किसानों को कराये शऱाफत से कमाई शरीफा का पेड़

शरीफा या कस्टर्ड एप्पल को सीताफल के नाम से भी जाना जाता है। हालांकि कुछ लोग मानते हैं कि यह मूलत: भारतीय पेड़ न होकर उष्णकटिबंधीय अमरीका का पेड़ है। लेकिन इसकी मौजूदगी भारत में रामायणकाल से है। कहा जाता है इसका नाम सीताफल इसलिए पड़ा, क्योंकि माता सीता ने यह फल रामचंद्र जी को खाने के लिए दिया था। बहरहाल इसका वानस्पतिक नाम अन्नोना स्क्वामोसा है। पूरे देश में इसे अलग-अलग स्थानीय नामों से भी जाना जाता है, लेकिन शरीफा या सीताफल से इसे पूरे देश में पहचाना जाता है। पहले यह जंगलों में अपने आप ही उग आता था, लेकिन अब इसकी बकायदा खेती की जाती है, क्योंकि स्वाद और कई तरह के गुणों से भरपूर बाजार में इस फल की अच्छी खासी मांग है, जिस कारण इसकी खेती से किसानों को खूब आमदनी होती है। सबसे अच्छी बात यह है कि शरीफा की खेती सभी तरह की मिट्टी में और हिंदुस्तान के हर इलाके में आसानी से हो जाती है। इस कारण यह भारत के हर क्षेत्र में किसानों द्वारा आसानी से उगाया जा सकता है। 
किसानों के लिए यह इस कारण भी फायदेमंद है, क्योंकि यह दो से तीन साल के भीतर फल देने लगता है और एक विकसित पौधे में 100 से ज्यादा फल मिल जाते हैं। जबकि एक एकड़ में 500 पौधे आराम से लगाये जा सकते हैं। इस तरह देखें तो एक एकड़ में हर साल 30 से 35 क्विंटल शरीफा की पैदावार हो जाती है, जिससे किसान को एक से डेढ़ लाख रुपये तक की आमदनी हो जाती है। शरीफा का फल तेजी से स्वास्थ्य के प्रति सजग हो रहे लोगों के बीच लोकप्रिय हो रहा है, क्योंकि यह ऐसा फल है, जिसमें बहुत सारे पोषक तत्व पाये जाते हैं मसलन पोटेशियम, मैग्नीशियम, फाइबर, विटामिन ए, विटामिन सी और प्रोटीन। सेहत के लिए बेहद फायदेमंद शरीफा ऐसा फल होता है जिसे पक जाने पर शुगर के मरीज को नहीं खाना चाहिए। यह अर्थराइटिस और कब्ज़ जैसी स्वास्थ्य संबंधी समस्याओं से बचाने में मदद करता है। 
इसके पेड़ की छाल में टैनिन होता है, जिसका इस्तेमाल दवाईयां बनाने में होता है। इस पेड़ के पत्तों से कैंसर और ट्यूमर जैसी बीमारियों का इलाज भी होता है। शरीफे के फल में एक खास तरह की महक होती है, जिस कारण इसे जानवर नहीं खाते, इससे इसकी ज्यादा देखभाल की भी ज़रूरत नहीं पड़ती। यूं तो शरीफा का पेड़ सभी तरह की जमीन में बहुत आराम से होता है परंतु अच्छी जलनिकास वाली दोमट मिट्टी इसकी बढ़वार और पैदावार के लिए सबसे अच्छी है। हालांकि यह पथरीली और शुष्क जमीन में भी आसानी से हो जाता है। इसकी खेती के लिए जमीन का पीएच मान 5.5 से 6.5 के बीच सबसे अच्छा माना जाता है। ..और हां, जिन क्षेत्रों की जलवायु शुष्क होती है और जहां पाला नहीं पड़ता, वो जगहें भी इसके लिए बहुत उपयुक्त होती हैं। शरीफा की कई किस्में होती हैं, जो अलग-अलग भौगोलिक जगहों के लिए बेहतर मानी जाती हैं। 
