फसली विभिन्नता के लिए लाभदायक है अमरूद की काश्त 

किन्नू के बाद अमरूद पंजाब का दूसरा अहम फल बन गया है। अमरूद के अधीन नींबू जाति (सिट्रस) के बाद सभी फलों से अधिक रकबा है। सबसे अधिक रकबा पटियाला ज़िला में है, जहां पंजाब सरकार ने वज़ीदपुर में गुआवा एस्टेट स्थापित की हुई है। वहां किसानों को अमरूद के बाग लगाने संबंधी सुविधाएं, किस्में तथा काश्त तकनीक बारे जानकारी दी जाती है। पटियाला के अतिरिक्त लुधियाना, संगरूर, श्री मुक्तसर साहिब, जालन्धर, बठिंडा तथा रोपड़ ज़िलों में भी अमरूद की काश्त की जाती है। बागवानी विभाग के पूर्व नोडल अधिकारी (अमरूद) पंजाब डा. स्वर्ण सिंह मान (सेवा-मुक्त डिप्टी डायरैक्टर) कहते हैं कि इस फल को 6.5 पी.एच. से 8.7 पी.एच. वाली ज़मीन में उगाया जा सकता है। मैदानी क्षेत्रों के अतिरिक्त ऊंची पहाड़ियों तक इस फल को सफलता से लगाया जा रहा है। आजकल अब से लेकर अक्तूबर माह तक इस फल की काश्त के लिए उचित समय है। पंजाब एग्रीकल्चरल यूनिवर्सिटी (पी.ए.यू.) द्वारा इलाहाबादी सफैदा, लखनऊ-49 (एल-49), पंजाब सफैदा, पंजाब किरण, स्वेता, पंजाब पिंक, एप्पल गुआवा तथा हिसार सफैदा किस्में लगाने की सिफारिश की गई है। इन किस्मों के पौधे पी.ए.यू., पंजाब बागवानी विभाग या नैशनल बागवानी बोर्ड से या प्रमाणित नर्सरियों से लिए जा सकते हैं।  
अमरूद की काश्त फसली विभिन्नता के लिए भी लाभदायक है। डा. मान जो गुआवा एस्टेट वज़ीदपुर (पटियाला) के इंचार्ज रहे हैं, कहते हैं कि अमरूद का फल पहले तो मामूली गिना जाता था। अब इसका बड़ा महत्व है। आजकल यह मंडी में 80 रुपये प्रति किलो तक बिक रहा है। चाहे इसमें सेब से अधिक विटामिन हैं और विटामिन ‘सी’ तो सभी फलों से अधिक 228.3 मिलीग्राम तक है जबकि सेब में यह सिर्फ 4.6 मिलीग्राम है, परन्तु मंडी में यह अभी भी सेब से सस्ता मिलता है। कश्मीरी सेब 150 से 250 रुपये प्रति किलो तक बिक रहा है। डा. मान तथा बागवानी वैज्ञानिकों द्वारा प्रत्येक किसान को अपने ट्यूबवैल पर कुछ अमरूद के पौधे लगाने की अपील की गई है और उपभोक्ताओं को अपने घरों की बागीचियों व लॉन्स में अमरूद के पौधे लगाने के लिए कहा गया है। अमरूद का पौधा 2-3 वर्षों के बाद जल्द ही फल देने लगता है। किसानों के लिए आमदन के अतिरिक्त अपने घर में खपत के लिए स्वास्थ्य के पक्ष से ये पौधे बड़े लाभदायक रहेंगे। आम लोगों को अमरूद के महत्व तथा गुणों के बारे पूरा ज्ञान नहीं है। अमरूद का फल खाने के अतिरिक्त इससे जैम, जूस, लैदर, नैक्टर भी आसानी से बनाए जा सकते हैं। इंडियन इंस्टीच्यूट ऑफ सबट्रोपिकल हार्टीकल्चर, रहमान खेड़ा, लखनऊ (उत्तर प्रदेश) के अनुसार अमरूद का फल खाने से कई तरह की बीमारियां ठीक हो जाती हैं। यह कब्ज़ की रोकथाम करता है। यदि किसी व्यक्ति को ठंड लग जाए या खांसी हो तो कच्चा अमरूद खाने से ठीक हो जाती है, क्योंकि इसमें मौजूद आयरन तथा विटामिन-सी के कारण ठंड से बचाव होता है और वायरल इंफैक्शन दूर होती है। अमरूद का फल ब्लड कोलैस्ट्रॉल को भी कम करता है। उच्च रक्तचाप को भी रोकता है। अमरूद में लाइकोपीन होती है, जिस कारण कैंसर से बचाव किया जा सकता है। अमरूद में एंटी-एजिंग गुण भी होते हैं, जिससे बुढ़ापा दूर रखा जा सकता है। यह फल शुगर मरीज़ों के लिए तो है ही बहुत लाभदायक, क्योंकि यह ब्लड ग्लूकोज़ का स्तर भी कम करता है। इस फल में कॉपर काफी मात्रा में होता है। कॉपर थायराइड मैटाबॉलिज़्म में बहुत ज़रूरी भूमिका अदा करता है। अमरूद में विटामिन बी-3 तथा विटामिन बी-6 होने के कारण यह दिमाग के काम करने की समर्था को बढ़ाता है। इसके पत्ते भी लाभदायक होते हैं। दांतों का दर्द, मसूड़ों की सूजन तथा मुंह के छाले पत्तों से ही ठीक किए जा सकते हैं। चाहे अमरूद का पौधा वर्ष में दो बार फल देता है—एक  बार बरसात में तथा दूसरा सर्दियों में, परन्तु मंडी में यह पूरा वर्ष ही उपलब्ध रहता है। प्रगतिशील उत्पादक वैज्ञानिक विधियों का इस्तेमाल करके इसका पूरा साल ही फल ले लेते हैं। इसके फल को गरीबों का सेब कहा जाता है। सेब, जो अमीरों के फल के रूप में जाना जाता है, के मुकाबले अमरूद में अधिक फायदे उपलब्ध हैं।
पंजाब सरकार द्वारा लैंड फार्मर्स एक्ट में संशोधन करके जो अमरूद लगाने वाली ज़मीनों को भी बाग का दर्जा दिया गया है, जिससे अमरूद के बाग लैंड सीलिंग के दायरे में नहीं आते, इसलिए अमरूद के बाग अन्य फलों के मुकाबले तेज़ी से लग रहे हैं। सिर्फ अमरूद की मक्खी, जो फल का बड़ा नुकसान करती है तथा जिस कारण फल गल कर गिर जाता है। इस पर काबू पाने के लिए पी.ए.यू. द्वारा 16 फ्लाइ ट्रैप प्रति एकड़ लगाने की सिफारिश की गई है, जिसका इस्तेमाल करके उत्पादक मक्खी से होने वाले नुकसान से फल को बचा सकते हैं और जिन्होंने व्यापारिक तौर पर बाग लगाए हुए हैं, वे अधिक उत्पादन लेने में सफल हो सकते हैं।