जलवायु परिवर्तन से बढ़ती जाएंगी भयावह त्रासदियां

पिछले दिनों छत्तीसगढ़ के राजनंदगांव ज़िले में बरसात से बचने के लिए एक स्कूल के खंडहर में बैठे आठ लोग आकाशीय बिजली गिरने से मारे गए, जिनमें छह स्कूली बच्चे थे। राज्य में बीते तीन हफ्ते में 26 लोगों की जान तड़ित या ठनका गिरने से हुई। इनमें  80 मौत तो बीते 15 दिनों में अकेले ओडिसा, झारखंड, मध्य प्रदेश व बिहार में हुई हैं।  25 सितम्बर को भारतीय मौसम विभाग ने चेतावनी जारी कर कहा कि उत्तर प्रदेश के कई ज़िलों में भारी बरसात के साथ बिजली गिर सकती है। इस बार मानसून के अढ़ाई महीनों में देश के अलग-अलग हिस्सों में तड़ित अर्थात आकाशीय बिजली गिरने से 400  से अधिक मौत का आंकड़ा भय उत्पन्न करने वाला है। मवेशी भी बड़ी संख्या इसका शिकार हुए। जलवायु परिवर्तन के दुष्प्रभाव से कई किस्म की प्राकृतिक आपदाएं भयावह रूप ले रही हैं इसमें बिजली गिरना सर्वाधिक घातक, अप्रत्याशित और व्यापक असर वाली है। इसका दायरा बढ़ता जा रहा है । 
जान कर आश्चर्य होगा कि हर साल आकाशीय बिजली गिरने से औसतन 2500 मौतें होती है, लेकिन इसे अभी तक प्राकृतिक आपदा घोषित नहीं किया गया है। यह समझना होगा कि जैसे-जैसे जलवायु परिवर्तन का प्रकोप गहराएगा, ठनका या बिजली गिरने की घटनाएं भी बढेंगी। लाइटिंग रेजिलियेंट इंडिया कैम्पेन के मुताबिक अप्रेल 2020  से मार्च 2021 के बीच भारत में कोई एक करोड़ 85 लाख बार बिजली गिरी। साल 2022 में प्राकृतिक आपदाओं की वजह से हुई कुल 8060 मौतों में से 2887 की वजह आकाशीय बिजली थी। वर्ष 2021 में करीब 787 लोग आकाशीय बिजली की चपेट में आकर मारे गए। यह चेतावनी भारतीय मौसम विभाग भी दे चुका है कि आने वाले साल दर साल प्राकृतिक आपदाओं की घटनाएं बढेंगी और इनमें ठनका या बिजली गिरना प्रमुख है । 
सनद  रहे लोग बिजली के शिकार आम तौर पर दिन में ही होते हैं, यदि तेज बरसात हो रही हो और बिजली कड़क रही हो तो ऐसे में पानी भरे खेत के बीच, किसी पेड़ के नीचे, पहाड़ी स्थान पर जाने से बचना चाहिए। मोबाइल का इस्तेमाल भी खतरनाक होता है। पहले लोग अपनी इमारतों में ऊपर एक त्रिशूल जैसी आकृति लगाते थे, जिसे तड़ित-चालक कहा जाता था। उससे बिजली गिरने से काफी बचाव हो जाता था, असल में उस त्रिशूल आकृति से एक धातु का मोटा तार या पट्टी जोड़ी जाती थी और उसे ज़मीन में गहरे गाडा जाता था ताकि आकाशीय बिजली उसके माध्यम से नीचे उतर जाए और इमारत को नुक्सान न पहुंचे। 
वैसे आकाशीय बिजली वैश्विक रूप से बढ़ती आपदा है।  जहां अमरीका में हर साल बिजली गिरने से तीस, ब्रिटेन में औसतन तीन लोगों की मृत्यु होती है। भारत में यह आंकडा बहुत अधिक है, औसतन दो हज़ार। इसका मूल कारण है कि हमारे यहां आकाशीय बिजली के पूर्वानुमान और चेतावनी देने की व्यवस्था विकसित नहीं हो पाई है। 
