निजी बैंकों की गड़बड़ियां रोकने हेतु जरूरी हैं बैंकिंग सुधार

भारत में कई निजी बैंक बड़े पैमाने पर अनियमितताएं और कदाचार कर रहे हैं, जिनमें से कुछ अनियमितताएं इन बैंकों की निरीक्षण रिपोर्टों में उजागर हुई हैं, विशेषकर जब से सुप्रीम कोर्ट ने भारतीय रिज़र्व बैंक (आरबीआई) को बैंकों की ऐसी निरीक्षण रिपोर्टों को आरटीआई अधिनियम के तहत सार्वजनिक करने का आदेश दिया है। लेकिन अब आरबीआई भी आरटीआई अधिनियम के तहत इन निरीक्षण रिपोर्टों को सार्वजनिक करने में अनिच्छुक है, जबकि आरबीआई को सभी बैंकों की निरीक्षण रिपोर्टों को अपनी वेबसाइट पर सार्वजनिक करके मूल सुप्रीम कोर्ट के फैसले का अक्षरश: पालन करके सभी भ्रमों को दूर करना चाहिए। इसके अलावा, सभी बैंकों के लिए यह अनिवार्य होना चाहिए कि वह पिछली सभी निरीक्षण रिपोर्टों को अपनी वेबसाइटों पर डालें। चूंकि निजी क्षेत्र के बैंकों में जनता के धन की व्यापक मौजूदगी है, जिसे देखते हुए सभी निजी क्षेत्र के बैंकों को आरटीआई अधिनियम के दायरे में होना चाहिए। 
निजी बैंकों की निरीक्षण रिपोर्टों का सार्वजनिक होना इसलिए ज़रूरी है क्योंकि भारतीय रिज़र्व बैंक (आरबीआई) द्वारा आरटीआई अधिनियम के तहत सामने लाई गयी निजी बैंकों की निरीक्षण रिपोर्ट से शीर्ष प्रबंधन द्वारा सार्वजनिक धन के घोर दुरुपयोग का पता चलता है। यह अकारण नहीं है कि हाल के सालों में आरबीआई को निजी क्षेत्र के एक प्रमुख बैंक पर कुछ समय के लिए पैसे निकालने पर प्रतिबंध लगाना पड़ा और एक अन्य प्रमुख निजी बैंक के पूर्व सीएमडी को बैंक के सार्वजनिक धन के दुरुपयोग के गंभीर आरोप में गिरफ्तार किया गया है। इसी क्रम में निजी क्षेत्र का एक और बैंक बड़ी संख्या में गैर-निष्पादित संपत्तियों (एनपीए) के लिए बदनाम है, जबकि कुछ निजी क्षेत्र के बैंकों के शेयर-मूल्यों में भारी उतार-चढ़ाव से इन बैंकों में सार्वजनिक धन की सुरक्षा को लेकर संदेह पैदा होता है। 
कई निजी बैंक अपने व्यवसाय को बढ़ावा देने के लिए गिरवी रखी गई सम्पत्ति के वास्तविक बाज़ार मूल्य से अधिक सुरक्षित ऋण प्रदान करते हैं। हालांकि नियम, सम्पत्ति के आंके गये मूल्य के, केवल कुछ हिस्से को ही ऋण के रूप में देने की अनुमति देते हैं। इसे पूर्वव्यापी प्रभाव से एक नियम बनाकर रोका जाना चाहिए, जिसके तहत बैंकों को ऋण-खाता बंद करने की आवश्यकता हो सकती है, लेकिन यदि उधारकर्ता बिना शर्त गिरवी रखी गई सम्पत्ति का कब्ज़ा छोड़ देता है, तब बैंकिंग विनियमन अधिनियम की धारा 46 ए के तहत सख्त कार्रवाई, गिरवी सम्पत्ति की बिक्री से वसूल की गई राशि से अधिक ऋण स्वीकृत करने वाले अधिकारियों के खिलाफ कार्रवाई की जानी चाहिए। भले संबंधित बैंक पहले से ही पर्याप्त मार्जिन मनी के लाभ में हों। अध्ययन किया जा सकता है कि क्या स्व-कब्जे वाली आवासीय सम्पत्तियों पर ऋण देने पर कुछ प्रतिबंध लगाया जा सकता है? क्योंकि डिफाल्ट के मामले में, ऋण लेने वाले का परिवार ऋण लेने वाले की गलती/डिफाल्ट के लिए पीड़ित होता है।
