विचित्र जीव होती हैं चींटियां

आपने अनेकों प्रकार की चींटियां देखी होंगी मगर सब चींटियों के क्रि याकलाप एक जैसे नहीं होते लेकिन सभी चींटियां मेहनतशील होती हैं। चींटियों के डंक मारने का तरीका अलग-अलग होता है। कुछ चींटियां मुंह से काटती हैं तो कुछ चींटियां अपने शरीर के पिछले हिस्से से डंक मारती हैं। अपने शरीर के पिछले हिस्से से डंक मारने वाली चींटियां प्राय: विषैली होती हैं। इस प्रकार की चींटियां मनुष्य शरीर के जिस स्थान पर डंक मारती हैं उस स्थान पर गोल चकत्ते हो जाते हैं और खुजली के साथ पीड़ा होती है।
चींटी अपने आप में घोड़े से अधिक शक्तिशाली होती है क्योंकि बुरी तरह घायल हो जाने पर भी वह मरती नहीं है या मनुष्यों के द्वारा कुचले जाने पर भी लंगड़ाती हुई भाग जाती हैं। यदि इसके शरीर का आधा हिस्सा काटकर अलग हो जाता है, फिर भी चींटी जीवित रहती है। दोरंगी चींटी तो और कमाल करती है।
दोरंगी चींटी
दोरंगी चींटियों के रंग दो प्रकार के होते हैं। मुंह की तरफ से लाल और पीछे का भाग काला होता है। यह चींटी बड़ी गति से दौड़ती रहती है और समूह में रहना पसंद करती है। इनकी लाखों चींटियों का समूह होता है। ये चींटियां भोजन की खोज में अपने बिल से एक डेढ़ किलोमीटर दूर निकल जाती हैं। ये चींटियां ज्यादातर नदी के तटों पर रेतीली भूमि पर देखने को मिलती हैं। ये चींटियां रेगिस्तान जैसी तपती रेत पर कड़ी धूप में भी चलने में सक्षम हैं। इन्हें कोई फर्क नहीं पड़ता है।
इन चींटियों की खासियत यह है कि गर्मी के दिनों में समूह की अधिकतर चींटियां बिल खोदने में लगी रहती हैं और बाकी चींटियां अपना चारा बटोरने में व्यस्त रहती हैं। बिल खोदने वाली चींटियां बिल के अंदर बहुत बड़ी सुरंग बना लेती हैं और चारा बटोरने वाली चींटियां चारा बटोर कर बिल के अंदर चारे का ढेर लगा देती हैं ताकि वक्त ज़रूरत यदि बाहर चारा न मिले तो उसी इकट्ठे किए हुए चारे को खाकर काम चलाती हैं या वर्षा के मौसम में और जाड़े के दिनों में जब शीत लहर का प्रकोप होता है, तब ये चींटियां बिल से बाहर नहीं निकलती। ऐसे समय में बिल के अंदर जमा किया हुए चारे को खा कर समय गुजारती हैं।
यह चींटियां बिल से तब तक नहीं निकलती जब तक गर्मी की आहट आ न जाए। इन चींटियों की एक खूबी और है कि यदि चारा बटोरने वाली चींटियां किसी कारणवश चारा बटोरना छोड़ कर बिल खोदने में लग जाएं तो उन चींटियों के स्थान पर दूसरी चींटियां चारा बटोरने में लग जाती हैं जो चींटियां पहले से बिल खोद रही थी। ये चींटियां किसी को काटती नहीं हैं मगर खतरा महसूस होने पर इन चींटियों की फौज एकबारगी टूट पड़ती है।
इन चींटियों की बुद्धि इतनी होती है कि यदि बिल पर कभी कोई तिनका आकर अटक जाए तो तुरंत 8-10 चींटियां मिलकर उस तिनके को दूर फेंक आती हैं। 
चींटियों की मूंछें
चींटियों की आंख से नीचे बाल के रूप में दो मूंछें होती हैं। उन्हें सूंघ कहा जाता है। यह सूंघ ऐंटीना का काम करता है। किसी वस्तु को सूंघ से स्पर्श कर चींटी यह पता लगा लेती है कि वह कैसी वस्तु है, उनके खाने योग्य है अथवा नहीं, उनका स्वाद कैसा है। 
चींटी के लिए वह सूंघ नाक का भी काम करता है क्योंकि किसी दूर स्थान पर रखी चीनी, मरे हुए कीड़े अथवा उनके खाने योग्य भोज्य पदार्थों का पता मूंछ के द्वारा ही लगा लेती हैं और वहां तक पहुंच जाती हैं चाहे वस्तु डिब्बे में बंद क्यों न हों।
चींटियों की घ्राणशक्ति बड़ी तेज होती है। पांच सौ फीट की दूरी तक इन्हें गंध पहचानने की शक्ति होती है। गंध पहचानकर चींटी की फौज बिना भटके हुए गंतव्य स्थान तक पहुंच जाती है। (उर्वशी)