प्राकृतिक सौंदर्य का खज़ाना है धर्मशाला

धर्मशाला हिमाचल प्रदेश का प्रमुख पर्यटन स्थल है जो प्राकृतिक श्रृंगार से लदा हुआ है। धोलाधार पर्वत श्रृंखलाओं तथा स्नोलाइन के कारण यह वह क्षेत्र है जहां चेरापूंजी के अलावा सबसे अधिक वर्षा होती है। यह कांगड़ा क्षेत्र का अप्रतिम सौंदर्य तीर्थ स्थान है। उस समय पैदल यात्रा करने वालों के लिए तत्कालीन शासक धर्मचंद कटोच ने यात्रियों के विश्राम हेतु सराय बनाई थी जिसे ‘धर्मचंद दी सरां’ नाम से जानते रहे। आगे चलकर अंग्रेज वायसराय डी. मेक्लोड ने धर्मचंद दी सरां नाम से जाने जाने वाले इस स्थान को धर्मशाला नाम दिया। इसे मिनी ल्हासा, पहाड़ों की रानी, सौंदर्य का खजाना आदि नामों से विभूषित किया जाता है। यह स्थान समुद्रतल से 13000 मीटर की ऊंचाई पर स्थित है।
धर्मशाला बलुत एवम् नुकीली पत्ती वाले पेड़ों, चीड़ व देवदार के वृक्षों, चाय के बागानों, ऊंची-नीची घाटियों, सीढ़ीनुमा खेताें, सघन वृक्षों, हरी-भरी वादियों के कारण पर्यटकों को बरबस अपनी ओर आकर्षित करता है। धोलाधार पर्वत श्रृंखला यहीं पर स्थित है तथा इसी क्षेत्र में स्नोलाइन का वजूद होने के कारण बर्फीले पर्वतों के आगोश में यह सम्मोहित करता है। कांगड़ा गजेटियर में जी.सी. वार्नर ने यह लिखा है कि संसार के किसी स्थान में इतने भिन्न-भिन्न प्रकार के दृश्य नहीं दिखाई देते हैं जो इस स्थान पर दिखाई देते है। आगे वानर्स कहते हैं कि बर्फ से ढकी चोटियां इस प्रकार चमकती हैं जिस प्रकार नक्काशी किए हुए चांदी का पात्र चमकता हो।
दलाईलामा के चीन से विस्थापन के पश्चात धर्मशाला ही उनका कार्यक्षेत्र बना और उनके साथी तिब्बती लोग इस क्षेत्र में निवास करने लगे। धर्मशाला पहुंचने पर हमें ऐसा आभास होता है कि हम तिब्बत के किसी गांव में आ गये हैं। मार्च से लेकर जून तथा सितम्बर से लेकर नवम्बर तक धर्मशाला में भ्रमण किया जा सकता है। बाकी समय में अधिक वर्षा तथा शीत के कारण पर्यटकों को प्रभावित होना पड़ सकता है।
रेल लाइन से पठानकोट के द्वारा धर्मशाला की यात्रा की जा सकती है जो 85 किमी. की दूरी पर है। डलहौजी व चम्बा आदि से बस या टैक्सी द्वारा धर्मशाला पहुंचा जा सकता है। दिल्ली से धर्मशाला पहुंचने में 13 घंटे लगते हैं वहीं गगल धर्मशाला से मात्र 13 किमी. दूर है। प्रसिद्ध तीर्थ चामुण्डा देवी तथा ब्रजेश्वरी देवी के स्थानों से यह स्थान ज्यादा दूर नहीं पड़ता।
प्रकृति का अजूबा 
 धर्मशाला दो भागों में विभक्त है, ऊपरी तथा निचले। ऊपरी भाग निचले भाग से 450 मीटर ऊंचा है जो लगभग 2 किमी. क्षेत्र में फैला है। धर्मशाला पर्यटन स्थल की यह विशेषता है कि यहां धूप, इन्द्रधनुष तथा हिमपात तीनों एक साथ देखे जा सकते हैं।
मैक्लोडगंज 
 इसे धर्मशाला का ऊपरी क्षेत्र कहा जाता है सन् 1959 तक यहां घना जंगल था लेकिन आज यहां जंगल में मंगल वाली कहावत चरितार्थ है। यह पहाड़ की चोटी पर फैला है। अंग्रेज गर्वनर डेविड मैक्लोड के नाम पर इस क्षेत्र का नाम मैक्लोडगंज पड़ा। मैक्लोडगंज ही धर्मशाला का मुख्य आकर्षण है। तिब्बती धर्मगुरु दलाईलामा का यह निवास स्थान है। यहां कई संस्कृतियों का संगम देखने को मिलता है। यहां का बौद्ध मंदिर यहां की शोभा में चार चांद लगाता है।      
मैक्लोडगंज में तिब्बती जीवनशैली, तिब्बजी वस्तुएं तथा तिब्बती संस्कृति का रूप बखूबी देखा जा सकता है। यहां का बाज़ार देखने लायक है। बौद्धभिक्षुओं तथा भिक्षुणियों को यहां धर्म के रंग में रचा-बसा देख सकते हैं।
डल झील : नगर से 10 किमी. दूर सुरम्य स्थल पर एकांत में चिताकर्षक डल झील है जो आंखों को सुखद एहसास कराती है। यहां आने के बाद आदमी दुनियां से बेखबर हो जाता है और अपने समस्त गम भूल जाता है। शांति और सुकून का यह क्षेत्र घंटों तक एकांत में बैठे रहने हेतु बाध्य करता है। यह डल झील अण्डाकार है तथा इसके चारों तरफ देवदार के ऊंचे-ऊंचे वृक्ष खड़े हैं जिनकी छाया जल में स्पष्ट दिखाई देती है। झील के पास ही एक शिवजी का मंदिर है जहां जन्माष्टमी के पंद्रह दिन बाद हर साल एक बड़ा मेला लगता है। यहां हजारों की संख्या में लोग आते हैं।
तपोवन : धर्मशाला से 7 किमी. दूर स्वामी चिन्मयानंद का तपोवन आश्रम पालमपुर रोड़ पर अवस्थित है जो शांत और मन को सुकून पहुंचाने वाला है। इस आश्रम के पास ही आकर्षक विशाल तथा अद्भुत शिवलिंग स्थित है जो दूर से ही दिखाई देता है। चीड़ के घने वृक्षों से घिरा यह स्थान दीन-दुनियां से दूर मन को शांत व स्थिर कर देता है।
भगसुनाथ मंदिर, त्रिकुंड, धर्मकोट, कोतवाली बाज़ार, करेरी झील, शहीद स्मारक, कुनाल पत्थरी, कांगड़ा कला संग्रहालय, बौद्ध मंदिर आदि धर्मशाला के प्रमुख दर्शनीय स्थान हैं। (उर्वशी)