शरीफा की कुछ प्रमुख किस्मों में बालानगर, अर्का सहन शरीफा, लाल शरीफा, मैमथ शरीफा आदि होती हैं। मैमथ शरीफा आमतौर पर सबसे अच्छी फसल देने वाली किस्म है, इसमें प्रतिवर्ष प्रति पेड़ 80 से 100 फल आसानी से लग जाते हैं और इस किस्म के फलों में बीजों की संख्या भी कम होती है। जबकि लाल शरीफा और अर्का शरीफा आमतौर पर 60 से 70 फल ही सालभर में देते हैं। हालांकि विकसित की गई नई प्रजातियां 150 फल देने वाली भी होती हैं। शरीफा की खेती करने के लिए दो तरीके हैं, चाहे बीज से पौधे बोएं जाएं या वानस्पतिक तरीके से ग्राफ्टिंग करके पेड़ तैयार किए जाएं। ग्राफ्टिंग के लिए अक्तूबर, नवम्बर का समय सही रहता है। जानकार कहते हैं कि अच्छी किस्मों की शुद्धता बनाये रखने के लिए तथा पौधों की विकास एवं शीघ्र फसल पाने के लिए वानस्पतिक विधि द्वारा पौधे तैयार करने चाहिए। इस विधि में बडिंग और ग्राफ्टिंग से शरीफे के पौधे तैयार किए जाते हैं। पौधा लगाने के बाद इसकी नियमित रूप से देखभाल की ज़रूरत होती है। नये पौधों में तीन वर्ष तक उचित ढांचा देने के लिए कांट छांट भी करना चाहिए। 
तने पर 50-60 सेंटीमीटर ऊंचाई तक किसी भी शाखा को नहीं निकलने देना चाहिए और उसके ऊपर 3-4 अच्छी शाखाओं को चारों तरफ बढ़ने देना चाहिए। इससे जहां पौधे का ढांचा बेहतर होता है, वहीं शरीफे के फल का तेजी से विकास होता है। जब तेज़ी से शरीफे का पेड़ बढ़ रहा हो, तो उसमें इसकी बेतरतीब और गैर-ज़रूरी शाखाओं को कांट छांट देना चाहिए। उत्तर भारत में मार्च से ही शरीफे के पेड़ में फूल निकलने शुरु हो जाते हैं और फूल निकलने के लगभग 4 महीने बाद हमें शरीफे के पेड़ से पके हुए फल मिलते हैं। सितम्बर से अक्तूबर के महीने में किसानों को शरीफे के पेड़ों से पके शरीफो की फसल मिलती है। शरीफा के फलों को पेड़ से तभी तोड़ लेना चाहिए, जब वो काफी कठोर हों। क्योंकि पेड़ पर अगर ये काफी दिनों तक लगे रहते हैं तो अकसर फट जाते हैं, इसलिए शरीफा के पेड़ के फलों को समय रहते ही तुड़ाई कर लेनी चाहिए।
 इसकी सबसे ज्यादा पैदावार महाराष्ट्र में होती है, यहां 180 एकड़ में शरीफा या सीताफल की खेती की जाती है। वैसे शरीफा का एशिया में सबसे बड़ा फॉर्म छत्तीसगढ़ के दुर्ग ज़िले में स्थित धौराभाठा गांव में है, यह पूरा बगान 400 एकड़ में फैला है और इसमें 16 प्रकार के अलग-अलग फलों की आर्गनिक खेती होती है, जिसमें शरीफा के अलावा कई तरह के अमरूद, चीकू, मौसमी, नींबू और ड्रैगन फ्रूट भी हैं। साथ ही इस बगान के एक बड़े हिस्से में दसहरी आम की भी एक उन्नत खेती होती है।  -इमेज रिफ्लेक्शन सेंटर