु इसके विपरीत यह मांग लगातार बढ़ती जा रही है तथा साथ ही सबसिडी की राशि में भी वृद्धि होती जा रही है। इस तरह जुलाई, 2022 से दिसम्बर 2023 तक सबसिडी के बिलों की राशि लगभग 12000 करोड़ के पहुंच गई थी। इस नव वर्ष में सबसिडी का यह बिल 22,000 करोड़ के आस-पास हो जाने की सम्भावना है। इसमें 10,000 करोड़ कृषि मोटरों की सबसिडी, 9000 करोड़ घरेलू उपभोक्ताओं की सबसिडी तथा 3000 करोड़ की औद्योगिक सबसिडी भी शामिल है। एक अनुमान के अनुसार सरकार को नव वर्ष में प्रत्येक मास 1833 करोड़ से अधिक की बिजली सबसिडी अदा करनी पड़ेगी। यदि सरकार का बिजली सबसिडी का वार्षिक बिल 22 हज़ार करोड़ बनता है तो यह प्रदेश के कुल वार्षिक राजस्व का 47 प्रतिशत होगा, जबकि राष्ट्रीय स्तर पर बिजली सबसिडी की अधिक से अधिक औसत दर 24/25 प्रतिशत तक ही है। सरकार की ऐसी कारगुज़ारी पर आश्चर्य के साथ-साथ प्रदेश के भविष्य के प्रति चिंता भी पैदा होती है। 
एक अनुमान के अनुसार अब तक इस सरकार ने 70 हज़ार करोड़ के लगभग नया ऋण ले लिया है। उसके अपने कहने के अनुसार सरकार की आय का बहुत हिस्सा ऋण के ब्याज और ऋण का मूल उतारने में ही खर्च हो जाता है। अब बहुत से सरकारी क्षेत्रों में कर्मचारियों को वेतन देने में भी परेशानियां आने लगी हैं। भविष्य में ये परेशानियां मुश्किलों में ही नहीं अपितु बाधाओं में बदल जाएंगी। ऐसी परिस्थितियों में न तो प्राथमिक ढांचे की मज़बूती ही की जा सकती है, और न ही अन्य विकास के कामों को ही छुआ जा सकता है। दूसरी तरफ हर वर्ग की ओर से धरने, प्रदर्शन, शिकायतें और गिले-शिकवों का दौर पूरी गति से चलने लगा है। एक तरफ उत्तर प्रदेश और गुजरात जैसे प्रदेशों में लाखों, करोड़ों की लागत के साथ उद्योग व अन्य विकास कार्यों में तेज़ी लाई जा रही है। दूसरी तरफ पंजाब में से उद्योगपति और व्यापारी किसी न किसी ढंग-तरीके से यहां से निकलने को प्राथमिकता दे रहे हैं।  निराशा के आलम में प्रदेश के नौजवान हर ढंग-तरीके के साथ जहाज़ों पर चढ़ने के लिए उत्सुक और इच्छुक दिखाई देते है। ऐसे हालात जहां बड़ी निराशा को जन्म दे रहे हैं, वहीं प्रदेश की दुरावस्था के भी प्रतीक बनने लगे हैं।

—बरजिन्दर सिंह हमदर्द