बिजली गिरना जलवायु परिवर्तन का दुष्परिणाम तो है, लेकिन अधिक बिजली गिरने से जलवायु परिवर्तन की प्रक्रिया को भी गति मिलती है। बिजली गिरने के दौरान नाइट्रोजन ऑक्साइड का उत्सर्जन होता है और यह एक घातक ग्रीनहाउस गैस है। कई महत्वपूर्ण शोध इस बात को स्थापित करते हैं कि जलवायु परिवर्तन ने बिजली गिरने के खतरे को बढ़ाया है। इस दिशा में और गहराई से काम करने के लिए ग्लोबल क्लाइमेट ऑब्जर्विंग सिस्टम (जीसीओएस) के वैज्ञानिकों ने  विश्व मौसम विज्ञान संगठन (डब्ल्यूएमओ) के साथ मिल कर एक विशेष शोध दल (टीटीएलओसीए) का गठन  किया है ।
धरती के प्रतिदिन बदलते तापमान का सीधा असर वायुमंडल पर होता है और इसी से भयंकर तूफान भी बनते हैं। बिजली गिरने का सीधा सम्बन्ध धरती के तापमान से है। जाहिर है कि जैसे-जैसे धरती गर्म हो रही है, बिजली की लपक और ज्यादा हो रही है। यह भी जान लें कि बिजली गिरने का सीधा सम्बन्ध बादलों के उपरी ट्रोपोस्फेरिक या क्षोभ-मंडल जल वाष्प, और ट्रोपोस्फेरिक ओज़ोन परत से है और दोनों ही खतरनाक ग्रीनहाउस गैस हैं। जलवायु परिवर्तन के अध्ययन से पता चलता है कि भविष्य में यदि जलवायु में अधिक गर्माहट हुई तो गरजदार तूफान कम लेकिन तेज़ आंधियां ज्यादा आएंगी और हर एक डिग्री ग्लोबल वार्मिंग के चलते धरती तक बिजली की मार की मात्रा 10 प्रतिशत तक बढ़ सकती है।
कैलिफोर्निया विश्वविद्यालय, बर्कले के वैज्ञानिकों ने मई 2018 में वायुमंडल को प्रभावित करने वाले अवयव और बिजली गिरने के बीच सम्बन्ध पर एक शोध किया जिसका आकलन था कि आकाशीय बिजली के लिए दो प्रमुख अवयवों की आवश्यकता होती हैष तीनो अवस्था (तरल, ठोस और गैस) में  पानी और बर्फ बनाने से रोकने वाले घने बादल। वैज्ञानिकों ने 11 अलग-अलग जलवायु मॉडल पर प्रयोग किये और पाया कि भविष्य में ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन में गिरावट आने से तो रही और इसका सीधा परिणाम होगा कि आकाशीय बिजली गिरने की घटनाएं बढेंगी ।
एक बात गौर करने की है कि हाल ही में जिन इलाकों में बिजली गिरी, उनमें  से बड़ा हिस्सा धान की खेती का है और जहां धान के लिए पानी को एकत्र किया जता है, वहां से ग्रीन हॉउस गैस जैसे मीथेन का उत्सर्जन अधिक होता है। जितना मौसम अधिक गर्म होगा, जितनी ग्रीन हॉउस गैस उत्सर्जित होगी, उतनी ही अधिक बिजली, अधिक ताकत से धरती पर गिरेगी। 
फिलहाल तो हमारे देश में बिजली गिरने के प्रति लोगों को जागरूक करना, जैसे कि किस मौसम में, किन स्थानों पर यह आफात आ सकती है। यदि संभावित अवस्था हो तो कैसे और कहां शरण लें, तड़ित-चालक का अधिक से अधिक इस्तेमाल आदि कुछ ऐसे कदम हैं, जिससे इसके नुक्सान को कम किया जा सकता है। मौसम विभाग ने दामिनी नामक एप को ले कर दावा किया है कि यह बिजली गिरने के पूर्वानुमान से चेतावनी दे सकती है।  सबसे बड़ी बात दूरस्थ अंचल तक आम आदमी की भागीदारी पर विमर्श करना अनिवार्य है कि कैसे ग्रीन हॉउस गैसों पर नियंत्रण हो और जलवायु में अनियंत्रित परिवर्तन पर काबू किया जा सके। वरना, समुद्री तूफान, बिजली गिरना, बादल फटना जैसी भयावह त्रासदियां हर साल बढेंगी।