अंटार्कटिका भी आ गया प्लास्टिक प्रदूषण की ज़द में!

अंटार्कटिका दुनिया के प्रदूषण का थर्मामीटर कहलाता है। अंटार्कटिका पृथ्वी का दक्षिणतम महाद्वीप है जिसमें दक्षिणी ध्रुव अंतर्निहित है। यह दक्षिणी गोलार्द्ध के अंटार्कटिक क्षेत्र और लगभग पूरी तरह से अंटार्कटिक वृत के दक्षिण में स्थित है। यह चारों ओर से दक्षिणी महासागर से घिरा हुआ है, लेकिन आपको यह जानकर आश्चर्य होगा कि आज अंटार्कटिका जैसा ठंडा स्थान भी प्रदूषण से पूरी तरह मुक्त नहीं है और अंटार्कटिका महाद्वीप के पानी में प्लास्टिक के कण मिले हैं। कहना गलत नहीं होगा कि धरती पर मौजूद सभी सात महाद्वीपों में अंटार्कटिका सबसे ठंडा महाद्वीप है और वह इसलिए कि यहां का 98 फीसदी हिस्सा बर्फ  से ढंका हुआ है। कहते हैं कि लगभग दो किलोमीटर की मोटी परत के रूप में बर्फ  अंटार्कटिका की धरती पर फैली हुई है। दक्षिणी ध्रुव पर स्थित इस महाद्वीप पर तेज़ हवाएं चलती हैं। यहां का तापमान हमेशा चार डिग्री से नीचे ही रहता है।
अध्ययनकर्ताओं ने इस बात की खोज की है कि दुनिया का अत्यंत ठंडा यह महाद्वीप भी प्रदूषण की जद में आ चुका है। धरती के कोने पर आबादी से बहुत दूर होने के बावजूद यहां पानी में प्लास्टिक के कण मिलना हर किसी को अंचभित करता है। अब सवाल यह उठता है कि आखिर यहां प्रदूषण फैला कैसे? तो इसका सटीक उत्तर यह है कि मानव ही कहीं न कहीं इसका कारण है। यहां पर प्रदूषण का पता लगाकर रिसर्चर धरती पर लगातार बढ़ते प्रदूषण का हाल जान जाते हैं। अंटार्कटिका पर ताज़े पानी का बहुत विशाल भंडार है जिसमें माइक्रोप्लास्टिक के कण मिले हैं। प्रश्न उठता है कि आखिर ये प्लास्टिक आता कहां से है जबकि यहां पर आबादी न के बराबर है। वास्तव में माइक्रोप्लास्टिक अपने आप में एक प्रदूषक है।
 प्रकृति या सागर कभी भी प्लास्टिक पैदा नहीं करते। मानव ही प्लास्टिक निर्मित करता है और मानव जनित गतिविधियों के कारण ही आज अंटार्कटिका जैसी जगह भी प्लास्टिक से अछूती नहीं रही है।  प्लास्टिक का यहां होना क्षेरत्र के जीवों के लिए बहुत ही खतरनाक है। वास्तव में माइक्रोप्लास्टिक कछुओं और पक्षियों सहित जलीय जीवों को नुकसान पहुंचाता है। यह पाचन तंत्र को अवरुद्ध करता है और खाने के व्यवहार को बदल देता है। इसके बाद यह समुद्री जानवरों में वृद्धि और प्रजनन को कम कर देता है। विदित हो कि वैज्ञानिकों ने क्रस्टेशियंस, मछली, समुद्री कछुए और सील सहित सैकड़ों समुद्री जीवों में माइक्रोप्लास्टिक का पता लगाया है और उन्हें उत्तरी अटलांटिक से लेकर तटीय अर्जेंटीना से लेकर दक्षिण चीन सागर तक दुनिया भर में प्लास्टिक खाने वाले जानवर मिले हैं। वास्तव में अंटार्कटिक जल में प्लास्टिक प्रदूषण एक उभरता हुआ खतरा है। वास्तव में माइक्रोप्लास्टिक्स कई स्रोतों से आ सकते हैं यथा व्यक्तिगत देखभाल उत्पाद जैसे टूथपेस्ट, शैंपू और शॉवर जैल, कपड़े धोने से सिंथेटिक फाइबर और प्लास्टिक मलबे के बड़े टुकड़ों के टूटने से। 
