चांद पर चमत्कार के बाद भारत का ‘सूर्य नमस्कार’

चांद के दक्षिणी ध्रुव पर चंद्रयान-3 की सफल लैंडिंग और रोवर प्रज्ञान द्वारा चंद्रमा की भौतिक-रासायनिक जानकारियां एकत्रित करने के एक पखवाड़े के भीतर ही भारतीय वैज्ञानिकों ने 2 सितम्बर, 2023 को सूर्य की ओर भी अपना अति महत्वाकांक्षी ‘आदित्य-एल1’ सूर्य मिशन भेजा था और 6 जनवरी को निर्धारित समय पर शाम के करीब 4 बजे जैसे ही आदित्य-एल1 मिशन अपनी मंजिल ‘लैंग्रेज प्वाइंट-1’ (एल1) पर पहुंचा और अपनी अंतिम कक्षा में स्थापित होते ही जैसे ही सूर्य को ‘हैलो’ बोला, उसी के साथ भारतीय वैज्ञानिकों ने सफलता की एक और नई इबारत लिख दी। भारत का यह बेहद जटिल और पेचीदा अंतरिक्ष अभियान था, जिसे चंद्रयान मिशन की तुलना में ज्यादा कठिन माना जा रहा है क्योंकि यह चंद्रमा की तुलना में कई गुना ज्यादा दूरी पर चक्कर लगाकर एल1 पर पहुंचा। आदित्य-एल1 को जिस एल1 कक्षा में स्थापित किया गया है, वह पृथ्वी से करीब 15 लाख किलोमीटर दूर है जबकि चंद्रमा यहां से करीब तीन लाख किलामीटर दूर ही है। आदित्य-एल1 ने अपनी 126 दिन की यात्रा में करीब 30 लाख किलोमीटर से ज्यादा की दूरी तय की क्योंकि यह एल-1 तक पहुंचने के लिए एक घुमावदार मार्ग से गुजरा। पृथ्वी और सूर्य के गुरुत्वाकर्षण बल पर काबू पाते हुए आदित्य एल-1 लंबा सफर तय करके जिस लैंग्रेज प्वाइंट-1 के पास हैलो ऑर्बिट में रुका है, वहीं पर रहते हुए अब यह सूर्य की विभिन्न गतिविधियों, आंतरिक और बाहरी वातावरण इत्यादि का अध्ययन करेगा। हैलो ऑर्बिट सूर्य के चारों ओर की एक खास ऑर्बिट है, जो लैंग्रेज प्वाइंट के पास है। अंतरिक्ष यान अथवा खगोलीय पिंड इस कक्षा में घूमते हैं। इसरो प्रमुख एस. सोमनाथ के मुताबिक अब आदित्य-एल1 पर पढ़ने वाले प्रभावों को मापा जा रहा है, जिसके लिए हमारे पास सूर्य से निकलने वाले पार्टिकल का माप है, कम ऊर्जा और उच्च ऊर्जा एक्सरे माप भी है, एक मैग्नेटोमीटर भी है, जो हैलो ऑर्बिट में प्रवेश करने के बाद आदित्य पर पढ़ने वाले गुरूत्वाकर्षण बल के दबाव को मापने में मददगार है। उनका कहना है कि आदित्य-एल1 में अभी जितना ईंधन बचा है उससे यह कम से कम पांच वर्ष तक काम करेगा।
सूर्य के बाहरी आवरण के अध्ययन और अनुसंधान के लिए समर्पित इसरो का यह पूर्ण रूप से स्वदेशी सौर मिशन था, जो अब सूर्य के अनछुए, अनसुलझे और गूड़ रहस्यों को समझने और उसकी बाहरी सतह का पर्यवेक्षण करने का प्रयास करेगा। आदित्य-एल1 मिशन का प्रमुख उद्देश्य एल1 प्वाइंट के चारों ओर की कक्षा से सूर्य के बाह्य भाग का अध्ययन करना है। सौर वर्णमंडल के सबसे बाह्यतम भाग को ‘सौर किरीट’ या ‘कोरोना’ कहते हैं, जो क्रोमोस्फेयर का सहज विस्तार तो है लेकिन गुणधर्मों में भिन्न है। इसका विस्तार बाहरी अंतरिक्ष में लाखों किलोमीटर तक फैला है। इसके अध्ययन के लिए इसरो ने आदित्य-एल1 उपग्रह में रिमोट सेसिंग और यथा स्थान (इन-सीटू) अध्ययन के लिए सात विशेष किस्म के उपकरण लगे हैं। सूर्य से प्रचुर मत्रा में पराबैगनी किरणें निकलती हैं और आदित्य-एल1 मिशन 2 हजार से 4 हजार एंगस्ट्रॉम रेंज वाली तरंगदैर्घ्य की पराबैंगनी किरणों का अध्ययन करेगा। इससे पहले कोई भी देश इस स्तर की पराबैंगनी