यह बिल्कुल सामान्य बात है कि कई निजी बैंक अक्सर ऋण के डिफाल्ट के मामले में अपनी सुविधा के अनुसार दुरुपयोग करने के लिए गारंटर के रूप में उधारकर्ता और उसके परिवार के सदस्यों द्वारा हस्ताक्षरित खाली कागजात, ऋण-किट और चेक प्राप्त करते हैं। आम तौर पर कज़र् लेने वाले कज़र् लेने की जल्दी में परिणाम को समझे बिना ऐसे खाली दस्तावेजों पर हस्ताक्षर कर देते हैं। गलती करने वाले बैंक उधारकर्ताओं को ऋण-किट की उपभोक्ता-प्रति भी नहीं देते हैं, जो इस प्रकार हमेशा ऐसे बैंकों के व्यावहारिक रूप से वित्तीय गुलाम हो जाते हैं। प्रणाली यह होनी चाहिए कि विधिवत भरे हुए ऋण-किट और चेक की एक प्रति ऋण-वितरण के सात दिनों के भीतर उधारकर्ताओं, गारंटरों और आरबीआई के विशेष रूप से स्थापित अनुभाग को पंजीकृत डाक द्वारा भेजी जानी चाहिए। ताकि यह सुनिश्चित हो सके कि बैंक डिफाल्ट के मामले में पहले खाली हस्ताक्षर किए गए किसी अन्य कागज़ का दुरुपयोग करने में सक्षम हो। यही बात गैर-बैंकिंग-वित्तीय-कम्पनियों (एनबीएफ सी) के लिए भी लागू होनी चाहिए।
केंद्र और राज्य दोनों सरकारों को सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों को बढ़ावा देने के लिए कर्तव्यनिष्ट होने की ज़रूरत है। सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों के उपयोग से सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों की जमा राशि और लाभप्रदता में वृद्धि होगी और सार्वजनिक धन की सुरक्षा सुनिश्चित होगी। भारतीय रिज़र्व बैंक द्वारा जारी आरबीआई-बॉन्ड केवल सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों और कंपनियों के माध्यम से ही जारी किए जाने चाहिए। 
कुछ बैंक-कर्मचारियों द्वारा ऐसे निष्क्रिय खातों में धनराशि का दुरुपयोग करने की धोखाधड़ी की सूचना मिली है, जहां राशि बड़ी है। आरबीआई को सभी बैंकों को निर्देश देना चाहिए कि वे खाताधारकों को उनके मौजूदा शेष के बारे में सूचित करें और खातों को चालू करने या समय-सीमा में बंद करने के लिए बैंकों से संपर्क करें। वह अवधि जिसके बाद ऐसी सभी शेष राशि जमाकर्ता-शिक्षा-जागरूकता-निधि (डीईएएफ) में स्थानांतरित की जा सकती है। बैंकिंग क्षेत्र पर निजी क्षेत्र का प्रभुत्व होने के कारण, निष्क्रिय खातों में पड़े सार्वजनिक धन को बैंकों द्वारा अपने पास नहीं रखा जाना चाहिए।  सभी बैंकों के लिए 15-अंकीय खाता-नंबर आवंटित करना अनिवार्य बनाकर बैंकों द्वारा बार-बार खाता संख्या बदलने को रोका जाना चाहिए।
-इमेज रिफ्लेक्शन सेंटर