विश्व में दोआबा का गौरव बढ़ाने वाले दरवेश राजनीतिज्ञ थे दिलबाग सिंह नवांशहर

आज बरसी पर विशेष

वर्तमान राजनीति की यदि बात करते हैं तो एक निकृष्ट तथा खतरनाक तस्वीर सामने आती है। हर कोई एक-दूसरे पर कीचड़ फेंक रहा है। जिसके हाथ में शक्ति आती है, वह विरोधियों को किनारे लगाने के लिए जेलों में फेंक रहा है। ऐसे लगता है कि जैसे राजनीति लोगों की सेवा के लिए नहीं, अपितु कोई जंग का मैदान हो, परन्तु किसी समय एक राजनीतिज्ञ ऐसा भी हुआ है जो अपने समर्थकों के कार्य भी करवाता रहा और विरोधियों को नाराज़ भी नहीं होने देता था। यह शख्सियत थी स. दिलबाग सिंह जिन्हें ‘नवांशहर’ से अलग करके देखना भी कठिन है जिस कारण दिलबाग सिंह नवांशहर करके ही जाना जाता रहेगा। 
कोई दिन ऐसा भी होता जिस दिन किसी को याद करते हुए गला भर आता है और यादों का सिलसिला बनता चला जाता है। इत्तिफाक है कि मैं भी उसी गांव की मिट्टी का कण हूं जिसका संबंध स. दिलबाग सिंह से है। विभाजन के बाद मुरब्बेबंदी के दौरान दिलबाग सिंह के पूर्वजों को गांव भौरा में कृषि ज़मीन अलाट हुई थी। सुज्जों एवं भौरा पड़ोसी गांव थे तथा दोनों ही दिलबाग सिंह पर अपना दावा करते रहे हैं, क्योंकि ज़िला लायलपुर में बसने से पहले उनका पैतृक गांव सुज्जों था। 
चाहे यह कहा जाता है कि राजनीतिक शक्ति हासिल करने वाले लोगों के भीतर परमात्मा बनने की इच्छा छुपी हुई होती है ताकि लोग झुक-झुक कर उन्हें सलाम करें और तरह-तरह की मांगों के लिए मिन्नतें करें, परन्तु स्वर्गीय दिलबाग सिंह अपने लोगों में अपना बन कर विचरण करते रहे और जीवन के शिखर पर वह स. बेअंत सिंह की सरकार में कृषि एवं वन विभाग के मंत्री भी रहे।
बेशक आज देश की राजनीतिक व्यवस्था जब भ्रष्टाचार तथा अनैतिकता के बोझ तले दबी हुई है, किन्तु दिलबाग सिंह ने अपना पूरा जीवन बेद़ाग व्यतीत किया और उनके राजनीतिक विरोधी भी उनको एक नेक एवं ईमानदार राजनीतिज्ञ मानते रहे। दोआबा के इस महबूब नेता का जन्म चक्क नम्बर 108 तहसील जड़ांवाला ज़िला लायलपुर (पाकिस्तान) में हुआ। विभाजन के बाद नवांशहर ज़िला के गांव भौरा में ज़मीन अलाट हुई। आठवीं की पढ़ाई करने के बाद उन्होंने ट्रांस्पोर्ट का व्यवसाय अपना लिया। वह शुरू से ही मेहनती तथा लगन वाले इन्सान थे। कमाल देखो कि परिवर्तन प्रकृति का नियम है और मनुष्य परिवर्तन में विश्वास भी रखता है, परन्तु स्वर्गीय दिलबाग सिंह के मामले में यह सिद्धांत भी तिड़क जाता है, क्योंकि 1962 से लेकर 1992 तक उनके चुनाव क्षेत्र के लोगों ने परिवर्तन की ओर देखा ही नहीं और उन्हें ही अपना प्रतिनिधि चुनते रहे जबकि इस अंतराल में कांग्रेस तथा देश की राजनीति में बहुत आंधियां आईं। 1962, 67, 80, 85 तथा 1992 में वह सात बार विधानसभा के सदस्य बने। 1980 में जब कांग्रेस ने राणा मोती सिंह को टिकट दी तो वह आज़ाद उम्मीदवार के रूप में भारी मतों के अन्तर से विजयी रहे। 
स्वयं ट्रांस्पोर्टर होने के कारण वह इस व्यवसाय को और आगे लेकर आए और सात वर्ष पंजाब ट्रक आप्रेटर यूनियन के अध्यक्ष रहे और अपने अनेक मित्रों को इस व्यवसाय में डाला। जिन विभागों के वह मंत्री रहे, उनमें भ्रष्ट अधिकारियों तथा कर्मचारियों को सदैव हाथ-पांवों की पड़ी रहती थी। वास्तव में उन्हें अपने विभाग में पल-पल के घटनाक्रम का पता होता था कि कहां क्या हो रहा है? कृषि मंत्री के रूप में उन्होंने राष्ट्रीय पुरुस्कार भी प्राप्त किये और उनके शासन काल में पंजाब का किसान खुशहाल हुआ।
जिन लोगों ने कभी नवांशहर क्षेत्र का चक्कर लगा कर देखा होगा, उन्हें इस क्षेत्र के सर्वपक्षीय विकास की मुंह बोलती तस्वीर देखने को ंिमलेगी। सड़कों का जाल, डिस्पैंसरियां, पंचायत घर, गलियां-नालियां तथा फुटपाथ भी पक्के देखने को मिलेंगे। कांग्रेस की मौजूदा राजनीति से वह कोसों दूर थे। वह अपने राजनीतिक विरोधियों को पहले गले लगाते थे। डाक्टर साधु सिंह हमदर्द के वह पक्के ंिमत्र थे और ‘अजीत’ समाचार पत्र को चलाने वाले ‘डा. साधु सिंह हमदर्द ट्रस्ट’ के वह चेयरमैन रहे, परन्तु उन्होंने ‘अजीत’ की नीतियों में कभी हस्तक्षेप नहीं किया था। 
नवांशहर, जिसे अब शहीद भगत सिंह नगर कहा जाता है, को ज़िला बनाने का सपना स. दिलबाग सिंह का ही था। वर्ष 1995 में मुख्यमंत्री बेअंत सिंह की हत्या के बाद जब हरचरण सिंह बराड़ मुख्यमंत्री बने तो स. दिलबाग सिंह ने नवांशहर को ज़िला बनाने का कार्य पूर्ण करवा लिया था। इसी कारण नवांशहर की कायनात दिलबाग सिंह के नाम की ज्योति जलाती रहेगी। 
नियति ने 17 तथा 18 मार्च, 1996 की रात को चंडीगढ़ में सोते समय उन्हें घेर लिया और एक ईमानदार राजनीतिज्ञ हमसे सदा के लिए बिछुड़ गया। आज बरनाला (नवांशहर) में उनकी मीठी तथा स्नेहपूर्ण याद में श्रद्धांजलि समारोह हो रहा है और आज स्वर्गीग दिलबाग सिंह को याद करना राजनीतिज्ञों के लिए एक प्रेरणा लेने का दिन भी है।     
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