चीन की चिंता बढ़ाता फ्रांस के साथ भारत का रक्षा सौदा

फ्रांस के साथ भारत के होने जा रहे बड़े रक्षा सौदे के बहुत दूरगामी असर होंगे। इससे न सिर्फ चीनी आक्रामकता नियंत्रित होगी बल्कि समुद्री सुरक्षा मजबूत होने के साथ-साथ इससे कुछ कूटनीतिक लक्ष्य भी हासिल होंगे।
भारत के राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार अजित डोभाल आगामी 30 सितम्बर से 1 अक्तूबर 2024 तक फ्रांस के दौरे पर रहेंगे। वह इंडिया-फ्रांस स्ट्रैटजिक डायलॉग में हिस्सा लेने के लिए पेरिस जाएंगे। उनकी अपने फ्रांसीसी समकक्ष के साथ पेरिस में होने वाली रक्षा सुरक्षा संबंधी रणनीतिक वार्ता महत्वपूर्ण है। भले ही बीते बरस राष्ट्रपति मैक्रों की भारत यात्रा के बाद दोनों देशों में यह पहली द्विपक्षीय रणनीतिक भागीदारी से संबंधित बातचीत हो, परन्तु इससे पहले इसके रास्ते हमवार बनाने, पुख्ता पृष्ठभूमि निर्माण हेतु इससे पहले कुछ दौर की वार्ता और सामान्य बैठकें तथा सैन्य अभ्यास इत्यादि सम्पन्न हो चुके हैं। अब इस बातचीत में फ्रांस ने भारत को परमाणु पनडुब्बियों के निर्माण में मदद की जो पेशकश की थी तथा 110 किलो-न्यूटन थ्रस्ट वाला विमान इंजन और अंडरवाटर ड्रोन तकनीक के शत-प्रतिशत हस्तांतरण का जो प्रस्ताव दिया था, फ्रांस और भारत ने परमाणु हथियारों को लेकर आपसी सहयोग बढ़ाने का जो फैसला किया था, उस सब पर इस बैठक में निर्णायक मुहर लगनी है। उम्मीद है फ्रांस और भारत ने हिंद महासागर पर ध्यान केंद्रित करते हुए हिंद-प्रशांत क्षेत्र में सहयोग को और प्रगाढ करने का जो फैसला लिया है, उसमें इससे बड़ी मदद मिलेगी। भारतीय नौसेना ने हिंद-प्रशांत क्षेत्र में चीन के बढ़ते दखल को कम करने के लिए अपनी युद्धक क्षमता बढ़ाने का फैसला बहुत पहले कर लिया था, अब उस दिशा में गंभीर कवायदें जारी हैं। ऐसे में फ्रांस से यह डील और भी दूरगामी असर वाली हो गई है।
फ्रांस के अलावा हम पश्चिमी प्रतिबंधों से जूझ रहे रूस पर अपनी सामरिक निर्भरता घटाते और विवधीकरण को बढ़ाते हुए अमरीका तथा ऑस्ट्रेलिया से भी बड़े रक्षा सौदे कर रहे हैं ताकि हिंद-प्रशांत क्षेत्र में खास तौर पर नौसेना या समुद्री सुरक्षा के मामले में हम चीन की बढ़ती आक्रामकता को मुंहतोड़ जवाब दे सकें। मगर फ्रांस के साथ होने वाले हालिया सौदे कुछ खास महत्व रखते हैं। फ्रांस से मिलने वाली परमाणु पनडुब्बी और अंडरवाटर ड्रोन की तकनीक भारतीय नौसेना को वह ताकत देगी जिससे चीन और पाकिस्तान भविष्य में चिंतित रहेंगे। खासतौर पर चीन जो इस क्षेत्र में बढ़त पर है, उसे ये भान हो जाएगा कि भारत अब बहुत पीछे नहीं बल्कि ज़बरदस्त टक्कर देने की हैसियत की तरफ  बढ़ रहा है। हिंद महासागर में चीन के बढ़ते अतिक्रमण को देखते हुए भारत को अपनी समुद्री सुरक्षा की तैयारियां अभेद्य करने की आवश्यकता है। अत्याधुनिक उन्नत विमानवाही पोत के विकास एवं निर्माण के साथ ही विभिन्न श्रेणियों की पनडुब्बियों की क्षमता और कौशल बढ़ाने पर ज्यादा ध्यान दे रहा है। समुद्र के अंदर दुश्मनों की टोह लेने, उन्हें