परिपक्व नेता बन कर उभरे हैं राहुल गांधी

जब से ‘इंडिया’ गठबंधन ने लोकसभा चुनाव में मज़बूती हासिल की है, तब से राहुल गांधी एक परिपक्व नेता के रूप में उभरे हैं। कांग्रेस को बचाये रखने में राहुल गांधी का बड़ा योगदान है। अकेले दम पर चार हजार किमी की पदयात्रा कर असली भारत को जानने में सफल रहे राहुल ने उत्तर प्रदेश में समाजवादी पार्टी के साथ और देशभर में ‘इंडिया’ गठबंधन का अग्रणी हिस्सा बनकर मोदी सरकार को सीधे-सीधे चुनौती दी, जिसमें कांग्रेस राहुल गांधी व अन्य कांग्रेस पदाधिकारियों व कार्यकर्ताओं की मेहनत की बदौलत 99 लोकसभा सीटें पाने में कामयाब हुई  जो अब 102 तक पहुंच चुकी है जबकि ‘इंडिया’ गठबंधन का आंकड़ा 234 पर रहा, जो अब कांग्रेस के तीन सांसद बढ़ने से 237 पर जा पहुंचा है।
हालांकि अपने बयानों जैसे मोदी सरनेम पर टिप्पणी को लेकर आपराधिक मानहानि के मामले में दोषी ठहराए जाने और 2 साल की सजा मिलने के एक दिन बाद राहुल गांधी की संसद सदस्यता भी खत्म कर दी गई थी लेकिन उन्होंने हार नहीं मानी और दोगुनी मज़बूती के साथ रायबरेली व वायनाड सीटें जीत कर आए। लोकसभा चुनाव से पूर्व तत्कालीन मोदी सरकार द्वारा विपक्ष के नेताओं को चुन-चुनकर निशाना बनाया जाता रहा है लेकिन सच यह भी है कि राहुल गांधी की लोकसभा सदस्यता खत्म होने के बाद ही विपक्षी दलों की केंद्र के खिलाफ एकजुटता और मज़बूत हो गई थी। उसी दौर में दिल्ली के तत्कालीन उप-मुख्यमंत्री मनीष सिसोदिया की गिरफ्तारी हुई तो विपक्ष ज्यादा मुखर नहीं हुआ था। इसी तरह से लालू यादव परिवार के खिलाफ ईडी और सीबीआई की कार्रवाई पर बिहार के मुख्यमंत्री नितीश कुमार तक सीधे-सीधे कुछ कहने से बचते रहे। किन्तु उसी समय राहुल गांधी की सदस्यता खत्म किए जाने पर कांग्रेस के अलावा दूसरी विपक्षी पार्टियों ने एक सुर में मोदी सरकार पर हमला बोला था। शिवसेना नेता उद्धव ठाकरे राहुल गांधी के साथ हुई घटना को लोकतंत्र की हत्या ठहरा रहे थे तो ममता बनर्जी भाजपा पर संवैधानिक लोकतंत्र को नए गर्त्त में ले जाने का आरोप लगा रही थीं। इस तरह अलग-अलग मोर्चों, क्षेत्रीय समीकरणों की वजह से छिन्न-भिन्न दिख रही विपक्षी एकजुटता को लोकसभा चुनाव से पहले नई जान मिल गई थी। 
राहुल गांधी के मामले ने सरकार के खिलाफ विपक्ष को एकजुट होने के लिए बड़ा मुद्दा दे दिया था। राहुल गांधी की संसद सदस्यता जाने से कांग्रेस को सहानुभूति का लाभ मिला जो लोकसभा चुनाव तक बरकरार रहा। कांग्रेस ने भी इस मुद्दे को भुनाने में कोई कोर कसर नहीं छोड़ी। राहुल गांधी को अपील कोर्ट से राहत मिलने के बाद भी उनके पक्ष में सहानुभूति की लहर देखने को मिली। राहुल गांधी की लोकसभा सदस्यता जाने के बाद कांग्रेस ने भी इस मुद्दे को ‘जन सहानुभूति’ का हथियार बनाने की कोशिश में कोई कोर-कसर नहीं छोड़ी। इससे एक समय बिखरा हुआ विपक्ष न सिर्फ मज़बूती से मोदी सरकार के खिलाफ लामबंद हो गया था, बल्कि यह मुद्दा कांग्रेस के पक्ष में जन सहानुभूति की लहर भी पैदा कर गया। 
