रंगों के जादू से बनाएं करियर बनें क्रोमोथैरेपिस्ट

क्रोमोथैरेपी को कलर थैरेपी या कलरोलॉजी भी कहते हैं। यह रंगीन प्रकाश चिकित्सा है। दुनिया में सदियों से रंगीन रोशनी का इस्तेमाल बीमारियों को दूर करने और डिप्रेशन को भगाने के लिए किया जाता रहा है। क्रोमोथैरेपी इसी का आधुनिक रूप है। क्रोमोथैरेपिस्ट दरअसल लोगों के शरीर से गायब ऊर्जा को अलग-अलग रंगों के प्रभाव से उनके शरीर में दोबारा पैदा करते हैं। इससे मरीज एनर्जेटिक होते हैं। यह गतिविधि वैकल्पिक चिकित्सा के अंतर्गत आती है और भारत के आयुष मंत्रालय द्वारा इस पर नियंत्रण किया जाता है। इस तकनीक के चलते शरीर पर अलग-अलग रंगों की रोशनी लगाकर शरीर की असंतुलित ऊर्जा को ठीक किया जाता है। इस तकनीक में प्रकाश के विद्युत चुबकीय स्पेक्ट्रम का इस्तेमाल होता है। इस चिकित्सा का सिद्धांत यह है कि हर रंग एक भिन्न शारीरिक प्रतिक्रिया से जुड़ा होता है, जबकि कुछ रंग मस्तिष्क में अलग-अलग जैविक और जैव रासायनिक प्रतिक्रियाओं से सीधे जुड़े होते हैं। इसलिए कुछ रंग मस्तिष्क में अलग-अलग जैविक और जैव रासायनिक कार्यों को उत्तेजित करते हैं या इन पर दबाव डालते हैं। 
क्रोमोथैरेपी आमतौर पर मस्तिष्क विकारों को दुरुस्त करने के लिए इस्तेमाल होती है। इस पद्धति के चलते इलाज के लिए सात रंगों का इस्तेमाल होता है, जिसमें नीला, पीला, हरा, नारंगी, बैंगनी, लाल और काला रंग शामिल है। यह पद्धति प्राचीनकाल से पूरी दुनिया में अपनायी जाती रही है। क्रोमोथैरेपी शब्द में शामिल क्रोमो दरअसल ग्रीक वर्ल्ड है जिसका मतलब रंग होता है। इससे पता चलता है कि यह प्राचीनकाल में भारत की तरह ग्रीक में भी चिकित्सा पद्धति मौजूद रही है। इस थैरेपी का मूल विज्ञान यह है कि हर इंसान को एक निश्चित रंग की आवश्यकता होती है, जिससे उसकी जैविक घड़ी नियंत्रित होती है और इसके बिना जीवनचर्या की लय बिगड़ जाती है। क्रोमोथैरेपी के तहत यह भी माना जाता है कि अपनी सीमित आवृत्ति तथा कंपन के साथ हर रंग हमारे शारीरिक मंत्र को स्थर बनाने में मदद करता है।
क्रोमोथैरेपी में कॅरियर बनाने के लिए कई तरह के डिप्लोमा पाठ्यक्रम उपलब्ध हैं, इनमें से एक जैम टैली क्त्रोमोथैरेपी (डीजीटीसीटी) डिप्लोमा है, जिसकी अवधि 6 महीने है। वैसे इसमें स्नातक स्तर का भी डिप्लोमा है, जिसे करने के लिए दो साल चाहिए। इन दोनों पाठ्यक्रमों में प्रवेश पाने के लिए न्यूनतम शैक्षिक योग्यता 12वीं है। वैसे बैचलर ऑफ नेचरोपैथी एंड योगिक साइंसेज (बीएनवाईएस) कोर्स के तहत भी क्रोमोथैरेपी की पढ़ाई होती है और बीएनवाईएस कोर्स की अवधि 5 साल की होती है तथा इसकी मान्यता वैसी ही है जैसे- एमबीबीएस की। क्रोमोथैरेपिस्ट बनने के लिए न्यूनतम शैक्षिक योग्यता 12वीं के साथ-साथ यह भी ज़रूरी है कि उम्मीदवार साइंस और जीवविज्ञान क्षेत्र से रिश्ता रखता हो। जैसे जैसे हमारे देश में लाइफस्टाइल चिकित्सा पद्धति का विस्तार हो रहा है, बड़े शहरों में क्रोमोथैरेपी की मांग बड़ी तेज़ी से बढ़ रही है। इसका एक कारण यह भी है कि लोगों का एलोपैथी से बढ़ते साइड इफेक्ट के कारण मोह भंग हो रहा है। 
