दक्षिणी एशिया के कद्दावर पत्रकार थे कुलदीप नैय्यर

भारतीय राजनीति के स्तम्भ लेखकों में कुलदीप ‘लम्बू’ नैय्यर से बड़ा नाम किसी और का नहीं था। उनको व्यंग्यात्मक तौर पर ‘लम्बू’ उपनाम भारत के सबसे छोटे कद के प्रधानमंत्री लाल बहादुर शास्त्री ने दिया था। स्यालकोट (पाकिस्तान) में जन्मे नैय्यर ने लम्बी आयु भोगी एवं उनका देहांत 95 वर्ष की आयु में नई दिल्ली में हुआ। उनका स्तम्भ लेखन करियर इतिहास से भरा हुआ है। एक उर्दू प्रैस रिपोर्टर के तौर पर शुरुआत करने वाले नैय्यर ने ‘द स्टेट्समैन’ के सम्पादक के तौर पर सेवा निभाई। वह श्रीमती इंदिरा गांधी की एमरजैंसी (1975-77) के दौरान जेल में रहे, 1990 में ब्रिटिश शासन में भारतीय हाई कमिश्नर बने और अगस्त 1997 में अपने देश की राज्यसभा के सदस्य बने। उनके सिंडीकेट कॉलम 80 से अधिक समाचार पत्रों में छपते रहे हैं।
उन्होंने अपनी मृत्यु से पहले मुहम्मद अली जिन्नाह से लेकर नरेन्द्र मोदी (2019) तक कई दिग्गज नेताओं के पैन चित्र संकलित किए। उन्होंने अपनी किताब का नाम बदल कर ‘हीरोज़, नीरोज़ और ज़ीरोज़’ रखा। इस किताब में उनकी भारतीय और पाकिस्तानी नेताओं—एम.के. गांधी से लेकर नरेन्द्र मोदी और एम.ए. जिन्नाह से लेकर ज़ैड.ए. भुट्टो तक की यादें शामिल हैं। वह शायद इन सबको बहुत अच्छी तरह से जानते थे।
नैय्यर की निजी तौर पर किस्मत से मुलाकात बहुत जल्दी हो गई, जब उन्होंने 1945 में एक नौजवान विद्यार्थी के रूप में लाहौर में बहुत कम लोगों की उपस्थिति में जिन्नाह को बोलते हुए सुना। नैय्यर ने जिन्नाह से पूछा कि आज़ादी के बाद हिन्दू और मुसलमान गले लग सकते हैं। जिन्नाह ने इससे असहमति प्रगट करते हुए कहा कि दोनों नये देश जंग के बाद जर्मनी और फ्रांस की तरह दोस्ती में रहेंगे। वह 30 जनवरी, 1948 को बिरला हाऊस गये, जहां उन्होंने महात्मा गांधी की हत्या वाले स्थान पर कम रोशनी के दौरान खून की बूंदें चमकती देखीं।
उन्होंने ़खान अब्दुल ़गफ्फार ़खान उर्फ फ्रंटियर गांधी के साथ इंटरव्यू किया तो उन्होंने नैय्यर को यह पूछ कर हैरान कर दिया, ‘क्या आप लोग बनिया होते हो?’ (क्या आप भारतीय अभी भी व्यापारी हो?)’ वह फरवरी 1999 को प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी के साथ शान्ति बस यात्रा दौरान अमृतसर से लाहौर गये। वह भारत-पाक मित्रता के पक्के समर्थक थे। वह हर वर्ष 14-15 अगस्त को वाघा सीमा पर शान्ति के लिए मोमबत्तियां जला कर अपनी वचनबद्धता को व्यक्त करते थे। नैय्यर जवाहर लाल नेहरू की लोकतंत्र और धर्म निर्पेक्षता के प्रति वचनबद्धता के बड़े प्रशंसक थे। वह इंदिरा गांधी के बारे में बहुत कम सोचते थे और उन्हें जेल में भेजने के बावजूद वह अपने लेखों में उनके बारे में बुरा नहीं लिखते थे। नैय्यर देख सकते थे कि उन पर संजय गांधी का प्रभाव था। उन्होंने एक बार संजय गांधी से पूछा था, उनको क्या लगता है कि वह और उनकी मां अपनी तानाशाही चालों से बच सकते हैं? इसके जवाब में संजय गांधी ने कहा था कि मेरी योजना के अनुसार 3 से 4 दशकों तक कोई चुनाव नहीं होंगे।
