परिपक्व नेता

राहुल गांधी को ज़िंदगी और हालात ने बहुत मौके दिये हैं। वह इसलिए भी किस्मत वाले हैं कि उनका जन्म एक ऐसे परिवार में हुआ जो पीढ़ी दर पीढ़ी देश के लिए समर्पित भी रहा और प्रत्येक ने अपने-अपने ढंग तरीके के साथ बड़े काम भी किये। देश की आज़ादी से पहले मोती लाल नेहरू से चला यह सिलसिला जवाहलाल नेहरू, इंदिरा गांधी, राजीव गांधी, सोनिया गांधी से होते हुए उन तक आ गया है। पिछले लम्बे समय से वह अपनी माता श्रीमती सोनिया गांधी के संरक्षण में राजनीति में सक्रिय रहे हैं। राजनीति उनको गुढ़ती में मिली थी। एक बड़ी राष्ट्रीय पार्टी के साथ जुड़े होने के कारण अलग-अलग समय अलग-अलग पदों पर काम करते रहे होने के कारण वह अक्सर देश भर में चर्चित रहे हैं। 
राजनीति के क्षेत्र में उनके हिस्से जीत भी आती रही हैं और हार भी। इतना रास्ता तय करने के बाद और लम्बे समय से राजनीति में सक्रिय होने के कारण उनके काम और शब्दों से परिपक्वता की आशा रखी जाती है। यह भी उम्मीद की जाती रही है कि उनको एक दिन देश की नियति को संवारने के लिए बड़ी ज़िम्मेदारी भी सौंपी जा सकती है। मौजूदा प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी जैसे विशाल कद वाले नेता के सामने वह अक्सर डट कर खड़े भी होते रहे हैं। पिछले लोकसभा चुनावों में उनकी चिरकाल से गिरी साख को दोबारा बूर भी पड़ा। जिससे कल को फूल खिलने की भी आशा की जा सकती है लेकिन इस सब कुछ के बावजूद अभी तक भी वह अपने पद के मुताबिक परिपक्वता वाला प्रभाव बना सकने में असमर्थ रहे हैं। राजनीति में विचरण करते हुए वह लगातार  स्टेजों पर बोलते और स्थान-स्थान पर ब्यान भी देते रहे हैं। परन्तु इनमें से अधिकतर बयान विवादों को जन्म देने वाले होते हैं। ऐसे भी जो आतिशबाज़ी की जगह अक्सर शुरली बन जाते हैं। इनसे अक्सर यह प्रभाव मिलता है कि वह बहुत-से बयान पूरी तैयारी तथा सोच-विचार करके नहीं देते, जो निराशा पैदा करते हैं, क्योंकि उन्हें मिली ज़िम्मेदारियों के कारण उनसे सार्थक बातों की अधिक आशा रखी जाती है, परन्तु इसी प्रकार अपने विदेशी दौरों के दौरान तो वह अपने दिये गये बयानों में खुल-खेलते प्रतीत होते हैं। इस बार भी उनका कुछ दिनों का अमरीका का दौरा ऐसे प्रभावों वाला ही बना दिखाई देता है।  
विशेष तौर पर आरक्षण तथा चीन के संबंध में कही गई उनकी बातों ने बड़े विवाद शुरू कर दिये हैं। इसी दौरे के दौरान सिख समुदाय के बारे में जो उन्होंने बयान दिया, वह बहुत विवाद शुरू करने वाला ही नहीं, अपितु बेहद आपत्तिजनक है। इससे ही उनकी सीमित सोच का एहसास हो जाता है।  