फिर शुरू हुआ पराली जलाने का सिलसिला

सितम्बर मास लगभग गुज़रने वाला है, परन्तु पंजाब में गर्मी तथा उमस जून-जुलाई के मास की तरह बनी हुई है। मौसम के संबंध में विशेषज्ञों के अतिरिक्त आम लोग भी यह महसूस कर रहे हैं कि सितम्बर के इस मास में बड़ी असाधारण गर्मी पड़ रही है। नि:संदेह धरती की तपिश बढ़ने का यह एक ठोस प्रमाण है। इसके साथ ही प्रदेश के भिन्न-भिन्न भागों से धान की कटाई उपरांत पराली को आग लगाने के समाचार भी आने लगे हैं। एक समाचार के अनुसार पिछले वर्ष 24 सितम्बर तक पराली जलाने के प्रदेश में सिर्फ आठ मामले सामने आये थे, जबकि इस बार ऐसे मामलों की संख्या 81 हो गई है। इसके साथ-साथ प्रदेश में वायु प्रदूषण बढ़ने से हवा की गुणवत्ता में भी भारी अवसान देखने को मिल रहा है। मंगलवार को वायु की गुणवत्ता का सूचकांक गोबिन्दगढ़ में 430 दर्ज किया गया था। पराली जलाने की घटनाएं न होने से पहले 14 सितम्बर को गोबिन्दगढ़ की वायु गुणवत्ता सूचकांक 50 से 111 के बीच ही रहा था। प्रदेश के अन्य शहरों से भी वायु गुणवत्ता सूचकांक में असाधारण वृद्धि दर्ज की गई है। यहां वर्णननीय है कि जितना किसी क्षेत्र की वायु का गुणवत्ता सूचकांक ऊपर जाता है, उतना ही हवा में अधिक प्रदूषण माना जाता है।
दिल्ली एवं उसके आस-पास के प्रदेशों पंजाब, हरियाणा, उत्तर प्रदेश तथा राजस्थान में पराली जलाने से वायु प्रदूषण में हो रही वृद्धि को लेकर सुप्रीम कोर्ट भी अधिक गम्भीर हुआ दिखाई दे रहा है। उसने देश के वायु गुणवत्ता प्रबन्धन आयोग (सी.ए.क्यू.एम.) से रिपोर्ट मांगी है कि दिल्ली तथा उसके आस-पास के राज्यों में पराली को जलाने की घटनाओं को रोकने के लिए उसकी ओर से कैसे उपाय किये जा रहे हैं? इस संबंधी उपरोक्त आयोग को शुक्रवार तक अपनी रिपोर्ट देनी पड़ेगी। इसी दौरान प्रधानमंत्री के प्रिंसीपल सचिव डा. पी.के. मिश्रा ने भी एक बैठक पंजाब, हरियाणा, उत्तर प्रदेश, दिल्ली तथा राजस्थान के मुख्य सचिवों के साथ की है तथा जिसमें इन प्रदेशों ने विश्वास दिलाया है कि पराली जलाने की घटनाओं को रोकने के लिए उनकी ओर से पूरे-पूरे यत्न किये जाएंगे ताकि दिल्ली एवं इसके आस-पास के क्षेत्र (जिसे राजधानी का क्षेत्र भी कहा जाता है) में वायु प्रदूषण में वृद्धि न हो। दूसरी तरफ पंजाब सरकार की ओर से भी पराली को जलाने की घटनाओं को रोकने के लिए किसानों पर सख्ती करने के संकेत दिये जा रहे हैं। यह कहा जा रहा है कि जो किसान सरकार की ओर से मना करने के बावजूद पराली जलाएंगे, उनके ज़मीनी रिकार्ड में ‘रैड एंट्री’ की जाएगी तथा किसानों पर पिछले वर्ष की तरह मुकद्दमे भी दर्ज किये जाने की सम्भावना है। इस कारण पंजाब सरकार एवं किसान संगठनों के बीच इस मुद्दे पर पुन: टकराव भी बढ़ सकता है।
इसी सन्दर्भ में हमारी यह स्पष्ट राय है कि प्रदेश में पराली तथा गेहूं के नाड़ को जलाने का सिलसिला बंद करना अब बेहद ज़रूरी हो गया है, क्योंकि वर्ष में दो बार पराली तथा गेहूं के नाड़ को आग लगाए जाने के कारण जहां वायु प्रदूषण बहुत बढ़ जाता है, वहीं वृक्षों  एवं खास तौर पर नये लगाये गए पौधों का भी बेहद नुक्सान होता है। लोगों की स्वास्थ्य के पक्ष से भी बेहद विपरीत प्रभाव पड़ते हैं। खास तौर पर सांस के मरीज़ों की हालत बदतर हो जाती है। यहीं बस नहीं, अपितु खेतों में लगाई गई आग जब अधिक हवा चलने के कारण नियन्त्रण से बाहर हो जाती है, तो अनेक बार आस-पास की आबादी तथा पशुओं के बाड़ों को भी अपनी चपेट में ले लेती है। हर वर्ष इससे पशु धन का नुक्सान भी होता है तथा अनेक बार मानवीय जीवन की भी हानि होती है। सड़कों पर धुएं के फैलने से दुर्घटनाएं भी होती हैं तथा कई बार स्कूली बसें भी इसकी चपेट में आ जाती हैं, परन्तु हर वर्ष ऐसी दुर्घटनाएं घटित होने के बावजूद सरकारें एवं किसान मिल कर ऐसे प्रभावी कदम उठाने में अब तक सफल नहीं हो सके, जिनसे कि प्रदेश में पराली एवं गेहूं की नाड़ जलाने के सिलसिले को स्थायी तौर पर रोका जा सके। सरकार की ओर से कृषि के अवशेष का निपटारा करने के लिए सबसिडी पर मशीनें देने तथा कई अन्य यत्न ज़रूर किए जाते रहे हैं, परन्तु इसके बावजूद पराली तथा गेहूं के नाड़ जलाने की घटनाओं में कोई कमी नहीं आई, अपितु हर वर्ष इनमें वृद्धि ही होती जा रही है।
अब समय आ गया है कि सरकारें कृषि विशेषज्ञों के साथ विचार-विमर्श करके तथा किसान संगठनों को इन पहलकदमियों में शामिल करके ऐसी व्यवहारिक नीति तैयार करें, जिससे इस समस्या पर पंजाब सहित अन्य प्रदेशों को भी छुटकारा मिल सके तथा देश के लोग साफ-स्वच्छ हवा में सांस लेने के समर्थ हो सकें। प्रत्येक संबंधित पक्ष को इस मामले में पूरी गम्भीरता तथा प्रतिबद्धता से सहयोग करना चाहिए।