बॉलीवुड को ले डूबेगी रि-रिलीज़ की भेड़-चाल!

शाहरुख खान और प्रिटी ज़िंटा की फिल्म ‘वीर ज़ारा’ को दुनियाभर के सिनेमाघरों में एक बार फिर से रिलीज़ किया गया है, पहले सप्ताह में ही उसका कलेक्षन 100 करोड़ रूपये को पार कर गया है, जबकि 2004 में जब इस फिल्म को पहली बार रिलीज़ किया गया था तो इसकी कुल कमाई 98 करोड़ रूपये थी। एक दौर था, जब पुरानी सफल फिल्मों को थोड़े-थोड़े अंतराल के बाद सिनेमाघरों में बार-बार रिलीज़ किया जाता था ; क्योंकि उन दिनों उन्हें देखने का कोई अन्य माध्यम था ही नहीं। फिर वीसीआर के बाद इंटरनेट का युग आया और पुरानी फिल्में हमारे मोबाइल फोन पर ही उपलब्ध होने लगीं, इसलिए थिएटरों में उन्हें पुन: प्रदर्षित करने के चलन पर विराम ही लग गया। अब हाल ही में नास्टैल्जिया जागृत करने हेतु एक नया विचार विकसित किया गया है कि क्लासिक फिल्मों को नये सिरे से थिएटरों में रि-रिलीज़ किया जाये ताकि सिनेमाघरों में इन फिल्मों को देखने का अनुभव ताज़ा हो जाये। ‘वीर ज़ारा’ को इसी विचार के तहत रि-रिलीज़ किया गया था।
लेकिन जो शुरुआत एक नये विचार के रूप में हुई थी वह ट्रेंड बन गई कि रि-रिलीज़ की झड़ी लगा दी गई है। लगभग रोज़ ही एक नई रि-रिलीज़ की खबर मिल रही है। रि-रिलीज़ का लगभग ओवरडोज़ सा हो गया है। इसलिए यह सवाल भी उठने लगे हैं कि रि-रिलीज़ का यह गुब्बारा ऊंची उड़ान भरेगा या जल्द ही इसकी हवा निकल जायेगी? ट्रेड एनालिस्ट कोमल नाहटा का मानना है कि बहुत जल्दी बहुत ज्यादा हो गया है। वह कहते हैं, ‘निश्चितरूप से आवश्यकता से अधिक परोस दिया गया है। यह बताना कठिन है कि यह सिलसिला कितना लम्बा चलेगा, लेकिन यह हमेशा कायम नहीं रहेगा। लोग पुरानी फिल्में देखते हुए जल्द थक जायेंगे। इस समय वह सिर्फ नयेपन की वजह से थिएटरों में जा रहे हैं, जोकि ज्यादा देर तक चलने का नहीं है।’ 
यह सही है कि कोई भी नया फैशन लम्बा नहीं चलता है। एक ट्रेंड यह चला था कि पुरानी क्लासिक ब्लैक एंड वाइट फिल्मों को रंगीन करके थिएटरों में रि-रिलीज़ किया गया था। ‘मुगले-आज़म’, ‘नया दौर’, ‘हम दोनों’ आदि को खूब सफलता भी मिली। लेकिन जब लगभग हर तीसरी ब्लैक एंड वाइट फिल्म को कलर कर के रि-रिलीज़ किया जाने लगा तो दर्शकों का उत्साह कम हो गया, निर्माताओं को नुकसान होने लगा और इस सिलसिले पर जल्द ही विराम लग गया। वैसे भी हर फिल्म ‘मुगले-आज़म’ की तरह कालजयी नहीं होती है कि उसे देखने के लिए हमेशा जिज्ञासा बनी रही। एक ट्रेंड यह भी है कि एक एक्टर या एक निर्देशक की चुनी हुई 4-5 फिल्मों को क्यूरेट करके रि-रिलीज़ किया जाता है। ऐसा साल में एक ही बार किया जाता है। इसलिए यह सिलसिला अभी तक सफल है।
