कम एफडीआई है धीमे औद्योगिक विकास का कारण

यह अजीब लग सकता है कि औद्योगिक महाशक्ति और एक प्रमुख वैश्विक अर्थव्यवस्था बनने की आकांक्षा रखने वाले भारत को पिछले साल केवल 28 अरब अमरीकी डॉलर का कुल प्रत्यक्ष विदेशी निवेश (एफडीआई) प्राप्त हुआ जबकि छोटे से सिंगापुर में 160 अरब डॉलर और हांगकांग में 113 अरब डॉलर के एफडीआई का प्रवाह हुआ। व्यापार और विकास पर संयुक्त राष्ट्र सम्मेलन (यूएनसीटीएडी) के अनुसार आर्थिक मंदी और बढ़ते भू-राजनीतिक तनाव के बीच भारत में एफडीआई प्रवाह में 43 प्रतिशत की गिरावट आयी है जबकि वैश्विक स्तर पर इसमें दो प्रतिशत की गिरावट आयी है और यह 13 खरब डॉलर रह गया है। भारत को वास्तव में मजबूत अर्थव्यवस्था बनने के लिए अगले 10 वर्षों में कम से कम 150-200 बिलियन डॉलर की वार्षिक आवश्यकता होगी। 
नयी राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (राजग) सरकार को आने वाले वार्षिक बजट में देश में बड़े पैमाने पर एफडीआई प्रवाह के लिए सभी बाधाओं को दूर करने का ईमानदारी से प्रयास करना चाहिए। दुनिया का सबसे अधिक आबादी वाला देश होने के बावजूद 2023-24 में मौजूदा कीमतों पर भारत का सकल घरेलू उत्पाद केवल 35.2 खरब डॉलर होने का अनुमान लगाया गया है। इसके विपरीत पड़ोसी चीन का सकल घरेलू उत्पाद 2023 में 1260.6 खरब युआन था, जो 178.9 खरब अमरीकी डॉलर के बराबर है। 
भारत की मौजूदा आर्थिक वृद्धि का रुझान प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के पूर्व के लक्ष्य से दूर है जिसमें चालू वित्त वर्ष के अंत में 50 खरब डॉलर के सकल घरेलू उत्पाद के निशान को छूने का लक्ष्य रखा गया था। भारत को अपनी गरीबी और बेरोज़गारी से निपटने के लिए कई वर्षों तक दोहरे अंकों की वार्षिक आर्थिक वृद्धि की आवश्यकता है। 
देश को अपनी अर्थव्यवस्था के लगभग सभी क्षेत्रों में उत्पादन बढ़ाने के लिए बड़े निवेश की आवश्यकता होगी। अधिशेष धन वाले मुट्ठी भर घरेलू औद्योगिक निवेशक ऐसी आवश्यकताओं को पूरा नहीं कर सकते। चीन का विशाल आर्थिक उत्थान देश में साल दर साल बड़े पैमाने पर एफडीआई प्रवाह द्वारा संभव हुआ है। 2021 में चीन में एफडीआई प्रवाह 344 अरब डालर के शिखर पर पहुंच गया। दूसरी ओर चीनी बहुराष्ट्रीय कंपनियों (एमएनसी) द्वारा अन्य देशों में निवेश 2023 में पूरा हुआ। चीन से आउटबाउंड ग्रीनफील्ड एफडीआई 140 अरब डालर से अधिक था जिसने एक नया रिकॉर्ड स्थापित किया।
यह आउटबाउंड चीनी विलय और अधिग्रहण में गिरावट के बाद है क्योंकि पश्चिमी सरकारों ने प्रस्तावित चीनी विलय और अधिग्रहण सौदों की जांच तेज़ कर दी है। चीन स्वच्छ ऊर्जा और इलेक्ट्रिक वाहनों जैसे रणनीतिक क्षेत्रों में नये बाज़ारों में विस्तार कर रहा है। नवीनतम रिपोर्टों से पता चलता है कि भारत का तेज़ी से विस्तार करने वाला अडानी समूह, जो सरकार की उत्पादन से जुड़ी प्रोत्साहन (पीएलआई) योजना का एक प्रमुख प्राप्त कर्ता है, ने अपनी महत्वाकांक्षी सौर विनिर्माण परियोजना में मदद के लिए आठ चीनी कम्पनियों का चयन किया है। गुजरात में चीन से जुड़ी एमजी मोटर्स भारत में इलेक्ट्रिक वाहनों के उत्पादन और बिक्री को बढ़ावा दे रही है। 
संयोग से दुनिया की सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था अमरीका एफडीआई का शीर्ष प्राप्त कर्ता बना हुआ है, जो 2023 में कुल 341 अरब डॉलर था। अमरीका में एफडीआई प्रवाह 2015 और 2016 में क्रमश: 484 अरब डॉलर और 480 अरब डॉलर के रिकॉर्ड उच्च स्तर पर पहुंच गया। हाल ही में अमरीका में एफडीआई प्रवाह में काफी कमी आयी है। शीर्ष 20 मेजबान अर्थव्यवस्थाओं में एफडीआई प्रवाह में सबसे बड़ी गिरावट फ्रांस, ऑस्ट्रेलिया, चीन, अमरीका और भारत में दर्ज की गयी। 
भारत सरकार के उद्योग और आंतरिक व्यापार संवर्धन विभाग (डीपीआईआईटी) द्वारा जारी किये गये आंकड़ों में बताया गया है कि उन्नत अर्थव्यवस्थाओं में उच्च ब्याज दरों और देश में विभिन्न क्षेत्रों में सीमित अवशोषण क्षमता जैसे बाहरी कारकों के कारण 2023-24 में एफडीआई पांच साल के निचले स्तर पर आ गया। विडम्बना यह है कि भारत में एकमात्र ऐसा क्षेत्र है जो तेज़ी से बढ़ रहा है, वह है शेयर बाज़ार। शेयर बाज़ार में जुआ खेलने वाले उच्च उपभोक्ता मुद्रास्फीति के बावजूद सूचीबद्ध शेयरों की कीमतों में और उछाल देखने के लिए कम ब्याज दरों के लिए अभियान चला रहे हैं। यह बहुत चिंता की बात है कि रिज़र्व बैंक और सरकार ऐसे अभियानों के झांसे में आ सकते हैं। (संवाद)