लोक-प्रतिनिधि अधिनियम 1951 की धारा 8(3) के तहत अगर किसी नेता को दो साल या इससे ज्यादा की सजा सुनाई जाती है तो उसे सजा होने के दिन से उसकी अवधि पूरी होने के बाद आगे छह वर्षों तक चुनाव लड़ने पर रोक का प्रावधान है। अगर कोई विधायक या सांसद है तो सजा होने पर वह अयोग्य ठहरा दिया जाता है। उसे अपनी विधायकी या सांसदी छोड़नी पड़ती है। इसी नियम के तहत राहुल की सदस्यता चली गई थी। सूरत की जिस अदालत ने राहुल को सजा सुनाई, उस अदालत ने राहुल गांधी को फैसले के खिलाफ सैशन कोर्ट में याचिका दायर करने के लिए एक महीने का समय दिया था। तब तक राहुल गांधी की सजा पर रोक रही। मतलब वह इस दौरान जेल जाने से बचे रहे। सुप्रीम कोर्ट के एक फैसले के अनुसार ऐसे मामलों में सजा निलंबित होने का मतलब दोषी को केवल जेल जाने से राहत मिलती है लेकिन सजा के अन्य असर प्रभावी रहते हैं जैसे कि अगर कोई संसद या विधानसभा का सदस्य है तो उसकी सदस्यता चली जाएगी, वोट देने का अधिकार भी खत्म हो जाएगा। चूंकि कोर्ट ने राहुल को दोषी करार कर दिया। इसलिए नियम के अनुसार राहुल की सदस्यता चली गई थी। जिस न्यायालय ने सजा सुनाई थी, जब उसी ने सजा को अपील समय तक यानि एक माह तक के लिए सजा को निलंबित किया तो संसद सदस्यता समाप्त करने के लिए भी एक माह का इंतजार किया जा सकता था जो संसद ने नहीं किया और उनकी सदस्यता समाप्त कर दी थी।
आम तौर पर अदालतें जब किसी व्यक्ति को सजा सुनाती हैं और अगर सजा मामूली है और संज्ञेय अपराध नहीं है तो उसको अगली शीर्ष अदालत में अपील के लिए जो समय दे दिया जाता है, उस अवधि के लिए उसके द्वारा तय जमानत राशि देने पर जमानत दे दी जाती है। जब अदालत को जमानत राशि तय करनी होती है तो वह कई बातों पर विचार करती है। जैसे अपराध या सजा की स्थिति कितनी गंभीर है। वह जिसे जमानत दी जा रही है, उसकी स्थिति क्या है। उसके लिए कितनी जमानत की राशि उपयुक्त रहेगी। कई बार यह जमानत राशि व्यक्ति की हैसियत देख कर भी तय होती है। जमानत की उपरोक्त स्थितियों में बताई गई जमानत की राशि अदालत या जज के विवेक पर तय होती है। अदालत यह फैसला करती है कि जिस व्यक्ति को जमानत दी जा रही है, उसे कितनी जमानत की राशि देनी चाहिए। राहुल गांधी को संसद से अयोग्य करार दिया जाना कांग्रेस पार्टी के लिए बड़ा झटका था क्योंकि इसके बाद वह रिप्रज़ेंटेशन ऑफ द पीपुल एक्ट 1951 के तहत 8 साल तक  चुनाव न लड़ पाते लेकिन शीर्ष अदालत ने राहुल गांधी को इन सब संकटों से पार कर दिया। 
 ऐसे में कोर्ट के फैसले के बाद जहां एक तरफ राहुल गांधी का महत्व पार्टी के लिए बढ़ गया था, वहीं दूसरी तरफ कई विपक्षी दलों का कांग्रेस के साथ आने का रास्ता साफ हो गया। केन्द्रीय जांच एजेंसियों के खिलाफ कांग्रेस समेत 14 पार्टियों द्वारा एक साथ सुप्रीम कोर्ट का रुख करने से भी कांग्रेस दूसरे विपक्षी दलों को अपने साथ लेकर आगे बढ़ने में कामयाब हुई है जिससे 19 विपक्षी दल एकजुट हो गए। ऐसे में गैर भाजपा पार्टियों का गठबंधन जहां प्रभावी हो सका है, वहीं कांग्रेस को संजीवनी मिली है जिसका फायदा ‘इंडिया’ गठबंधन को बीते लोकसभा चुनाव में मिल पाया।