भाजपा से दूर हो गया पूरा देवीलाल परिवार

पिछले कई सालों से देवीलाल परिवार का कोई न कोई सदस्य भाजपा के साथ सरकार, सत्ता व संगठन में शामिल था। अब देवीलाल परिवार के सभी सदस्य भाजपा से पूरी तरह दूर हो गए हैं। 2019 के विधानसभा चुनाव में भाजपा को जब पूर्ण बहुमत नहीं मिला तो भाजपा ने डा. अजय सिंह चौटाला की पार्टी जननायक जनता पार्टी के साथ हाथ मिलाकर गठबंधन की सरकार बनाई थी। 2019 में जजपा को 10 सीटें हासिल हुई थीं और दुष्यंत चौटाला गठबंधन सरकार में उप-मुख्यमंत्री बने थे। इसके अलावा ओम प्रकाश चौटाला के भाई रणजीत सिंह जो रानियां से निर्दलीय विधायक चुनकर आए थे, उन्हें भी मनोहर लाल मंत्रिमंडल में बिजली एवं जेल मंत्री बनाया गया था। देवीलाल के सबसे छोटे पौत्र आदित्य चौटाला पहले से ही भाजपा में शामिल थे और भाजपा ने उन्हें 2019 का विधानसभा चुनाव डबवाली से लड़वाया था, लेकिन वह हार गए थे। इसके बावजूद भाजपा सरकार में पहले उन्हें भूमि विकास बैंक का चेयरमैन और बाद में दो बार हरियाणा कृषि विपणन बोर्ड का चेयरमैन लगाया गया। वह भाजपा के ज़िला अध्यक्ष भी रहे।
मुख्यमंत्री बदलने से बदलाव
साढ़े 4 साल तक गठबंधन सरकार चलने के बाद भाजपा ने जब मनोहर लाल को हटा कर नायब सिंह सैनी को मुख्यमंत्री बनाया तो साथ ही जजपा से भी गठबंधन तोड़ कर दुष्यंत चौटाला को एक झटके में अलग कर दिया। दूसरी तरफ रणजीत सिंह से विधायक पद का त्याग-पत्र दिलवा कर भाजपा में शामिल कर हिसार लोकसभा से उन्हें भाजपा का टिकट दे दिया। रणजीत सिंह हिसार से लोकसभा चुनाव हार गए। इसके बावजूद भाजपा ने उन्हें बिना विधायक होते हुए नायब सिंह सैनी मंत्रिमंडल में केबिनेट मंत्री बनाए रखा। रणजीत सिंह रानियां सीट से टिकट चाहते थे, लेकिन भाजपा ने रणजीत सिंह को रानियां सीट देने से इन्कार कर दिया और रणजीत सिंह को मंत्री पद व भाजपा को छोड़ कर फिर से निर्दलीय चुनाव लड़ने का ऐलान करना पड़ा। इधर, आदित्य चौटाला को पहली सूची में टिकट न मिलने से उन्हें भी निराशा हुई और उन्होंने हरियाणा कृषि विपणन बोर्ड चेयरमैन पद से इस्तीफा दे दिया और इनेलो में शामिल होकर डबवाली से उम्मीदवार बन गए। इस तरह 6 महीने पहले तक देवीलाल परिवार के जो ज्यादातर सदस्य भाजपा के साथ थे, वे सभी भाजपा से किनारा कर गए हैं।  
ढेर हुए ‘आप’ के मंसूबे
आम आदमी पार्टी हरियाणा में कांग्रेस के साथ मिलकर विधानसभा चुनाव लड़ने का मंसूबा बना रही थी। लोकसभा में नेता प्रतिपक्ष राहुल गांधी के जरिये यह प्रयास किया गया। राहुल गांधी ने के.सी. वेणुगोपाल के नेतृत्व में इस मामले के लिए एक कमेटी का गठन किया। कांग्रेस व ‘आप’ के बीच गठबंधन को लेकर दोनों तरफ के नेताओं की कई दौर की बैठकें हुईं। ‘आप’ नेता हरियाणा में कांग्रेस से कम से कम 9-10 सीटें दिए जाने की मांग पर अड़े रहे। उनका कहना था कि लोकसभा चुनाव में जिस तरह से कांग्रेस ने आम आदमी पार्टी को कुरुक्षेत्र लोकसभा सीट दी थी, उसी अनुपात में ‘आप’ को विधानसभा की सीटें भी मिलनी चाहिएं। दूसरी तरफ कांग्रेस नेताओं का तर्क था कि ‘आप’ के पास न तो कोई मजबूत नेता व उम्मीदवार है, और न ही आम आदमी पार्टी का हरियाणा में कोई संगठन है। ऐसे में जितनी भी सीटें आप को दी जाएंगी, वे सभी सीटें अप्रत्यक्ष तौर पर भाजपा को देने के समान होंगी। उनका यह भी कहना था कि अगर कुरुक्षेत्र संसदीय सीट पर कांग्रेस चुनाव लड़ती तो निश्चित तौर पर कांग्रेस भारी बहुमत से जीत हासिल करती। ‘आप’ ने कांग्रेस से कुरुक्षेत्र सीट लेकर भाजपा की झोली में डाल दी है। इसके बावजूद राहुल गांधी की इच्छा का सम्मान करते हुए कांग्रेस 3-4 सीटें आप को देने के लिए तैयार हो गई, लेकिन आप नेता 9-10 सीटों से कम लेने के लिए राजी नहीं हुए। ऐसे में कांग्रेस ने ‘आप’ के साथ गठबंधन करने से साफ-साफ इन्कार कर दिया और ‘आप’ नेताओं के गठबंधन के जरिए हरियाणा विधानसभा में पहुंचने के सभी मंसूबे धरे के धरे रह गए। 
