स्वतंत्र एवं निष्पक्ष हों पंचायत चुनाव 

पंजाब में पंचायत चुनाव करवाने की घोषणा कर दी गई है। 13237 गांवों में चुनाव होने हैं। नि:संदेह यह घोषणा पंजाब के चुनाव आयोग ने की है परन्तु ये चुनाव अदालती टिप्पणियों के दृष्टिगत करवाए जा रहे हैं, परन्तु फिर भी हैरानी की बात है कि चुनवों के लिए वही दिन चुने गए हैं जो पंजाब में धान की कटाई के दिन हैं। चुनाव गांवों में होने हैं और फसलों की सार-सम्भाल भी गांवों में ही होती है। धान की सरकारी खरीद 1 अक्तबूर से शुरू होगी और मतदान भी 27 सितम्बर से 15 अक्तूबर तक होना है। नि:संदेह यह चुनाव आयोग का फैसला है, परन्तु यह भी स्पष्ट है कि चुनाव आयोग तब तक चुनाव नहीं करवाता, जब तक सरकार तैयारियां पूर्ण होने का आश्वासन नहीं देती। खैर, पंजाब में तथा देश में भी पंचायत चुनाव निचले स्तर पर लोकतंत्र का सबसे बड़ा तथा पहला संवैधानिक कदम हैं, परन्तु यह आम तौर पर गांवों में गुटबाज़ी तथा आपसी रंजिश का कारण भी बनते हैं। 
नि:संदेह इस बार कानूनी तौर पर ये चुनाव पार्टी निशान पर नहीं लड़े जा सकेंगे, परन्तु गत चुनावों तथा उससे पहले भी कई बार बिना पार्टी निशान के पंचायत चुनाव हुए हैं, परन्तु फिर भी इन चुनावों के कारण गांवों में गुटबाज़ी तो पैदा होती ही रही है। आम तौर पर सरकारें चाहे किसी भी पार्टी की हों, इन चुनावों में धक्का करने की कोशिश करती हैं और यह धक्का-तंत्र विधायकों तथा क्षेत्रीय प्रभारियों की देखरेख में ही चलता है। कई बार तो पंचायतों के चुनाव में सर्वसम्मति भी धक्काशाही से ही करवाई जाती है। यह भी ठीक है कि सर्वसम्मति कई बार कुछ असहमत, परन्तु चुप रहने वाले लोगों के मताधिकार का उपयोग करने की इच्छा पर रोक भी लगाती है, परन्तु हमारी पंजाब सरकार को एक चेतावनी है कि यदि धक्कातंत्र से चुनाव जीत भी लिए जाएं तो लोगों को यह महसूस अवश्य होता है कि उनकी ताकत छीन ली गई है। फिर वही लोग जब आम चुनाव होते हैं, तो उस समय सरकारों के पास धक्का करने की सामर्थ्य नहीं होती, तो लोग इसका बदला भी लेते हैं। ऐसा पूर्व की सरकारों के समय कई बार दिखाई भी दिया है। खुद आम आदमी पार्टी की  इतनी बड़ी जीत में यह भी एक कारण रहा है। इसलिए सरकार को विनती है कि वह अपने तथा पंजाब के भले के लिए चुनावों में धक्का करने से अपने नेताओं को रोके। चूल्हा टैक्स जो इतना कम है कि किसी के लिए जमा करवाना कठिन नहीं, को कागज़ रद्द करने का आधार न बनाया जाए, अपितु यदि कोई बड़ा कारण नहीं तो किसी के भी कागज़ रद्द करने से गुरेज़ ही किया जाना चाहिए। प्रशासन या पुलिस के दबाव का इस्तेमाल लोगों की इच्छा को दबाने के लिए किसी भी हालत में न किया जाए। हां, पंजाब सरकार का यह कदम ठीक है कि सर्वसम्मति करने वाली पंचायतों को स्टेडियम, स्कूल या अस्पताल सहित 5 लाख रुपये की ग्रांट दी जाएगी, परन्तु पूर्व की सरकारों के समय सर्वसम्मति वाली कई पंचायतों को यह ग्रांट अभी तक नहीं मिली। 
खैर, सबसे बड़ी ज़िम्मेदारी लोगों की अपनी है। वे होश तथा हौसले से काम लें और अपना भविष्य संवारने की ओर ध्यान दें। अपने-अपने गांव की बेहतरी के लिए गुटबंदी तथा दुश्मनी से बचने के लिए गांव के योग्य, माने जाते ईमानदार तथा पढ़े-लिखे लोगों के नाम पर पार्टीबाज़ी से ऊपर उठ कर सर्वसम्मति करें, परन्तु जहां कोई नेता या अधिकारी धक्के से सर्वसम्मति करवाने की कोशिश करे, वहां अडिग होकर चुनाव करवाने की कोशिश भी करें। हम नहीं समझते कि किसी भी गांव में 5-10 लोग ऐसे नहीं होंगे जिनका राजनीतिक नेता या धक्का करने वाले अधिकारी कुछ भी बिगाड़ न सकते हों। ऐसा होने पर संयुक्त लोग चुने जाएंगे तो राजनीतिक पार्टियां चाहे वे सत्तारूढ़ पार्टी हो या विपक्षी पार्टी, लोगों को इस्तेमाल नहीं कर सकेंगी। 
उनका जो फज़र् है वो अहल-ए-सियासत जानें,
मेरा प़ैगाम मोहब्बत है जहां तक पहुंचे। 
(जिगर मुरादाबादी)
केजरीवाल आर.एस.एस. की शरण में?