तबाह करने वाली परमाणु पनडुब्बियां और हथियार बनाने की तैयारी में जुटा है। प्रधानमंत्री, रक्षामंत्री और राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार इस इरादे को कामयाब बनाने के लिए कृतसंकल्प हैं। रक्षा सूत्र कहते हैं कि नौसेना में जल्द ही अंडरवाटर ड्रोन सरीखी 75 नई तकनीक शामिल होंगी। स्वदेशी के साथ विदेशी तकनीक का शत-प्रतिशत हस्तांतरण नौसेना को 2030 तक पूरी तरह आत्मनिर्भर बना देगी।  
वर्तमान परिस्थिति में अपनी स्वदेशी नाभिकीय पनडुब्बी विकसित करने के दौरान परमाणु पनडुब्बियों और उसकी तकनीक की फ्रांसीसी पेशकश अत्यंत समयानुकूल कही जाएगी फ्रांस ने भारत को हवा, ज़मीन, समुद्री सतह और पानी के भीतर कारगर स्वायत्त प्रणाली की पूरा स्पेक्ट्रम प्रदान करने की बात कही है। यह हमारी नौसेना को टोह लेने, जासूसी करने, निगरानी रखने और आवश्यकतानुसार आक्रमण करने की क्षमता में वृद्धि करेंगे। इसके अलावा नाभिकीय पनडुब्बी और अंडरवाटर ड्रोन की उपस्थिति नौसेना को समुद्र में अभूतपूर्व मज़बूती देगी। परमाणु पनडुब्बी समय की मांग है तो अंडर-सी ड्रोन की ज़रूरत बहुत पहले से ही महसूस हो रही थी। इन-बिल्ट सेंसर या फिर रिमोट सेंसर से नियंत्रित होने वाले दोनों तरह के अंडरवाटर ड्रोन मिलेंगे तो समुद्री शोध का दायरा बहुत बढ़ जाएगा। फिर दुश्मन की हर चाल पर नजदीक से नज़र रखना आसान होगा। पनडुब्बियों से नौसेना की मारक एवं रक्षात्मक क्षमताओं में वृद्धि होगी। अमरीका भारत के साथ किसी रक्षा उत्पाद के संयुक्त उत्पादन में हद से हद 80 प्रतिशत प्रौद्योगिकी हस्तांतरण पर सहमत होता है तो फ्रांस शत-प्रतिशत। सही बात यह कि फ्रांस इस भारतीय भावना को बखूबी समझता है कि भारत क्रेता-विक्रेता का संबंध नहीं बल्कि उत्पादन में साझीदार वाला रिश्ता रखना चाहता है। भारत भी अमरीका को संदेश देना चाहता है कि वह उसे दूसरा रूस नहीं बनाएगा। 
भारत और फ्रांस ने होराइजन 2047 के अंतर्गत अपनी रक्षा क्षमताओं को  संयुक्त रूप से बिना किसी की दखल के विकसित करने का संकल्प ले रखा है। पिछले साल ‘भारत-फ्रांस इंडो-पैसिफिक रोडमैप’ की घोषणा हुई जिसमें यह तय हुआ कि फ्रांस भारत को हिंद-प्रशांत के हर कोने में अपने इलाकों तक ले जा सकता है और अपनी सैन्य सुविधाएं मुहैया करा सकता है।
यही भू-राजनीतिक वजहें हैं कि भारत और फ्रांस आज विश्वसनीय मित्र हैं। भारत और फ्रांस के वैश्विक दृष्टिकोण में बहुत कुछ समानता है, इसीलिए पेरिस और नई दिल्ली के बीच प्रभावी एवं व्यावहारिक सामरिक साझेदारी विकसित हो पाई है जिसके गवाह कम से कम दो दशक तो हैं ही। फ्रांस ने आधुनिक हथियार, परमाणु ईंधन या उन्नत तकनीक के क्षेत्र में दशकों से भारत की अहम आवश्यकताओं को पूरा करता आ रहा है। 
1998 में परमाणु परीक्षण के बाद पश्चिमी देशों ने जब हमारा अंतर्राष्ट्रीय बहिष्कार किया तब वह फ्रांस ही था जिसने हमें अलग-थलग करने की ताकतवर देशों की कोशिशों का समर्थन नहीं किया। उस दौरान भी उसने हमारे साथ सामरिक साझेदारी बढ़ाई।

 -इमेज रिफ्लेक्शन सेंटर