आर्थिक, सामाजिक व नैतिक उन्नति वाला हो विकास मॉडल 

जैसे-जैसे भारत विकसित राष्ट्र बनने की ओर अग्रसर हो रहा है, उसे एक ऐसे समग्र विकास मॉडल को अपनाना चाहिए जो आर्थिक, सामाजिक और नैतिक उन्नति को समाहित करे। यह दृष्टिकोण भौतिकवाद से परे जाकर एक ऐसे राष्ट्र की कल्पना करता है जो समावेशी, स्थायी, स्थिर और करुणामय हो। पंडित दीनदयाल उपाध्याय द्वारा प्रतिपादित एकात्म मानववाद का दर्शन एक ऐसी संरचना प्रदान करता है जो भौतिक प्रगति को सामाजिक कल्याण और मानवीय गरिमा के साथ संतुलित करता है। यह दर्शन भारत के विकसित राष्ट्र बनने के मार्ग को दिशा देने में अत्यंत प्रासंगिक है।
एकात्म मानववाद मानव विकास के लिए एक संतुलित दृष्टिकोण की वकालत करता है जो भौतिक, बौद्धिक और आध्यात्मिक कल्याण को एकीकृत करता है। पश्चिमी आर्थिक मॉडलों के विपरीत, जो व्यक्तिवाद और भौतिक सफलता पर बल देते हैं, यह दर्शन व्यक्तियों के समाज, प्रकृति और सांस्कृतिक मूल्यों के साथ अंतर्संबंधों पर ज़ोर देता है। यह समावेशी और नैतिक सिद्धांतों पर आधारित विकास की परिकल्पना करता है । पंडित दीनदयाल उपाध्याय का मानना था कि आर्थिक विकास आवश्यक है परन्तु इसे सांस्कृतिक विरासत, मानवीय मूल्यों और सामाजिक समानता के अनुरूप आगे बढ़ाया जाना चाहिए। उन्होंने तर्क दिया कि भारत के विकास को पश्चिमी औद्योगीकरण की नकल नहीं करनी चाहिएए बल्कि अपनी शकिथयों और परम्पराओं पर निर्माण करना चाहिए। यह दृष्टिकोण विकसित भारत के लक्ष्य के साथ मेल खाता है, जो एक आत्मनिर्भर, समृद्ध और न्यायसंगत राष्ट्र बनाने की आकांक्षा रखता है, जो अपने नैतिक ताने-बाने को भी बनाए रखता है ।
विकसित भारत के लक्ष्य में एक ऐसा राष्ट्र शामिल है जो आर्थिक रूप से उन्नत, सामाजिक रूप से एकजुट और पर्यावरण के प्रति उत्तरदायी हो। यह समाज के सभी वर्गों के उत्थान, गरीबी उन्मूलन, शिक्षा और स्वास्थ्य सेवाओं तक पहुंच सुनिश्चित करने और टिकाऊ प्रथाओं को बढ़ावा देने की परिकल्पना करता है। साथ ही यह भारत को प्रौद्योगिकी, पर्यावरणीय स्थिरता और शांति निर्माण जैसे क्षेत्रों में एक वैश्चिक नेता के रूप में स्थापित करता है।
हालांकि कई चुनौतियां इस दृष्टि को बाधित करती हैं, जिनमें आर्थिक असमानता, पर्यावरण क्षरण और सामाजिक विभाजन शामिल हैं। तीव्र औद्योगीकरण ने धनी और निर्धन के बीच की खाई को और चौड़ा कर दिया है जबकि जलवायु परिवर्तन ग्रामीण आजीविकाओं के लिए खतरा बन गया है। इसके अतिरिक्त, जाति, धर्म और क्षेत्रीय आधार पर सामाजिक विभाजन राष्ट्रीय एकता में बाधा डालते रहते हैं। यहीं पर एकात्म मानववाद एक मार्गदर्शक की भूमिका निभाता है। यह एक ऐसे विकास मॉडल पर बल देता है जो आर्थिक विकास को सामाजिक न्याय और पर्यावरण संरक्षण के साथ संतुलित करता है। सामाजिक सद्भाव को बढ़ावा देकर और वंचित वर्गों के कल्याण को प्राथमिकता देकर, यह इन समकालीन चुनौतियों का समाधान करने में सहायक होता है। विकसित भारत के लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए शासन को ‘अंत्योदय’ के सिद्धांत पर आधारित होना चाहिए। प्रधानमंत्री जन धन योजना, आयुष्मान भारत और स्वच्छ भारत अभियान जैसी योजनाएं विशेष रूप से वंचित वर्गों के लिए वित्तीय सेवाओं, स्वास्थ्य सेवा और स्वच्छता तक पहुंच प्रदान करके इस दृष्टिकोण को प्रतिबिंबित करती हैं। ये नीतियां समग्र मानववाद के सिद्धांत को साकार करती प्रतीत होती हैं, यह सुनिश्चित करते हुए कि विकास समाज के अंतिम व्यक्ति तक पहुंचे। एकात्म मानववाद विकेंद्रीकरण और सामुदायिक सशक्तिकरण की भी वकालत करता है। यह पंचायती राज संस्थाओं को सुदृढ़ करने के भारत के प्रयासों के अनुरूप है, जिससे स्थानीय समुदायों को अपने विकास पर अधिक नियंत्रण मिलता है। ग्रामीण स्वशासन को बढ़ावा देने से शासन और विकास में ज़मीनी स्तर की भागीदारी को प्रोत्साहन मिलता है।
यह दर्शन पर्यावरण प्रबंधन पर भी बल देता है, जो महत्वपूर्ण है क्योंकि भारत जलवायु परिवर्तन और संसाधनों की कमी जैसी बढ़ती पर्यावरणीय चुनौतियों का सामना कर रहा है। एकात्म मानववाद ऐसी नीतियों का आह्वान करता है जो मानवीय आवश्यकताओं और प्रकृति के बीच संतुलन का सम्मान करें, नवीकरणीय ऊर्जा और टिकाऊ प्रथाओं को बढ़ावा दें। अंतर्राष्ट्रीय सौर गठबंधन जैसी पहल हरित ऊर्जा और पर्यावरणीय स्थिरता के प्रति भारत की प्रतिबद्धता को दर्शाती है।
भारत की युवा जनसंख्या में नवाचार और प्रगति को बढ़ावा देने की अपार संभावनाएं हैं। एकात्म मानववाद राष्ट्र को अधिकाधिक कल्याण के लिए अपने युवाओं की प्रतिभा को विकसित करने हेतु प्रोत्साहित करता है, नैतिक सिद्धांतों पर आधारित रहते हुए नवप्रवर्तन को बढ़ावा देता है। ‘स्टार्टअप इंडिया’ और ‘मेक इन इंडिया’ जैसे कार्यक्रम युवा उद्यमियों को राष्ट्रीय विकास में योगदान देने में सहायता करते हैं ।
हालांकि समग्र मानववाद हमें यह भी स्मरण कराता है कि प्रगति को केवल आर्थिक सफलता से नहीं मापा जाना चाहिए। नवाचार को नैतिकता, करुणा और सामाजिक उत्तरदायित्व के साथ संयुक्त किया जाना चाहिए। जैसे-जैसे भारत प्रौद्योगिकी और उद्योग में एक वैश्विक अग्रणी के रूप में उभर रहा है, उसे यह सुनिश्चित करना चाहिए कि प्रगति से व्यापक समाज को लाभ हो और यह मानव कल्याण में योगदान दे। (एजेंसी)