क्या जेब में विस्फोटक लिए घूमते हैं हम ?

जब से मोबाइल फोन प्रचलन में आया है, तब से देश में ऐसे सैकड़ों हादसों की खबरें सामने आईं, जिनसे पता चला कि मोबाइल फोन में विस्फोट हो गया। कभी उनकी बैटरी ओवर हीट होकर फट गयी तो कभी चार्जिंग में लगे सेलफोन में विस्फोट हो गया। याद कीजिये किसी समय में विश्व की सबसे बड़ी मोबाइल निर्माता मानी जाती कम्पनी को अपने मोबाइल में होने वाले विस्फोट की घटनाओं के कारण 2007 में अपने एक मोबाइल की 46 मिलियन बैटरियों को वापिस मंगाना पड़ा था। मोबाइल फोन फटने की इन घटनाओं में अनेक लोगों के बुरी तरह से घायल होने यहां तक कि दर्जनों लोगों की मौत होने तक की खबरें आई थीं। केरल में त्रिशूर ज़िले के तिरुविल्वमला में, राजस्थान के बांसवाड़ा ज़िले में, उत्तर प्रदेश के बरेली मेरठ व फर्रुखाबाद में, आंध प्रदेश के प्रकाशम ज़िले तथा ओडिशा आदि स्थानों में ऐसे अनेक हादसे हुये जहां मोबाइल में हुये विस्फोट के कारण लोगों को अपनी जान तक गंवानी पड़ी। इसी तरह पिछली बार रिकार्ड तोड़ गर्मी के दौरान बढ़ते तापमान के कारण अनेक एयर कन्डीशन के कम्प्रेशर फटने तथा इन विस्फोटों के परिणामस्वरूप घरों में आग लगने तक की खबरें आई थीं। 
इन सब दहशत पूर्ण घटनाओं के बावजूद जनमानस में भय व अविश्वास का ऐसा वातावरण कभी नहीं बना जैसा पिछले दिनों लेबनान के विभिन्न शहरों में एक साथ अंजाम दिये गये पेजर व वॉकी टॉकी में हुये धमाकों और इनसे होने वाली तबाही के बाद उत्पन्न हुआ है। इन धमाकों में दर्जनों लोगों के मरने व तीन हज़ार से अधिक लोगों के घायल होने के समाचार मिले। पहले तो यह खबर थी कि लेबनान में फटने वाले पेजर को ताइवान की इलेक्ट्रॉनिक कम्पनी गोल्ड अपोलो द्वारा बनाए गए थे जबकि गोल्ड अपोलो ने इस पेजर को बनाने से साफ इनकार कर दिया। गोल्ड अपोलो कम्पनी हंगरी की एक कम्पनी को इसके निर्माण का ज़िम्मेदार बता रही है। गोल्ड अपोलो का दावा है कि लेबनान में एक साथ फटने वाले पेजर का निर्माण बुडापेस्ट स्थित बीएसी कंसल्टिंग केएफटी ने किया था। जोकि एक सहयोग समझौते के तहत बीएसी लेबनान और सीरिया में पेजर की बिक्री के लिए गोल्ड अपोलो ब्रांड के ट्रेडमार्क का इस्तेमाल कर सकती है, परन्तु इसके निर्माण के लिए बीएसी ही ज़िम्मेदार है, गोल्ड अपोलो नहीं। परन्तु हंगरी के अधिकारियों ने भी गोल्ड अपोलो के बयान को ज़ारिज बताते हुए कहा कि बुडापेस्ट में मौजूद कम्पनी एक व्यापारिक मध्यस्थ है। वहां पर इसका कोई भी उत्पादन यूनिट नहीं है। फिर सवाल यह है कि आखिर लेबनान में फटने वाले पेजर का निर्माण किसने किया?                 
पूरे विश्व को हतप्रभ कर देने वाले इस पूरे घटनाक्रम को लेकर यदि न्यूयॉर्क टाइम्स की रिपोर्ट को सच माना जाये तो लेबनॉन में विस्फोट होने वाले पेजर व वाकी टाकी के निर्माण से लेकर इसके विस्फोट तक में इज़रायली खुफिया एजेंसी मोसाद की ही भूमिका लगती है। अज्ञात स्रोतों के हवाले से न्यूयॉर्क टाइम्स ने  कहा कि इज़ायल ने पेजर के अंदर बम छिपाए और इसमें एक स्विच जोड़ा, जिसका प्रयोग बाद में उन्हें दूर से विस्फोट करने के लिए किया गया। मोसाद की ही खड़ी की गयी फज़र्ी कम्पनी से ये हैंडसेट खरीदे भी गये थे। मोसाद ने ही ऐसा जाल बिछाया कि उसने लेबनान से पैसे लेकर उन्हें पेजर और वॉकी टॉकी सेट बेचे और उन्हीं के द्वारा हिज्बुल्लाह के कई लड़ाकों को मार भी दिया। इससे भी बड़ी सफलता इज़रायल को तब मिली जब हिज़्बुल्लाह ने  भयवश पेजर और वाकी टॉकी जैसे इलेक्ट्रानिक उपकरण इस्तेमाल करने ही बंद कर दिए। उल्लेखनीय है कि लोकेशन ट्रेस होने के भय से हिज़्बुल्लाह पहले ही मोबाइल का इस्तेमाल बंद कर चुका है। ऐसे में इलेक्टॉनिक व साइबर तकनीक पर आधारित होते जा रहे दौर में अपनाई जा रही वर्तमान आधुनिक रणनीति में हिज़्बुल्लाह इज़राय का सामना कैसे कर सकेगा? इस घटना ने पूरे विश्व को यह भी सोचने को मजबूर कर दिया है कि क्या इलेक्टॉनिक उपकरण पर आश्रित हो चुकी इस दुनिया का भविष्य भी अब मोसाद जैसी एजेंसियों के हाथों में जा चुका है। याद कीजिये इज़रायली साइबर-आर्म्स कम्पनी एनएसओ ग्रुप द्वारा विकसित पैगसेस जैसा खतरनाक स्पाइवेयर जिसे आईओएस और एंड्रॉयड चलाने वाले मोबाइल फोन पर गुप्त रूप से और दूर से इंस्टॉल करने के लिए डिज़ाइन किया गया है। इस पैगसेस स्पाइवेयर ने कुछ समय पूर्व भारत में भी तहलका मचा दिया था। इस बात की क्या गारंटी है कि इसी तकनीक का दुरुपयोग कर या हैकिंग के द्वारा भविष्य में इसका इस्तेमाल किसी विमान में या जलपोत में नहीं होगा? आज जब लगभग पूरी दुनिया की लोकेशन सार्वजनिक हो चुकी है, ऐसे में किसी के द्वारा किसी को भी निशाना बनाना असंभव नहीं रहा। ऐसे तो कहीं भी तबाही मचाई जा सकती है। तो क्या आधुनिक विज्ञान के वर्तमान दौर में हम अपने विनाश की सामग्री अपनी ही जेब में लिये फिर रहे हैं?  

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