राहुल ने हरियाणा के कांग्रेसी गुटों में करवाई एकता 

जैसे-जैसे हरियाणा विधानसभा चुनाव निकट आ रहे हैं, कांग्रेस के दो गुटों में आतंरिक कलह स्तह पर आती दिखाई दे रही है। इन दिनों हरियाणा कांग्रेस दो विरोधी गुटों के लिए अधिक चर्चा में है, एक का नेतृत्व पूर्व मुख्यमंत्री भूपेन्द्र सिंह हुड्डा कर रहे हैं और दूसरे का नेतृत्व लोकसभा सांसद कुमारी सैलजा कर रही हैं। हालांकि रणदीप सिंह सुरजेवाला तथा पूर्व केन्द्रीय मंत्री बीरेन्द्र सिंह को शैलजा के गुट का हिस्सा माना जाता था। हरियाणा की राजनीति में सैलजा गुट को ‘एसआरबी’ (सैलजा, रणदीप तथा बीरेन्द्र) के नाम से जाना जाता है। पार्टी के राज्यसभा सदस्य रणदीप सिंह सुरजेवाला ने कहा कि यदि पार्टी 5 अक्तूबर का चुनाव जीत जाती है तो केन्द्रीय नेतृत्व तय करेगा कि प्रदेश में मुख्यमंत्री कौन बनेगा। सुरजेवाला ने कैथल में पत्रकारों से बातचीत करते हुए कहा कि हर कोई मुख्यमंत्री बनने की इच्छा रखता है। उन्होंने कहा कि सिरसा से सांसद कुमारी सैलजा भी मुख्यमंत्री बनना चाहती हैं, क्यों नहीं, वह मेरी बड़ी बहन है। चौधरी भूपेन्द्र सिंह हुड्डा भी मुख्यमंत्री बनना चाहेंगे। हम तीनों के अतिरिक्त पार्टी के कुछ अन्य कार्यकर्ताओं की भी यही इच्छा हो सकती है, परन्तु अंतिम फैसला राहुल गांधी तथा मल्लिकार्जुन खड़गे लेंगे। सुरजेवाला ने कहा कि वे जो भी फैसला लेंगे, वह हम सभी को स्वीकार होगा। इस दौरान हरियाणा में विपक्ष के नेता राहुल गांधी की पहली चुनाव रैली ने प्रदेश इकाई के दो प्रमुख विरोधी गुटों को करनाल में एक मंच पर ला दिया, जिसके बाद नाराज़ चल रही सिरसा की सांसद कुमारी सैलजा ने चुनाव प्रचार शुरू कर दिया। सैलजा तथा हरियाणा के पूर्व मुख्यमंत्री भूपेन्द्र सिंह हुड्डा ने करनाल के असंध क्षेत्र में चुनाव रैली में मंच साझा किया। 
महाराष्ट्र चुनाव दंगल 
महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव के लिए लड़ाई शुरू हो गई है, जिनमें सत्तारूढ़ गठबंधन में शामिल मुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे के नेतृत्व वाली शिवसेना, भाजपा तथा अजीत पवार की राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी (एनसीपी) का लक्ष्य सत्ता को बरकरार रखना होगा, जबकि शिवसेना (उद्धव ठाकरे), कांग्रेस तथा एनसीपी (शरद पवार) का महा विकास अघाड़ी (एमवीए) गठबंधन बहुमत हासिल करके मौजूदा सरकार को उखाड़ फैंकने की कोशिश करेगा। एमवीए गठबंधन में अब तक 160 सीटों के वितरण पर सहमति बन चुकी है, यह सीटों का वितरण मुख्य तौर पर मौजूदा विधायकों, क्षेत्र में पार्टी की ताकत तथा उम्मीदवार के जीतने की समर्था जैसे कारणों पर आधारित है। हालांकि शेष 128 सीटें अभी विवाद का विषय हैं, यह विवाद मुख्य तौर पर मुम्बई तथा विदर्भ क्षेत्र में है। कांग्रेस विदर्भ से 42 सीटों की मांग कर रही है, जिसे पार्टी प्रदेश में सत्ता प्राप्त करने के लिए एक महत्वपूर्ण चुनाव मैदान के रूप में देख रही है। मुम्बई में कांग्रेस 14 सीटों पर चुनाव लड़ सकती है, दो सीटें एनसीपी (शरद पवार) तथा एक सीट समाजवादी पार्टी को दी जा रही है। शिवसेना (उद्धव ठाकरे) मुम्बई की कुल 36 सीटों में से 19 पर चुनाव लड़ेगी। 
दूसरी ओर महाराष्ट्र के दो दिवसीय दौरे पर आए केन्द्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने महायुति गठबंधन के सहयोगियों से बैठकों के दौरान सीटों के वितरण को लेकर बातचीत की। रिपोर्टों के अनुसार अस्थायी सीट वितरण यह हुआ है कि भाजपा लगभग 155 सीटों पर चुनाव लड़ेगी, जबकि शिवसेना (शिंदे) 85 से 90 तथा अजित पवार की एनसीपी को 45 सीटें मिल सकती हैं। महायुति सीट के वितरण बारे अंतिम समझौते की घोषणा जल्द हो सकती है। 