आजकल वैकल्पिक चिकित्सा के सभी केंद्रों में क्रोमोथैरेपिस्टों की काफी ज्यादा मांग है। क्रोमोथैरेपिस्ट अगर सरकारी या प्राइवेट नौकरी न भी करना चाहें तो अपना क्लीनिक खोलकर कमाई करने का भी उनके पास शानदार मौका होता है, क्याेंकि हाल के सालों में बड़े महानगरों में जिस तरह से लोगों का एलोपैथी चिकित्सा से मोह भंग हुआ है और तमाम साइड इफेक्ट से बचने के लिए जैसे-जैसे लोग पारंपरिक आयुर्वेद और होम्योपैथी पद्धतियों की तरफ जा रहे हैं, उसी के तहत क्रोमोथैरेपिस्ट की मांग भी काफी बढ़ी है। शायद इसकी एक वजह यह भी है कि क्रोमोथैरेपी से किसी भी तरह का कोई साइड इफेक्ट नहीं है।
जहां तक कमाई का सवाल है तो कोई भी स्नातक स्तर का क्रोमोथैरेपी डिप्लोमा करने के बाद आराम से 30 से 35 हजार रुपये की प्रारंभिक नौकरी पा जाता है। जबकि छह महीना नौकरी करने के बाद क्रोमोथैरेपिस्ट की तनख्वाह कम से कम 50 हजार रुपये हो जाती है। लेकिन यह वेतन और नौकरी की सुनिश्चितता तभी है, जब आपका काम वाकई असरकारी हो। क्योंकि क्रोमोथैरेपी का इस्तेमाल ऐसी किसी बीमारी में नहीं होता, जिसमें कुछ ही समय के भीतर जिंदगी दांव पर लगी हो। वास्तव में यह एक लाइफस्टाइल को बेहतर बनाने का चिकित्सीय जरिया है। जो मुख्यत: मनोविकारों से निजात पाने के लिए ज्यादा इस्तेमाल होता है। इसलिए क्रोमोथैरेपिस्टों के पास जो लोग अपना इलाज कराने आते हैं, एक तो उनके पास आर्थिक संकट कम होता है और दूसरी बात यह होती है कि इस थैरेपी के तहत इलाज करने वालों को मरीजों के आकस्मात मरने की आशंका भी बहुत कम रहती है। 
कुल मिलाकर क्रोमोथैरेपिस्ट बहुत मजे से अपनी निजी प्रैक्टिस भी कर सकते हैं और अगर काम सही है, आप मरीजों को नतीजा दे पाते हैं, तो शुरु से ही ठीक ठाक कमाई के मौके रहते हैं। जहां तक नौकरी के लिए महत्वपूर्ण जगहों की बात है तो सभी प्राकृतिक चिकित्सा केंद्रों में क्रोमोथैरेपिस्टों की काफी मांग रहती है। इसके अलावा अनेक वेलनेस सेंटर खुल चुके हैं तथा वैकल्पिक चिकित्सा के भी हाल के सालों में सैकड़ों अस्पताल खुले हैं, जहां क्रोमोथैरेपिस्टों की इस कदर मांग बढ़ गई है कि कभी भी हर जगह ज़रूरतभर के क्रोमोथैरेपिस्ट नहीं पाये जाते। लब्बोलुआब यह है कि इस क्षेत्र में कॅरियर की भरपूर इंद्रधनुषी संभावनाएं हैं। 
-इमेज रिफ्लेक्शन सेंटर 

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