वहां एक एकत्रता में बोलते हुए भारत की वर्तमान राजनीति के संदर्भ में उन्होंने कहा कि सबसे पहले आपको यह समझना होगा कि लड़ाई किस बारे है। लड़ाई राजनीति को लेकर नहीं है, लड़ाई इस बात की है कि एक सिख को तौर पर उन्हें भारत में दस्तार बांधने की अनुमति दी जाएगी? या सिख के रूप में उन्हें भारत में कड़ा पहनने की इजाज़त दी जाएगी? या एक सिख गुरुद्वारा में जा सकेगा? नि:संदेह उनकी इस टिप्पणी ने भारत में रहते सिख समुदाय संबंधी उनकी सीमित सोच का ही प्रकटावा किया है। इसके साथ ही उन्होंने अमरीका  तथा विश्व भर को एक आपत्तिजनक एवं गलत संदेश दिया है। जहां तक भारत के सिख समुदाय का संबंध है, यह बिना रोक-टोक अपनी मान्यताओं के अनुसार विचरण कर रहा है। इसने जहां देश के गौरव को बढ़ाया है, वहीं समय-समय यहां विचरण करते हुए उसका अपना गौरव भी बढ़ा है। राहुल ऐसा कहते हुए शायद प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी पर निशाना साध रहे हों, परन्तु उन्हें ऐसा कहते हुए विगत दशकों में हुआ क्रिया-कलाप भूल गया होगा जो उन्हें भूलना नहीं चाहिए था। राहुल के पिता राजीव गांधी को 1984 के सिख कत्लेआम का दोषी माना जाता है। राजीव ने ही इन दंगों को सही दर्शाते हुए यह बयान दिया था कि जब कोई बड़ा वृक्ष गिरता है तो धरती हिलती है। यहीं बस नहीं, उनकी दादी श्रीमती इंदिरा गांधी द्वारा प्रधानमंत्री होते हुए श्री दरबार साहिब पर तोपों तथा टैंकों के साथ कहर बरपा किया गया था। पुरानी होने के कारण शायद ये बातें उन्हें भूल गई हों, परन्तु जहां तक प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी का संबंध है, उन्होंने हमेशा सिख समुदाय के प्रति बेहद अच्छी भावनाओं का ही प्रकटावा किया है। शायद राहुल को यह जानकारी भी न हो कि सिख पंथ अपनी अरदास में प्रतिदिन बिछुड़े गुरुधामों के दर्शन-दीदार की इच्छा प्रकट करता है। 
इस संदर्भ में गुरु नानक देव जी के अंतिम जीवन से संबंधित करतारपुर साहिब गलियारे को खुलवाने में भी श्री नरेन्द्र मोदी का बड़ा योगदान रहा है। उस समय उन्होंने स्वयं पंजाब के डेरा बाबा नानक में पहुंच कर अति उत्तम भावनाओं के साथ गुरु जी को श्रद्धांजलि अर्पित करते हुए इस गलियारे की शुरुआत के लिए स्वयं को भाग्यशाली कहा था। श्री मोदी ने ही साहिबज़ादों के याद में देश भर में ‘वीर बाल दिवस’ मनाने की सरकारी परम्परा शुरू की थी। उन्होंने कहा था कि साहिबज़ादों की शहादत से पूरी दुनिया प्रेरणा लेगी और यह भी कि सिख गुरुओं ने प्रत्येक भारतीय को देश की शान के लिए जीना सिखाया है। श्री मोदी अक्सर देश के अलग-अलग गुरुद्वारा साहिबान में नतमस्तक होते हुए दस्तार सजाने में बड़ा गर्व महसूस करते हैं। तख्त श्री हरिमंदिर जी पटना साहिब में नतमस्तक होते हुए उन्होंने कहा था कि लंगर की परम्परा महान है और यह भी कि गुरुओं की शिक्षाएं हम सभी को हमेशा प्रेरित करती रहेंगी और हमारा मार्ग-दर्शन भी करती रहेंगी। नि:संदेह राहुल गांधी की भारत में बसते सिखों के बारे में यह टिप्पणी बचकाना ही नहीं, बल्कि बेहद आपत्तिजनक भी है, जिसके लिए उनको समूचे सिख जगत से माफी मांगनी चाहिए, ताकि दुनिया भर में भारतीय सिख भाईचारे का सही प्रभाव सामने आ सके।

    —बरजिन्दर सिंह हमदर्द