पंचायत चुनावों की गतिविधियां

पंजाब में पंचायत चुनावों की घोषणा कर दी गई है। इससे प्रदेश भर में निचले स्तर पर राजनीतिक गतिविधियां तेज़ होना स्वाभाविक है। विगत वर्ष 31 दिसम्बर को इन पंचायतों का समय पूर्ण हो चुका था। इसके बाद समय पर लोकतंत्र की निचली इकाई मानी जाती पंचायतों का चुनाव होना चाहिए था, परन्तु सरकार की ओर से ये चुनाव नहीं करवाये गये। इसलिए अदालत में केस भी दायर किए गये। अंतत: पंजाब सरकार ने ये चुनाव करवाने की घोषणा कर दी है। 15 अक्तूबर को होने वाले इन चुनावों में मात्र 19 दिन ही शेष हैं। इसी दौरान ही चुनावी प्रक्रिया संबंधी ज़रूरी कार्रवाइयां पूर्ण की जानी हैं। विगत वर्ष सरकार ने अपने तौर पर ही समय पूरा होने से पहले 10 अगस्त, 2023 को पंचायतें, पंचायत समितियां और ज़िला परिषदें भंग करने की घोषणा कर दी थी परन्तु फिर अदालती हस्तक्षेप के बाद सरकार को अपना यह आदेश वापिस लेना पड़ा था। अब 9 मास की देरी के बाद सरकार ने अदालत में 20 अक्तूबर से पहले पंचायतों की चुनाव प्रक्रिया पूर्ण करने की बात मानी थी। 
चाहे आगामी दिनों में कई कारणों के दृष्टिगत प्रदेश में बड़ी व्यस्तताएं बनी रहेंगी। इन चुनावों से पहले 15 अक्तूबर तक कई त्यौहार भी आ रहे हैं। इसके साथ ही विद्यार्थियों की परीक्षा और धान की कटाई का काम भी होगा परन्तु इसके बावजूद ये चुनाव करवाना एक तरह से सरकार की विवशता बन गई है। हम सरकार की ओर से किये गये इस संशोधन को एक अच्छा कदम मानते हैं क्योंकि ये चुनाव राजनीतिक पार्टियों के चुनाव चिन्हों पर नहीं लड़े जाएंगे। इससे राजनीतिक टकराव से बचा जा सकेगा। अक्सर यह देखा गया है कि ऐसे चुनावों के दौरान गांवों में गुटबंदी पैदा हो जाती है। अनेक बार इस कारण तनाव भी पैदा हो जाता है, जो अक्सर आपसी दुश्मनी का कारण भी बन जाता है।
चाहे ये चुनाव पार्टियों के चुनाव चिन्हों पर न भी लड़े जायें परन्तु फिर भी इनमें राजनीतिक पार्टियों का किसी न किसी रूप में हस्तक्षेप अवश्य रहता है, क्योंकि गांवों में भिन्न-भिन्न पार्टियों की प्राथमिक इकाइयां भी होती हैं। प्रदेश में यह भी महसूस किया जाता रहा है कि जिस पार्टी का आधार गांवों में मज़बूत होता है, उसे ही विधानसभा के चुनावों में भारी समर्थन मिलने की सम्भावना होती है। राजनीतिक स्तर पर इस बार कांग्रेस, आम आदमी पार्टी तथा भाजपा के अधिक सक्रिय होने का अनुमान लगाया जा रहा है। विगत लम्बी अवधि से अकाली दल का गांवों में मज़बूत आधार माना जाता रहा है परन्तु इस बार अकालियों में भारी गुटबंदी पैदा होने से तथा अलग-अलग तरह के अकाली दलों के अस्तित्व में आने से अकाली कतारों में अधिक उत्साह दिखाई नहीं दे रहा। ऐसी असमंजस वाली स्थिति में अकालियों का नुक्सान हो सकता है, जिसका प्रभाव आगामी विधानसभा चुनावों पर भी पड़ सकता है।
हम महसूस करते हैं कि ग्रामीण स्तर पर इन चुनावों को हर हाल में राजनीति से दूर रखा जाना चाहिए, ताकि कई तरह की उलझनें तथा विवाद पैदा होने के स्थान पर गांवों के विकास को प्राथमिकता दी जा सके। ऐसा तभी सम्भव हो सकता है यदि ये चुनाव राजनीतिक भावना से नहीं, अपितु आपसी मेल-मिलाप की भावना से लड़े जाएं तथा इनका मुख्य एजेंडा अपने-अपने गांव का विकास ही होना चाहिए। ऐसी भावना की मज़बूती ही पंचायत चुनावों की शक्ति बनेगी, जो अंत में पंजाब के समूचे विकास का मार्ग प्रशस्त कर सकती है। 

—बरजिन्दर सिंह हमदर्द