जानवरों के पास होता है गर्मी से बचाव का अपना मैकेनिज्म

जब आसमान से आग बरसती है, तो सिर्फ इंसान ही परेशान नहीं होता, जानवर भी बेचौन होते हैं। लेकिन इंसानों की तरह उनके पास भी गर्मी से बचने का अपना तौर तरीका होता है। यह बात खासतौर पर जंगली जानवरों पर लागू होती है। लेकिन जिन जंगली जानवरों की वन विभाग द्वारा देखरेख की जाती है या उन्हें प्रबंधित वन क्षेत्र में रखा जाता है, उन्हें गर्मी से बचाने के लिए वन विभाग कई तरह के उपाय करता है। मसलन-
* गर्मियों में प्रबंधित वन क्षेत्र के सभी तालाब और गड्ढे पानी से भर दिए जाते हैं। मई और जून के महीनों में खासकर अभ्यारण्यों में जंगली जानवरों के लिए पीने से लेकर उन्हें गर्मी से बचाने के लिए भी पानी की व्यवस्था की जाती है।
* जिन जानवरों को दड़बे में रखा जाता है, उनके लिए इन दिनों ठंढक देने के लिए पर्दे लगाये जाते हैं, जिससे बाहर की गर्मी अंदर न जाए, साथ ही कूलर आदि की व्यवस्था की जाती है। जिन जानवरों को जाल के भीतर रखा जाता है, उनके जाल को इन दिनों कोशिश की जाती है कि वे हरे रंग के हों, जिससे कि धूप से बचाव हो।
* चिड़ियाघरों और दूसरे एनिमल पार्कों में इन दिनों घास-फूस और हरी पत्तियों के छप्पर या टपरे छा दिए जाते हैं ताकि इनके नीचे जानवर रह सकें। जानवरों को उनके इर्द-गिर्द के वातावरण में चिलचिलाती गर्मी का सामना न करना पड़े, इसके लिए मिट्टी और पेड़ पौधों पर शाम सुबह पानी का छिड़काव किया जाता है और पिंजरों के भीतर में पानी के छोटे-छोटे झरने बनाये जाते हैं ताकि गर्मी लगने पर जानवर उनसे अपनी गर्मी मिटा सकें।
ये तो ऐसे जानवरों की बात हुई जिन्हें इंसान चिड़ियाघरों में या बनाये गये वन्यजीव अभ्यारण्यों में रखता है। लेकिन जो जानवर जंगल में अपने भरोसे ही रहते हैं, उनके पास भी गर्मी से बचने के अपने तौर तरीके होते हैं। मसलन भारत के ज्यादातर हिस्सों में मई और जून के महीनों में जब सूरज की किरणें बहुत तीखी हो जाती हैं और आसमान से दिन के कई घंटों तक आग बरसती है, उस मौसम में ज्यादातर पक्षी ऊंचे और घने पत्तों वाले पेड़ों में आश्रय ले लेते हैं। गर्मी के समय विशेषकर दोपहर में ज्यादातर पक्षी ऐसे पेड़ों के पत्तों में दुबक जाते हैं, जिन पेड़ों के पत्ते इस मौसम में भी हरे भरे होते हैं और घनी छाया बनाते हैं। लेकिन पक्षियों को इस दौरान शिकारियों से खतरा भी रहता है, इसलिए वे ज्यादातर समय ऊंचे पेड़ों की ऊंची फुनगियों में ही छिपने का जोखिम उठाते हैं।
कुछ जानवर ज्यादा गर्मी के मौसम में जमीन में अंदर चले जाते हैं और भूमिगत होकर गर्मी से अपना बचाव करते हैं। भारत में गर्मी के मौसम में भालू, गिलहरी और रेकून जैसे वन्यजीव अपने शिकार के जोखिम को कम करने के लिए कई बार कई-कई घंटे पेड़ों में एक ही जगह और एक ही मुद्रा में छिपे रहते हैं। भारत में खास तौर पर गर्मियों के मौसम में बहुत कम पक्षी प्रजनन करते हैं, इसके पीछे एक वजह गर्मी से बचाव करने का तरीका होता है। शेर जैसे जानवर जिन्हें दूसरे जानवरों से खतरा नहीं होता, वे भीषण गर्मियों में बड़े छायादार पेड़ों के नीचे फैले पड़े रहते हैं। कीचड़ में लोटकर भी कई जानवर गर्मी से अपना बचाव करते हैं तो कई जानवर गर्मियों में ज्यादा हांफकर अपने शरीर का तापमान नियंत्रित करते हैं, इनमें कुत्ता सबसे आगे होता है। हाथी ज्यादा गर्मियों के समय अपने कानों को फड़फड़ाते रहते हैं, जिससे उन्हें ठंडक महसूस होती ही हैं।
जो लोग घरों में पक्षियों को पालते हैं या चिड़ियाघरों आदि में जहां पक्षियों के रहने की जगह होती है, गर्मियों में वहां पानी के छोटे-छोटे तालाब बना दिए जाते हैं, जिससे पक्षी उसमें नहाते हैं और पानी के ऊपर अठखेलियां करते हैं। यही नहीं इन दिनों जानवर अपने खानपान को भी गर्मियों के अनुकूल कर लेते हैं। मसलन कई जानवर इन दिनों अंडे खाना छोड़ देते हैं और खीरा, ककड़ी, पत्तेदार सब्जियां आदि खाने लगते हैं, जिससे साफ है कि कुदरत उन्हें गर्मी से बचाव के रास्ते सिखाती है। गिलहरियां, कुत्ते, बिल्लियां ज्यादा गर्मी के समय खुद को इससे बचाने के लिए अपनी मुद्रा को झुंका लेते हैं, जिससे उनका शरीर ज्यादा गर्म नहीं होता तो कई जानवर इन दिनों जमकर कीचड़ में लोटते हैं, जिससे उनके शरीर का तापमान कम हो जाता है। इस तरह इंसानों की तरह जानवर भी गर्मी से बचने के तरह-तरह के उपाय करते हैं। 
-इमेज रिफ्लेक्शन सेंटर