माइक्रोप्लास्टिक आर्कटिक और अंटार्कटिक के समुद्रों में पाए गए हैं, जिनमें सतही जल और गहरे समुद्र और उथले तलछट शामिल हैं। जानकारी के अनुसार न्यूज़ीलैंड में कैंटरबरी विश्वविद्यालय के शोधकर्ताओं ने अंटार्कटिका में 19 स्थानों से नमूने एकत्र किए और जिनमें प्रत्येक में छोटे प्लास्टिक के टुकड़े थे।  प्लास्टिक सामग्री के क्षरण से माइक्रोप्लास्टिक उत्पन्न होते हैं और चावल के दाने से भी छोटे होते हैं। कभी-कभी नग्न आंखों के लिए भी अदृश्य होते हैं। शोधकर्ताओं को पिघली हुई बर्फ  में प्रति लीटर औसतन 29 कण मिले हैं। उन्होंने 13 विभिन्न प्रकार के प्लास्टिक की पहचान की और सबसे आम पॉलीथीन टेरेफ्थेलेट (पीईटी) था, जिसका उपयोग ज्यादातर शीतल पेय की बोतलों और कपड़ों में किया जाता था। यह 79 प्रतिशत नमूनों में पाया गया। 
कहना गलत नहीं होगा कि आज हम धरती के दिल कहलाने वाले इस खूबसूरत महाद्वीप को लगातार अपनी गतिविधियों से गंदा व प्रदूषित कर रहे हैं। अंटार्कटिका में प्लास्टिक का मिलना यह दर्शाता है कि दुनिया अपने कचरे का निस्तारण ठीक से नहीं कर रही है और धरती पर लगातार प्रदूषण बढ़ रहा है। आज अंटार्कटिका में जो प्लास्टिक मिल रहा है, संभवतया वह बहुत पहले इस्तेमाल हुआ होगा, क्योंकि प्लास्टिक के ये कण बहुत ही महीन हैं और प्लास्टिक को अपघटित होने में सैकड़ों-हज़ारों वर्ष का लम्बा समय लग जाता है। यहां यह भी विदित हो कि माइक्रोप्लास्टिक प्लास्टिक के वे कण होते हैं जिनका व्यास 5 मि.मी. से कम होता है। हम भावी पीढ़ियों के लिए माइक्रोप्लास्टिक छोड़ रहे हैं, हालांकि वर्तमान में जो प्लास्टिक अंटार्कटिका में मिला है, वह मौजूदा पीढ़ी का नहीं है। अंटार्कटिक महासागर लगभग 8.5 मिलियन वर्ग किलोमीटर में फैला है और पृथ्वी के महासागरों का 5.4 प्रतिशत प्रतिनिधित्व करता है। समुद्री पारिस्थितिकी तंत्र असुरक्षित है। ब्रिटिश शोधकर्ताओं ने अंटार्कटिक सागर में प्रवाह या माइक्रोप्लास्टिक के बारे में सभी उपलब्ध जानकारी का अध्ययन किया है। उन्होंने गणना की है कि क्षेत्र में पर्यटन, मछली पकड़ने और वैज्ञानिक गतिविधियों के परिणामस्वरूप व्यक्तिगत देखभाल उत्पादों से 500 किलोग्राम तक माइक्रोबीड्स और 25.5 बिलियन सिंथेटिक फाइबर प्रति दशक पानी में प्रवेश करते हैं। वर्ष 2019 के एक अध्ययन में यह अनुमान लगाया गया है कि अंटार्कटिक प्रायद्वीप के पास सतही जल में प्रति वर्ग किलोमीटर औसतन लगभग 1,800 प्लास्टिक के टुकड़े थे। माइक्रोप्लास्टिक अंटार्कटिक महासागर की सभी परतों में पाए जाते हैं जिसमें दक्षिणी ध्रुव के तट पर समुद्र तल भी शामिल है। एडवेंचर साइंस के हालिया शोध से पता चलता है कि अंटार्कटिक प्रायद्वीप के आसपास के समुद्र में प्रति लीटर औसतन 22 माइक्रोप्लास्टिक के टुकड़े होते हैं। दक्षिणी शेटलैंड द्वीप समूह में किए गए एक अन्य अध्ययन में 6 से 11 मीटर की गहराई पर प्रति वर्ग मीटर 766 प्लास्टिक कण पाए गए। बर्फ  के पिघलने में तेड़ी लाकर ये जलवायु को प्रभावित कर सकते हैं। 
प्लास्टिक के दुष्परिणामों से भलीभांति अवगत होने के बावजूद मनुष्य निरन्तर इसका इस्तेमाल कर रहा हैं, जो समस्त प्राणियों के स्वास्थ्य तथा पर्यावरण की दृष्टि से बहुत घातक है। मनुष्य को प्लास्टिक का इस्तेमाल बंद करके अपनी भावी पीढ़ियों को उज्ज्वल भविष्य देना चाहिए। (अदिति)