नैय्यर के अनुसार ज़ुल्फिकार अली भुट्टो एक प्रतिभाशाली, दलेर और साहसी नेता थे, लेकिन वह अहंकारी थे। एक बार भुट्टो ने नैय्यर को पूछा था कि अब जब वह इंदिरा, शेख मुजीब और उन्हें (भुट्टो) को मिल चुके हैं तो क्या वह इस बात से सहमत नहीं कि वह (भुट्टो) उप महादीप का प्रधानमंत्री बनने के हकदार हैं। नैय्यर जोर देकर बताते हैं कि शिमला में भुट्टो ने जंगबंदी रेखा को एक अंतर्राष्ट्रीय सीमा के तौर पर स्वीकार किया था जिसका अर्थ है कि पाकिस्तान अपने कब्ज़े वाले कश्मीर क्षेत्र (जिसको आज़ाद कश्मीर कहा जाता है) को बरकरार रखेगा, जबकि कश्मीर वादी, जम्मू और लद्दाख के बाकी हिस्से भारत का हिस्सा रहेंगे (जो प्रधानमंत्री मोदी द्वारा धारा 370 को रद्द किये जाने के बहुत पहले ही तय हो चुका है।)
नैय्यर के पाकिस्तानी दोस्तों में फैज़ अहमद फैज़ भी शामिल थे। नैय्यर का मानना था कि फैज़ की मानवता ही उसका धर्म है। जब नैय्यर ने फैज़ से उनके पसंदीदा गायक का नाम पूछा तो उन्होंने इकबाल बानो या नूर जहां की बजाय नैय्यरा नूर का नाम लिया। एक बार अपने लाहौर दौरे के दौरान कुलदीप नैय्यर ने नूरजहां को मिलने की इच्छा प्रकट की तो उनको माडल टाऊन फिल्म स्टूडियो ले जाया गया। वह नूरजहां को पहचान न सके क्योंकि उन्होंने उनको बम्बई के बचपन के दिनों में देखा था। जब नैय्यर ने उनसे पूछा कि वह उन्होंने कितने गाने गाये हैं तो नूरजहां ने मज़ाक में जवाब देते हुए कहा—‘न गानों का शुमार है, और न ही गुनाहों का’ भाव कि न तो गाये गानों की गिनती है और न ही अपने किये गुनाहों के बारे में पता है। 
नैय्यर ने नवाज़ शऱीफ के साथ उनकी जलावतनी के दौरान जेदाह में मुलाकात की तो उन्होंने शऱीफ के उस दावे को मानने से इन्कार कर दिया कि वह कारगिल बारे में कुछ भी नहीं जानते थे, जिसकी नैय्यर ने 1965 की जंग के बारे में भुट्टो द्वारा पहले से कोई जानकारी न होने के दावे के साथ तुलना की। शऱीफ की जलावतनी के बाद जब नैय्यर ने अटल बिहारी वाजपेयी के साथ इंट्रव्यू की तो वाजपेयी ने कहा था कि नवाज़ शऱीफ ने हमारे लिए अपनी कुर्बानी दी है। वाजपेयी ने अपने बैक-चैनल आर.के. मिश्रा और नियाज़ नायक के हवाले के साथ कहा था कि हम लगभग वहीं थे। 
सालों बाद प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने एस.के. लम्ब/तारिक अज़ीज़ की बातचीत नाकाम होने पर ऐसा ही अफसोस प्रकट किया था। कई अन्यों की तरह नैय्यर ने सोनिया गांधी की ओर से मनमोहन सिंह को ‘अपना पीछा करने वाले घोड़े’ के रूप में इस्तेमाल करने पर टिप्पणी करते हुए कहा था कि उन्होंने भी देखा कि ‘सोनिया गांधी द्वारा दी गई कुर्सी’ पर उनके आगे विराजमान होने के समय मनमोहन सिंह कितने दुखी दिखाई दिये थे। नैय्यर की 2018 में मृत्यु के बाद उनकी अस्थियां वाघा सीमा पर लाई गई थीं, जहां वह हर वर्ष मोमबत्तियां जलाया करते थे और उसके बाद उन अस्थियों को रावी दरिया में जल प्रवाह किया गया था। नैय्यर अपनी मृत्यु से पहले ही भविष्यवाणी कर गये थे कि प्रधानमंत्री मोदी पाकिस्तान के मुद्दे पर कोई भी पहल नहीं करेंगे। मोदी के राजनीतिक जीवन काल में अभी तक ऐसा नहीं हो सका है।