खट्टर द्वारा सैलजा को निमंत्रण
हरियाणा में राजनीतिक पारा बढ़ता जा रहा है, भाजपा, जो प्रदेश में दलित वोटरों को लुभाने की कोशिशें कर रही है, के पूर्व मुख्यमंत्री तथा अब केन्द्रीय मंत्री मनोहर लाल खट्टर ने दलित नेता कुमारी सैलजा को भगवा पार्टी में शामिल होने के लिए कहा है, परन्तु सैलजा ने खट्टर को चेतावनी देते हुए कहा कि वह एक प्रतिबद्ध कांग्रेस कार्यकर्ता हैं। उन्होंने पार्टी के भीतर किसी भी तरह की नाराज़गी के कयास को भी दृढ़ता से खारिज कर दिया। हालांकि सिरसा से सांसद (कुमारी सैलजा) ने उम्मीदवारों की चयन प्रक्रिया के दौरान उनकी सलाह तथा सुझावों को दृष्टिविगत करने तथा उनके स्थान पर पूर्व मुख्यमंत्री भूपेन्द्र सिंह हुड्डा को मिलने वाली प्राथमिकता को लेकर अपनी पार्टी के नेतृत्व के प्रति अपनी नाराज़गी नहीं छिपाई। ऐसे प्रतीत होता है कि 14 सितम्बर को सोनीपत तथा कुरुक्षेत्र में प्रधानमंत्री की रैलियों में खट्टर की अनुपस्थिति हरियाणा भाजपा के लिए नया सिरदर्द बन गई है, परन्तु प्रदेश के भाजपा नेताओं का कहना है कि उनसे जुड़ी नकारात्मकता के कारण ही उन्हें इन चुनावों से दूर रखा जा रहा है। त्रासदी यह है कि पार्टी हरियाणा के पहले भाजपा मुख्यमंत्री के रूप में खट्टर के कार्यकाल के दौरान प्रचारित किए गए नौकरियों के लिए पैसा नहीं तथा अच्छे प्रशासन के सिद्धांतों के बल पर चुनावों में जा रही है। सत्ता विरोधी लहर से निपटने के लिए भाजपा ने प्रदेश में 30 प्रतिशत से अधिक ओबीसी वोट को अपने पक्ष में करने के लिए 12 मार्च को खट्टर के स्थान पर ओबीसी चेहरे नायब सिंह सैनी को मुख्यमंत्री बनाया था। सैनी आगामी चुनाव के लिए पार्टी का मुख्यमंत्री पद का चेहरा भी हैं। 
विक्रमादित्य को फटकार
हिमाचल प्रदेश में मुख्यमंत्री सुखविन्दर सिंह सुक्खू के नेतृत्व वाली कांग्रेस सरकार ने मंत्री विक्रमादित्य सिंह के बयान से दूरी बनाते हुए कहा है कि स्टालों व खाने-पीने की दुकानों पर आवश्यक तौर पर नाम को प्रदर्शित करने के बारे प्रशासन द्वारा अभी कोई फैसला नहीं लिया गया है। इस दौरान विक्रमादित्य सिंह को दिल्ली बुलाया गया और कांग्रेस हाईकमान ने उनके विभाग द्वारा खाने-पीने के सामान की दुकानों के मालिकों को लाज़िमी तौर पर नाम तथा अपने पते प्रदर्शित करने के विवादित आदेश के लिए फटकार लगाई है। इस घटनाक्रम से कांग्रेस को सोशल मीडिया के साथ-साथ पार्टी के भीतर भी आलोचनाओं का सामना करना पड़ा, क्योंकि कुछ समय पहले कांवड़ यात्रा के दौरान उत्तर प्रदेश सरकार द्वारा इसी प्रकार की पहल करने पर कांग्रेस द्वारा तीव्र आलोचना की गई थी। सूत्रों के अनुसार कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे तथा कांग्रेस हाईकमान विक्रमादित्य सिंह, मुख्यमंत्री सुखविन्दर सिंह सुक्खू तथा हिमाचल प्रदेश के प्रभारी राजीव शुक्ला से काफी नाराज़ हैं। इस दौरान कांग्रेस के भीतर इस बात को लेकर ज़ोरदार चर्चा है कि हरियाणा, महाराष्ट्र तथा झारखंड के विधानसभा चुनाव के बाद हिमाचल प्रदेश मंत्रिमंडल में फेरबदल हो सकता है। सूत्रों के अनुसार कांग्रेस हाईकमान हिमाचल प्रदेश के प्रभारी राजीव शुक्ला को भी बदलने पर विचार कर रही है, क्योंकि लोकसभा चुनाव के दौरान पार्टी प्रदेश की 4 सीटों में से एक भी सीट नहीं जीत सकी और राज्यसभा सीट जीतने के लिए विधायकों की उचित संख्या होने के बावजूद कांग्रेस हार गई थी।(आई.पी.ए.)