किरणों का अध्ययन नहीं कर सका है। आदित्य-एल1 मिशन के लिए एक महत्वपूर्ण उपकरण सोलर अल्ट्रावायलेट इमेजिंग टेलीस्कोप (एसयूआईटी) को पुणे स्थित इंटर-यूनिवर्सिटी सेंट फॉर एस्ट्रोनॉमी एंड एस्ट्रोफिजिक्स (आईयूसीएए) ने तैयार किया था, यही टेलीस्कोप 2000-4000 एंगस्ट्रॉम के तरंगदैर्ध्य की इन पराबैंगनी किरणों का अध्ययन करेगा। सूर्य की ऊपरी सतह पर कुछ विस्फोट होते रहते हैं लेकिन यह कब होंगे और इसके प्रभाव क्या होंगे, इसकी कोई सटीक जानकारी दुनिया के किसी भी देश के पास नहीं है। ऐसे में इस टेलीस्कोप का एक अहम उद्देश्य इनका अध्ययन करना भी है। इसके लिए कृत्रिम बुद्धिमत्ता (एआई) पर आधारित एक तत्व विकसित किया गया है, जो इसका डेटा एकत्र कर उसका मूल्यांकन करेगा।
सूर्य के अध्ययन के लिए भारत का आदित्य-एल1 सूर्य की सतह के बजाय एल1 तक ही भेजा गया है। दरअसल अब तक ऐसी कोई तकनीक विकसित नहीं हुई है, जो सूर्य की सतह अथवा उसके बेहद निकटतम बिंदु तक पहुंच सकें। दरअसल सूर्य बेहद गर्म गैसों से बना एक ऐसा गोला है, जिसके केंद्र का तापमान करीब 4.5 करोड़ डिग्री सेल्सियस है और अनौपचारिक रूप से इसे ‘पीला वामन तारा’ भी कहा जाता है। जिसमें 73 प्रतिशत हाइड्रोजन और 25 प्रतिशत हीलियम है। इसके अलावा सूर्य के अंदर ऑक्सीजन, कार्बन, नियॉन, लोहा इत्यादि अन्य भारी तत्व भी अल्प मात्रा में मौजूद है। सूर्य और पृथ्वी के बीच की दूरी करीब 5 करोड़ किलोमीटर है जबकि हमारा आदित्य-एल1 15 लाख किलोमीटर एल1 बिंदु पर स्थापित किया गया है, जो सूर्य और पृथ्वी की कुल दूरी का केवल सौवां हिस्सा है। लैग्रेंज प्वाइंट का नाम प्रख्यात फ्रैंच-इतालवी नक्षत्र विज्ञानी, गणितज्ञ, भौतिकविद और सेलेस्टियल मेकेनिक्स के पुरोधा जोसेफलुइ लैग्रेंज के सम्मान में रखा गया था। पृथ्वी और सूर्य के बीच ऐसे पांच बिंदु हैं, जहां सूर्य और पृथ्वी का गुरुत्वाकर्षण बल संतुलित अवस्था में आ जाता है। वैज्ञानिकों के अनुसार इन पांच लैग्रेंज प्वाइंट को एल1, एल2, एल3, एल4 और एल5 के नाम से जाना जाता है। एल1 बिंदु दो बड़े पिंडों के बीच स्थित है, जहां दोनों पिंडों का गुरुत्वाकर्षण बल बराबर और विपरीत है। एल2 बिंदु छोटे पिंड से परे स्थित है, जहां छोटे पिंड का गुरुत्वाकर्षण बल बड़े पिंड के कुछ बल को निष्प्रभावी कर देता है। एल3 बिंदु छोटे पिंड के विपरीत बड़े पिंड के पीछे स्थित है। एल4 और एल5 बिंदु बड़े पिंड के चारों ओर उसकी कक्षा में छोटे पिंड से 60 डिग्री आगे और पीछे स्थित होते हैं। ये ऐसे बिंदु हैं, जहां कोई भी वस्तु सूर्य और पृथ्वी से बराबर दूरी पर स्थिर रह सकती है और ऐसे में यदि इस बिंदु पर किसी भी वस्तु को रखा जाता है तो वह आसानी से दोनों के बीच स्थिर रहती है और ऊर्जा भी कम लगती है। पहला लैग्रेंज प्वाइंट (एल1) पृथ्वी और सूर्य के बीच 15 लाख किलोमीटर की दूरी पर है।
