नया परिवार 

(क्रम जोड़ने के लिए पिछला रविवारीय अंक देखें)

-हां स्टेला। अब हमें अपनी शादी के बारे में, फैमली के बारे में सीरियसली सोचना चाहिए।
-एक्जेक्टली, और सभी का ब्लेसिंग भी लेना चाहिए। 
-पर शायद मम्मी को हमें भी ब्लैस करना पड़ेगा।
-स्टेला जोर से हंस पड़ी।
-तो तुम्हें लगता है कि उनमें और जोसफ अंकल के बीच जो चल रहा है वह भी सीरियस है। 
-पक्की बात है स्टेला पक्की।
अंत में यही तय हुआ कि अब इन प्रेम-प्रसंगों को खोल कर इन्हें विवाह की ओर बढ़ाया जाए।
जान्हवी को तो बहुत ही खुशी हुई। उनके विचार इस मामले में बहुत आधुनिक निकले और उन्होंने एक बहुत सिम्पल मैरिज के प्रस्ताव का समर्थन दिया।
अंत में वह शुभ दिन आ ही गया और विवाह की रस्म पूरी होने के बाद उन पांचों ने शानदार रेतरां में पार्टी की। फिर बहुत से फूल लेकर घर आए। दोनों कमराें को सुहाग-रात के अनुरूप ही सजाया गया। पूरे घर में खुशियां ही खुशियां थीं, उमंग ही उमंग। आज तो थोड़ी देर ट्यूबलाईट भी जला ली गई ताकि घर अधिक रोशन हो सके।
उधर सेठ धनपतराय मुंबई से दिल्ली आने की तैयारी कर रहे थे क्योंकि यहां कुछ ज़रूरी व्यवसायिक कार्य उन्हें निबटाने थे। उनके साथ उनका सदा साथ रहने वाला सहायक नीमू भी था। बहुत दौलतमंद होने के बावजूद सेठ साहब के नजदीकी रिश्तेदार बुरी स्थिति में थे, अत: वह प्राय: चिड़चिड़़े बने रहते थे। ऐसी स्थिति में नीमू ही उनका गुस्सा शान्त करने में मदद करता था।
ताला खोलते हुए वे दोनों अंदर आए तो ट्यूबलाईट जलते देखकर हैरान हो गए। फिर और आगे आए तो बड़े-बड़े सुनहरी अक्षरों में शुभ विवाह लिखा देखकर और भुनभुनाए। फिर दरवाजा धकेलकर एक कमरे में दो प्रेमियों को अंतरंग मुद्रा में देख भुनभुनाते हुए दूसरे कमरे में चले गए और फिर वहां भी एक जोड़े को उसी स्थिति में देखा तो फिर बाहर आकर जोर-जोर से चिल्लाने लगे, पुलिस बुलाने की धमकियां देने लगे।
इतने में एक वृद्ध महिला ने कमरे में प्रवेश किया तो सेठ साहब सारा क्रोध भूलकर भाव-विभोर हो गए व कहा- अरे जान्हवी तुम यहां! तुम यहां कैसे?
जान्हवी भी उनसे कम हैरान न थी- तो क्या यह बंगला आप का है?
-और नहीं तो क्या?
जान्हवी उनके चरण स्पर्श के लिए आगे बढ़ी तो सेठ साहब ने उन्हें रोक दिया।
-नहीं जान्हवी नहीं, मैं इस लायक नहीं रहा कि तुम मुझे प्रणाम करो। तुम जैसी देवी को जिस दिन से मैंने तिरस्कृत किया, तब से मैं प्रतिदिन ही अपने को धिक्कारता रहा हूं। नीमू से पूछ कर देख लो। अब पहले तुम कहो कि तुमने मुझे क्षमा कर दिया, उसके बाद ही तुमसे बात करने की हिम्मत जुटा पाऊेगा।
-अरे आप कैसी बातें करते हैं। मैं तो बहुत पहले ही समझ गई थी कि किसी ने आपको बुरी तरह गुमराह कर दिया है और आप शीघ्र ही गलती का अहसास करेंगे।
-हां, जान्हवी। जिसके चक्कर में मैंने तुम जैसी देवी का तिरस्कार किया, वह तो कुछ ही समय में मुझे लूट-खसूट कर चलती बनी और मैं सदा प्रायश्चित में तड़पता रहा। पर तुम तो देवी हो। तुम्हें तो बहुत पहले लौट आना चाहिए था।
-चलो अब छोड़ो इन बातों को। आज बहुत दिनों बाद में आपको अपने हाथों से बना कर खाना खिलाऊंगी।
-अरे वाह! मैं तो धन्य हो जाऊंगा पर यह सब क्या है?
सेठ साहब ने ‘शुभ विवाह’ के संदेश की ओर इशारा किया।
जान्हवी जोर से हंस पड़ी।
-सब धीरे-धीरे समझ आ जाएगा। अब मुझे यहां देख लिया है तो इतना तो समझ ही जाओ कि सबकुछ ठीक ठाक है। बस अभी इतना जान लो कि इन बच्चों ने मुझे नया जीवन दिया है, नया परिवार दिया है। इन्हें मैंने अपना बच्चा माना है, तो आप भी इन्हें अपना बच्चा ही मानेंगे। समझ गए न?
-समझ गया। जान्हवी की बातें न मानकर बहुत पछता चुका हूं। अब बाकी जिन्दगी तो जान्हवी का आदेश ही मानना है।
उस दिन खूब जमकर एक-दूसरे का परिचय हुआ। खूब जमकर पकवान मंगवाए गए, बनाए गए, पार्टी की गई। रात हो गई तो स्टेला ने कहा- आज दिन बहुत यादगार रहा। अब सोते हैं। कल सुबह हम तीनों को अपने काम पर जाना है।
सेठ साहब ने कहा- किसी को कहीं नहीं जाना है। दिल्ली में मेरा अपना बड़ा होटल है- होटल डीपीआर। नाम तो सुना ही होगा। उसी के काम के सिलसिले में तो यहां आया हूं। उसमें हमें ईमानदार और नए स्टाफ की बहुत ज़रूरत है- अच्छी पोस्ट पर। बस वहीं आप तीनों को ज्वाईन करना है दो-चार दिनों में। मारिया जी इसी घर को संभालेंगी। मैं और जान्हवी आते जाते रहेंगे।
तो इस तरह एक नए परिवार का जन्म हुआ और वह खूब फला-फूला। (समाप्त)