बदलाव की पुकार, किस लिये ?

ज़िन्दगी उस मिस्ड काल जैसी हो गई है, कि चाहे जिसके नाम उसे बजाते रहो, कोई उठाता नहीं। हां, अगर कोई मोबाइल करता है, और उसे उठा लो, तो वह अवश्य कोई नये धंधे वाला होता है। साइबर ठगी के धंधे वाला।
जी हां, गुस्ताखी कर रहा हूं। आजकल न किसी काम के न काज के, नौ मन अनाज के वाले माहौल में नौ मन अनाज तो खैर कभी हमने देखा नहीं। पांच किलो अनाज अवश्य देखा है, जो सरकार रियायती अनाज की दुकान के बाहर हमारी कतार लगवा कर हमारे बीच बरसों से बांटती रहती है। पहले घोषणा हुई थी कि यह अनाज हमारे घरों तक पहुंचा दिया जाएगा। चार महीने बीतने भी नहीं पाये। अब फिर हुक्म हो गया, उन्हीं दुकानों पर वापस जाओ, क्योंकि कारिन्दों से लेकर इस अनाज के दलाल तक बिना काम के हो गये हैं। उनके नये चहेतों की जमात तो पैदा नहीं हुई, हां, पुराने चहेतों के बेकार होकर हाथ से फिसलने का डर पैदा हो गया। नौ नकद व तेरह उधार। जो चहेते जेब में पड़े हैं, उन्हें गंवा कर नये चंवर झुलाने वाले पैदा करो, जो अनाज को आपके घरों तक पहुंचाने की बजाय अपने घरों के बाहर लगवानी शुरू करें। कठिन काम था। इसलिये इसे छोड़, अब पुरानी प्रणाली फिर अपना ली गई। रियायती अनाज की दुकान के बाहर फिर वैसी कतार लगाओ, और जैसे हो वैसे ही रहो के सूत्रवाक्य के गुण गाओ।
बन्धु, क्रांति यहां बेटिकट हो गई है, और ‘जैसे हो वैसे ही रहो’ कि आदत पक्की। ऐसे माहौल में परिवर्तन के नाम कोई मोबाइल करने का कोई मतलब नहीं।  घंटी बजती रहेगी, कोई इसे उठाएगा नहीं। इसलिए बेहतर है कि परिवर्तन के लिए घंटियां बजानी बन्द कीजिये, और जैसे हो वैसे ही रहो के स्वर्ण-पथ पर अपने स्थापित मसीहाओं का जयघोष करते हुए चलते रहो। कभी युग बदल देने की छटपटाहट पैदा हो तो उसे अपने अतीत के गरिमा गान के साथ शान्त कर लीजिये।
सवाल पैदा होता है, कि ऐसे माहौल में बदलाव की प्रार्थना या उत्तेजना के साथ अपनी यह फोन काल किसे कर रहे हो? अपने भाग्य विधाताओं, मोहल्ले से लेकर राजधानी के कर्णधारों तक तो यह काल हो नहीं सकती, क्योंकि आपको भली-भांति पता है कि वे आपकी वोटें बटोर कर अपनी कुर्सी प्राप्त कर सत्ता की दीवार के पीछे जा बैठे हैं। वहां अब कम से कम अगले चुनाव तक आपके मोबाइल की घंटी की आवाज़ पहुंच नहीं सकती।
जी क्या कहा, आप इस सच से भली-भांति परिचित हो चुके हैं, कि वे अब आपकी नहीं अपनी सत्ता के दलाल की ही घंटी सुनते हैं। ‘संस्कृति के चार अध्यायों’ की बात आजकल फिर होने लगी है। जी नहीं, मैं दिनकर जी के क्लासिक ग्रन्थ की बात नहीं कर रहा, कि जिसकी प्रस्तावना पंडित जवाहर लाल नेहरू ने लिखी थी। बेशक, आजकल इतनी भारी भरकम किताबें कौन पढ़ता है? पुस्तक संस्कृति की मौत हो चुकी है। किण्डल, पी.डी.एफ. या ऑनलाइन इन्हें पढ़ कर अपनी आंखें कौन फोड़े?
बन्धु, आजकल गुम संस्कृतियों को हवाओं में से पकड़ने और जाने पहचाने नारों में तबदील करके ‘अपना भारत महान’ चिल्लाते रहने का युग शुरू हो चुका है। यह युग मौन साधना का नहीं, अपना बैंड बजाने का है। कोई माने न माने आप अपने आप को विश्व गुरु का दर्जा दे दीजिए।
यह तो बिना काम किये उपलब्धि हो जाने का युग शुरू हो गया है। ऐसा आंकड़ा शास्त्र बना प्रसारित कर देने का वक्त आ गया है कि जिसमें अपने देश को आर्थिक महा-शक्ति बना देने की घोषणा हर रोज होती है और उससे आह्लादित होकर उत्सवों से भरा हुआ जीवन जीने की तमन्ना जागती है तो जागती चली जाती है।
यहां काम करने के लिए कोई नई श्रम साध्य नीति बनाने की ज़रूरत ही क्या, जबकि बैठे बिठाये महान होने की महिमा आपके चरण चूमती रहती है। देश की अधूरी नई सड़कें और अधबने छोड़ दिये गये पुल, अपने पूर्ण हो जाने के प्रमाण पत्रों के साथ, आपकी आर्थिक शक्ति का महिमा गायन करते रहते हैं। यह प्रशस्ति गायन बताता है, कि आम दुनिया की ग्यारहवीं सशक्त आर्थिक शक्ति से तरक्की करते हम आज पांचवीं बड़ी आर्थिक शक्ति बन चुके हैं। नेता जी लाल किले की प्राचीर से भी बुलन्द आवाज़ के साथ फरमाते हैं, कि जल्दी ही दो तीन बरसों में तीसरी ऐसी आर्थिक महाशक्ति हो जाएंगे। जब अपनी आज़ादी का शतकीय उत्सव मनाएंगे तो विकसित राष्ट्र भी कहलाएंगे। अभी उसकी शोभायात्रा निकाल लो।
यहां विकट समस्याओं से जूझने का ढंग भी हमारा निराला है। महंगाई लगातार परेशान करती है, तो उसे मापने वाले सूचकांक की परिभाषा कम कर दो। जो कीमतें लगातार छलांग लगा कर इसकी गणना का हुलिया बिगाड़ सकती हैं, उनका भारांश कम कर दो, और कीमत वृद्धि की सुरक्षित दर पर पहुंचने की घोषणा कर दो। जी हां, इस देश से गरीबी हटानी है, तो गरीबी की परिभाषा खत्म कर दो। अब वह हर व्यक्ति अमीर है, गरीबी के वृत्त से बाहर है, जो दिन में दो जून रोटी खा कर प्रभु के गुण गा लेता है और दो रोटी रियायती गेहूं बांटने की घोषणा तो हमने कर ही रखी है। अनन्त काल तक यह घोषणा जीवित रहेगी, और बेकार जनता के सात समन्दर पार जाकर फारेन रिटर्न होने का जुगाड़ हमने कर ही दिया है, फिर तुम्हारे मोबाइल की घंटी का जवाब किस लिये?