आदित्य-एल1 के साथ भेजे गए सात महत्वपूर्ण पेलोड अलग-अलग वेव बैंड में फोटोस्फेयर (प्रकाशमंडल), क्रोमोस्फेयर (सूर्य की दिखाई देने वाली सतह से ठीक ऊपरी सतह) और सूर्य की सबसे बाहरी परत (कोरोना) का अवलोकन करने में मदद करेंगे। इन सात पेलोड में से चार लगातार सूर्य पर लगातार नज़र रखेंगे जबकि तीन पेलोड परिस्थितियों के हिसाब से कणों और मैग्नेटिक फील्ड का अध्ययन करेंगे। सूर्य का अध्ययन करने के लिए आदित्य-एल1 में लगाए गए ये पेलोड हैं दृश्यमान उत्सर्जन रेखा कोरोनाग्राफ (वी.ई.एल.सी.), सौर पराबैंगनी प्रतिबिंबन टेलीस्कोप (एस.यू.आई.टी.), सौर निम्न ऊर्जा एक्स-रे वर्णक्रममापी (एस.ओ.एल.ई.एक्स.एस.), उच्च ऊर्जा एल1 ऑर्बिटिंग एक्स-रे वर्णक्रममापी (एच.ई.एल.1ओ.एक्स.), आदित्य सौर पवन कण प्रयोग (ए.एस.पी.ई.एक्स), प्लाज्मा विश्लेषक पैकेज (पी.ए.पी.ए.) तथा उन्नत त्रि-अक्षीय उच्च विभेदन डिजिटल मैग्नेटोमीटर, जिनके जरिये फोटोस्फेयर, क्रोमोस्फेयर और सूर्य की सबसे बाहरी परतों यानी कोरोना का अध्ययन किया जाएगा और इसके लिए इलैक्ट्रोमैग्नेटिक तथा पार्टिकल डिटेक्टर्स का उपयोग किया जाएगा। इनके जरिये कोरोना यानी सूर्य की बाहरी परत की गर्मी, सूर्य की बाहरी परत से उठने वाले सौर तूफानों की गति और उसके तापमान के पैटर्न को समझने का प्रयास किया जाएगा। सोलर अल्ट्रा-वायलेट इमेजिंग टेलीस्कोप सूर्य के फोटोस्फेयर और क्रोमोस्फेयर की तस्वीरें लेगा जबकि सोलेक्स और हेल1ओएक्स सूर्य की एक्सरे स्टडी करेंगे, एसपेक्स और प्लाज्मा एनालाइजर का कार्य सौर पवन का अध्ययन करना और इसकी ऊर्जा को समझना है और मैग्नेटोमीटर एल1 के आसपास अंतर-ग्रहीय चुम्बकीय क्षेत्र को मापेगा। ‘कोरोना’ सूर्य के बाहरी वातावरण को कहा जाता है, जो बेहद गर्म होता है और इसे केवल पूर्ण सूर्यग्रहण के दौरान ही देखा जा सकता है। इसरो ने अपने मिशन के तहत आदित्य-एल1 के साथ कोरोनाग्राफ जैसा एक टेलिस्कोप (वीईएलसी) भी भेजा है, जो कोरोना पर न केवल चौबीसों घंटे नज़र रखेगा बल्कि ग्राउंड स्टेशन पर प्रतिदिन 1440 फोटो भी भेजेगा। इस सूर्य मिशन के जरिये इसरो सूर्य के वातावरण की जानकारी रिकॉर्ड करने के साथ-साथ पृथ्वी पर पढ़ने वाली सूर्य की किरणों के असर का भी पता लगाएगा।
आदित्य-एल1 मिशन के सफल होने के बाद अब सौर अंतरिक्ष में मौसम की गतिशीलता, सूर्य के कोरोना का तापमान सौर तूफान व उत्सर्जन, पराबैंगनी किरणों के पृथ्वी पर पढ़ने वाले प्रभावों के अध्ययन इत्यादि में बड़ी मदद मिलेगी, साथ ही इससे जुड़ी समस्याओं का समाधान भी मिलेगा। एल1 बिंदु से इसरो सूर्य के बाहरी आवरण पर होने वाली तमाम छोटी-बड़ी गतिविधियों को रीयल टाइम मॉनीटर करने में पूरी तरह सक्षम होगा। चूंकि पृथ्वी पर वायुमंडल है, जो सूर्य से आने वाले अधिकांश खतरनाक रेडिएशन को अवशोषित कर लेता है, इसलिए पृथ्वी से सूर्य का अध्ययन सही तरीके से नहीं किया जा सकता और सूर्य के व्यापक अध्ययन के लिए अंतरिक्ष में जाना जरूरी है। आदित्य-एल1 उपग्रह एक प्रकार का अंतरिक्ष आधारित रक्षक है, जो सौर ज्वालाओं और आगामी सौर तूफानों पर नज़र रखेगा। वैज्ञानिकों को उम्मीद है कि इस मिशन से अंतरिक्ष में मौसम की गतिशीलता, सूर्य के कोरोना के तापमान, सौर तूफान एवं उत्सर्जन एवं पराबैगनी किरणों के धरती और खासकर ओजोन परत पर पढ़ने वाले प्रभावों का अध्ययन करने में बहुत बड़ी मदद मिलेगी। इसरो के वैज्ञानिकों को पूरी उम्मीद है कि आदित्य-एल1 मिशन के अंत में सौर संकेतों को समझने के लिए पर्याप्त डेटा होगा, जो सीएमई की भविष्यवाणी करने के लिए ज़रूरी है।