बहरहाल, कोमल नाहटा से मैक्स मार्किटिंग के संस्थापक निदेशक वरुण गुप्ता सहमत हैं और वह कहते हैं, ‘रि-रिलीज़ भेड़ चाल है, ट्रेंड नहीं। कुछ फिल्में इसलिए सफल हो रही हैं; क्योंकि जब उन्हें पहली बार रिलीज़ किया गया था तो नई जनरेशन में से बहुत कम लोगों ने उन्हें थिएटर में देखा था। इसमें कोई खास नास्टैल्जिया नहीं है। लोगों ने जो मिस किया, उसे वह कैच कर रहे हैं। लेकिन यह बात सभी फिल्मों पर लागू नहीं होती है। ‘हम आपके हैं कौन’ (1994) को रि-रिलीज़ किया गया, लेकिन कुछ खास सफलता नहीं मिली। रि-रिलीज़ संस्कृति दुधारू गाय नहीं है।’
लेकिन दूसरी ओर पीवीआर इनोक्स पिक्चर्स के कमल ज्ञानचंदानी का अलग दृष्टिकोण है, वह रि-रिलीज़ को बड़े ट्रेंड का हिस्सा मानते हैं। उनके अनुसार, ‘इन फिल्मों ने स्ट्रीमिंग प्लेटफॉर्म्स पर अधिक ख्याति हासिल की और सिनेमाघर दर्शकों को अलग किस्म का अनुभव प्रदान कर रहे हैं। हो सकता है कि यह ट्रेंड फेड कर जाये, लेकिन यही बात तो लोगों ने अखिल भारतीय रिलीज़ के बारे में भी कही थी, वह तो कहीं जाने वाला नहीं है। कुछ फिल्में कामयाब होंगी, कुछ नहीं होने की।’
रि-रिलीज़ के आर्थिक पहलू पर रोशनी डालते हुए सिनेपोलिस इंडिया के प्रबंध निदेशक देवांग संपत कहते हैं, ‘री-रिलीज़ का व्यापार में सकारात्मक योगदान रहा है, लेकिन नई फिल्में आमतौर से थिएटरों को अच्छा मार्जिन प्रदान करती हैं। नई फिल्मों के लिए शेयर प्रतिशत अधिक होता है, लेकिन रि-रिलीज़ की वहनीयता ज्यादा दर्शकों को आकर्षित करती है। थिएटर व्यापार दोनों में संतुलन बनाने से चलता है। मेरा सुझाव यह है कि उन फिल्मों पर फोकस किया जाये जिनकी मांग अधिक है और जिनके प्रमोशन की योजना मज़बूत है। इस तरह थिएटर रि-रिलीज़ के विचार को ताज़ा रख कर सकेंगे और उसका आकर्षण खत्म नहीं होने देंगे।’ 
विशेषज्ञों के नज़रिए अपनी जगह, तथ्य यह है कि रि-रिलीज़ का यह ट्रेंड क्लासिक फिल्मों को बड़े पर्दे पर देखने का शानदार अवसर प्रदान करता है। जहां कुछ लोगों के लिए यह अपनी पुरानी यादों को फिर से जीने का मौका देता है, वहीं नई पीढ़ी को अपनी पसंद की फिल्में छोटे पर्दे की बजाये बड़े पर्दे पर देखने का अवसर देता है। मेरा बेटा सलमान खान का फैन है, लेकिन ‘हम आपके हैं कौन’ उसके जन्म से भी 15-वर्ष पहले रिलीज़ हुई थी, वह फिल्म को थिएटर में बड़े पर्दे पर देखना चाहता था, री-रिलीज़ ने उसे यह अवसर दिया। मैं उसके साथ गया तो मेरी भी पुरानी यादें ताज़ा हो गईं।
-इमेज रिफ्लेक्शन सेंटर