कुछ न कुछ सच्चाई होती है निहां हर बात में,
कहने वाले ठीक कहते हैं सभी अपनी जगह।
-अनवर शऊर
(निहां-छिपी हुई)
दिल्ली के पूर्व मुख्यमंत्री तथा आम आदमी पार्टी के सुप्रीमो अरविन्द केजरीवाल ने हाल ही में 3 बार आर.एस.एस. प्रमुख मोहन भागवत से 5 सवाल पूछे हैं। पहली बार जब वह लोकसभा चुनाव में प्रचार के लिए सीमित समय की ज़मानत पर आए थे, दूसरी बार मुख्यमंत्री पद से इस्तीफा देते समय तथा अब तीसरी बार बाकायदा पत्र लिख कर मोहन भागवत  के पास अपने सवाल दोहराए हैं। इन सवालों में प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी को 75 वर्ष को होने पर लाल कृष्ण अडवानी की भांति मार्ग-दर्शक मंडल में भेजे जाने, भाजपा प्रमुख जे.पी. नड्डा का आर.एस.एस. की ज़रूरत न होने संबंधी बयान, देश भर में एजेंसियों के डर तथा लालच से सरकारों तथा विपक्षी नेताओं को तोड़ने के बारे में संघ की सोच, पहले भ्रष्टाचारी घोषित किए लोगों को भाजपा में शामिल करने के संबंध में सवाल पूछे हैं। इसके साथ ही यह भी मांग की है कि संघ की कोख से उत्पन्न हुई पार्टी को आर.एस.एस. ही सही रास्ता दिखाए। 
पहली नज़र में देखते हुए तो यह आर.एस.एस. पर ‘आप’ का हमला प्रतीत होता है, परन्तु ध्यान से देखते हुए तथा ‘आप’ की पिछली कारगुज़ारी को देखते हुए यह सवाल उलटा यह सिद्ध करते ही प्रतीत होते हैं कि ‘आप’ जैसे स्वयं भी आर.एस.एस. से संबंधित संगठन ही हो। 
नहीं तो केजरीवाल बार-बार ये सवाल आर.एस.एस. से क्यों पूछ रहे हैं? क्या मोहन भागवत देश की किसी संवैधानिक कुर्सी पर बैठे हैं? हां, आर.एस.एस. भाजपा की मां संस्था है। इस प्रकार प्रतीत होता है कि केजरीवाल की भाजपा से लड़ाई विरोधी दल वाली नहीं, अपितु शरीकों वाली है। उनका व्यवहार इस प्रकार का है जैसे छोटा भाई बड़े भाई द्वारा किए जा रहे अन्याय तथा मारपीट की शिकायत अपने परिवार के किसी बुज़ुर्ग को कर रहा हो। 
ज़रा ध्यान से देखा जाए तो केजरीवाल तथा उसकी पार्टी को जिताने में सबसे बड़ा हाथ अल्पसंख्यकों तथा दलित वर्ग के समर्थन का ही रहा है। यह पंजाब तथा दिल्ली दोनों स्थानों पर घटित हुआ, परन्तु केजरीवाल तथा आम आदमी पार्टी ने कई बार यह एहसास करवाया है कि वह अल्पसंख्यकों के समर्थक नहीं हैं। सिखों की बात ही ले लें। दिल्ली के दूसरे मुख्यमंत्री एक सिख गुरमुख निहाल सिंह थे। इसके बाद कांग्रेस तथा भाजपा के प्रत्येक मंत्रिमंडल में एक सिख मंत्री अवश्य बनता रहा है, परन्तु हैरानी की बात है कि ‘आप’ की दिल्ली में चौथी सरकार है, परन्तु एक बार भी किसी सिख को मंत्री नहीं बनाया गया। चलो, यदि मान भी लें कि केजरीवाल की नज़र में दिल्ली में सिख विधायक मंत्री बनने के योग्य नहीं (हालांकि हम इससे सहमत नहीं) तो अब तो ‘आप’ की नई मुख्यमंत्री आतिशी मरलेना की सरकार तो चलनी ही 4-5 माह है और 6 माह के लिए मंत्री बनने के लिए विधायक होने की भी ज़रूरत नहीं। क्या केजरीवाल की नज़र में एक भी सिख दिल्ली का मंत्री बनने के योग्य ‘आप’ के पास नहीं है? दिल्ली में केजरीवाल की तीन सरकारों में भी सिखों