भाजपा से कटते ही इनेलो ने दी टिकट
जिन नेताओं को भाजपा से टिकट नहीं मिल पाई और जिन नेताओं का अपना मजबूत जनाधार है, वे टिकट कटते ही इनेलो नेता व ऐलनाबाद से विधायक अभय चौटाला के पास जा रहे हैं। अभय चौटाला भी ऐसे नेताओं को पार्टी में शामिल करते ही हाथों-हाथ अपनी पार्टी का उम्मीदवार भी घोषित करते जा रहे हैं। डा. सुरेंद्र सिंह लाठर प्रदेश सरकार में बड़े अधिकारी थे और पूर्व मुख्यमंत्री व मौजूदा केंद्रीय बिजली मंत्री मनोहर लाल के कहने पर सरकारी नौकरी छोड़कर भाजपा में शामिल हुए थे। वह पिछले कई सालों से अपने सामाजिक संगठन के जरिए जुलाना विधानसभा क्षेत्र के लोगों की सेवा करने में लगे हुए थे। उन्हें जुलाना से भाजपा का मजबूत उम्मीदवार माना जा रहा था। भाजपा की दूसरी सूची में भी जब डा. सुरेंद्र लाठर की टिकट कट गई तो उन्होंने इनेलो नेता अभय चौटाला से संपर्क किया और इनेलो में शामिल होने का ऐलान कर दिया। अभय चौटाला ने भी तुरंत उन्हें जुलाना से इनेलो-बसपा गठबंधन का प्रत्याशी घोषित कर दिया। पूर्व सांसद अवतार सिंह भड़ाना की बहन दयावती भड़ाना भी इनेलो में शामिल होते ही पुन्हाना क्षेत्र से इनेलो उम्मीदवार बना दी गई हैं। इससे पहले दयावती भड़ाना मामूली अंतर से मोहम्मद इलियास के मुकाबले चुनाव हारी थीं। 
भाजपा अल्पसंख्यक मोर्चा के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष, पूर्व विधायक व हरियाणा वक्फ बोर्ड के प्रमुख चौधरी जाकिर हुसैन को इस बार भाजपा ने टिकट नहीं दिया। अब जाकिर हुसैन के बेटे ताहिर हुसैन इनेलो में शामिल हो गए और अभय चौटाला ने उन्हें नूंह से इनेलो-बसपा गठबंधन का उम्मीदवार घोषित कर दिया। इससे पहले आदित्य चौटाला भी भाजपा टिकट न मिलने पर भाजपा छोड़कर इनेलो में शामिल हो गए थे और इनेलो ने उन्हें डबवाली से उम्मीदवार बना दिया।
भाजपा ने काटी टिकटें
भाजपा ने इस बार पार्टी के अनेक दिग्गजों, मंत्रियों, पूर्व मंत्रियों, मौजूदा व पूर्व विधायकों की टिकट काटकर सभी को हैरान कर दिया है। अभी 4 महीने पहले मंत्रिमंडल में शामिल की गई शिक्षा मंत्री श्रीमती सीमा त्रिखा और राज्यमंत्री बिशम्बर वाल्मीकि का भी भाजपा ने टिकट काट दिया है। लोगों में इस बात को लेकर हैरानी है कि अगर इन नेताओं का टिकट काटना ही था तो चंद रोज़ पहले उन्हें मंत्री क्यों बनाया गया? इतना हीं नहीं, मनोहर लाल सरकार व नायब सिंह सैनी सरकार में केबिनेट मंत्री रहे डॉ. बनवारी लाल और रणजीत सिंह चौटाला का भी टिकट काट दिया गया। दूसरी तरफ मनोहर लाल सरकार में मंत्री रहे किन्तु जिन्हें 4 महीने पहले ही मंत्रिमंडल से बाहर किया गया था, उनमें से ओम प्रकाश यादव व श्रीमती कमलेश ढांडा को फिर से टिकट दे दिया गया है। ऐसे ही सोहना से विधायक और राज्यमंत्री संजय सिंह का पहली सूची में सोहना से नाम काट दिया गया किन्तु दूसरी सूची में उन्हें नूंह से उम्मीदवार बना दिया गया है। मनोहर सरकार में खेल मंत्री रहे संदीप सिंह का पिहोवा से टिकट कटने की पहले से ही उम्मीद थी। उनके स्थान पर पहले कमलजीत अजराना को पिहोवा से उम्मीदवार बना दिया गया और फिर उनके स्थान पर डी.डी. शर्मा को टिकट दे दी गई। इस बार भाजपा की टिकटों को लेकर पूरे प्रदेश में भाजपा नेता परेशान व बेहद ब़गावती सुर में नज़र आ रहे हैं।

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