के लिए कोई काबिल-ए-ज़िक्र काम नहीं हुआ। रही बात मुसलमानों की तो दिल्ली में ‘आप’ की जीत में मुसलमानों का भी बड़ा हाथ रहा है, परन्तु आम आदमी पार्टी ने कभी भी मुसलमानों द्वारा अपने विरोधी समझे जाते कानूनों के मामले में किसी भी बिन्दू पर उनके पक्ष में आवाज़ नहीं उठाई। यही कारण है कि इस बार लोकसभा चुनाव में देश भर में मुसलमान तथा यदि सच पूछें तो सिख तथा अन्य अल्पसंख्यक भी बड़ी संख्या में कांग्रेस की ओर लौटे हैं। शायद इसीलिए ही आगामी दिल्ली विधानसभा चुनाव के लिए मुसलमानों को फिर से भ्रमित करने के लिए केजरीवाल आर.एस.एस. प्रमुख को सवाल पूछ रहे हैं। 
वैसे तो ये आरोप भी लगाए जाते रहे हैं कि आर.एस.एस. ने भारत को हिन्दू राष्ट्र बनाने के लिए जहां बहुसंख्यक के ध्रुवीकरण का सहारा लेकर भाजपा को सत्ता में लाने के लिए कार्य किया, वहीं वह विपक्ष के रूप में कांग्रेस को खत्म करके आम आदमी पार्टी को लाने के लिए उत्सुक है। अन्ना हज़ारे आन्दोलन को आर.एस.एस. तथा उसके सहायक संतों, बाबाओं का स्पष्ट समर्थन किसी से छिपा हुआ नहीं। ऐसी कोशिश के बारे में कहा जाता है कि यदि देश में सत्तारूढ़ तथा विपक्ष दोनों ही आर.एस.एस. की विचारधारा वाले हों तो हिन्दू राष्ट्र घोषित करना आसान हो जाएगा, परन्तु ये आरोप कितने सच हैं और कितने झूठ, इस बारे हम अपनी सोच पर टिप्पणी अपने तक ही सीमित रखना ठीक समझते हैं। वास्तव में भारतीय रानजीति में इतना अंधेरा है कि सच तो क्या, स्वप्न तक भी दिखाई नहीं दे रहा। मेराज़ फैज़ाबादी के शब्दों में:
चऱाग अपनी थकन की कोई सफाई न दे,
वो तीऱगी है कि ख्वाब तक दिखाई न दे।
(तीऱगी=अंधेरा)
माली की गिरफ्तारी
बिल्कुल स्पष्ट शब्दों में हम कहना चाहते हैं कि हम मालविन्दर सिंह माली के अंदाज़-ए-ब्यां, उनकी शैली तथा उनके प्रत्येक विचार से सहमत नहीं हैं, खास करके निजी तथा कटु  हत्तक आमेज़ टिप्पणियों के साथ तो सहमति बिल्कुल ही नहीं है, परन्तु यह ठीक है कि वह पंजाब तथा सिखों की बात करते हैं और कई बार उनकी उठाई हुई बात वज़नदार भी होती है। वह मुख्यमंत्री ही नहीं अपितु अकाली दल तथा कांग्रेस के कई नेताओं के खिलाफ बेबाक टिप्पणियां करते दिखाई देते रहे हैं, परन्तु लोकतंत्र में बोलना तथा किसी की तनकीद (आलोचना) करना उनका अधिकार है। यदि कहीं उनकी टिप्पणी हत्तक के दायरे में आती है तो कानूनी नोटिस दिया जा सकता है। वैसे तो आलोचना ही किसी को उसके कार्यों को परखने का अवसर देती है, परन्तु जिस प्रकार माली को उसकी टिप्पणियों के कारण जेल में बंद कर दिया गया है, उसका समाज के बुद्धिजीवी वर्ग तथा आम लोगों द्वारा विरोध ही हो रहा है। नि:संदेह यह विरोध सरकार का शायद अभी कुछ नहीं बिगाड़ सकता, परन्तु लोगों के मन में कोई अच्छा प्रभाव भी नहीं बना रहा। कम से कम यह दानाई (समझदारी) तो नहीं मानी जा सकती।  
ज़र तनकीद जो कर दे करो उसकी ज़ुबां-बंदी,
ऐ शाह-ए-वक्त दाना लोग तो ऐसा नहीं करते।
 
-लाल फिरोज़पुरी
-1044, गुरु नानक स्ट्रीट, 
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