स्त्री पक्ष के अधिकार और संकट

भारत में स्त्री पक्ष पहले से काफी मज़बूत दिखाई देने लगा है, लेकिन अभी भी स्त्रियों को घरेलू हिंसा, भावनात्मक और शारीरिक शोषण से जूझना पड़ता है। लोकतंत्र के चलते भी ज्यादातर उनसे अलोकतांत्रिक रवैया अपनाया जाता है जबकि बाबा साहेब अम्बेदकर ने कहा था कि राजनीतिक लोकतंत्र ज्यादा नहीं चल सकता अगर इसका आधार सामाजिक लोकतंत्र न हो। सामाजिक लोकतंत्र का क्या अर्थ है? इसका अर्थ है ऐसी जीवनशैली जो स्वाधीनता/समानता और बंधुत्व को जीवन का सिद्धांत मानती हो। यह बात इस सन्दर्भ में ज़रूरी है कि बहुत से घरों से लोकतंत्र खारिज हो रहा है। पुरुष वर्चस्व इतना अधिक होता है कि औरतों और बच्चों की भी बात नहीं सुनी जाती।
भारत में चुनाव सम्पन्न हुए। स्त्रियों ने बढ़-चढ़ कर राजनीतिक गतिविधियों में शिरक्त की। पक्ष या विपक्ष के हक में खुलकर मतदान किया। सार्वजनिक मंचों पर भी अपनी राय रखी। इस समय अमरीका में चुनाव का मौसम है। विश्व भर की पढ़ी-लिखी स्त्रियां इस पर नज़र बनाये हुए हैं, क्योंकि इस बार चुनाव में एक और आयाम जुड़ गया है, वह है उप-राष्ट्रपति कमला हैरिस का, जिनका डैमोक्रेटिक पार्टी की ओर से चुनाव में राष्ट्रपति पद के उम्मीदवार के तौर पर उभरना। 
अमरीका के इतिहास में राष्ट्रपति पद के लिए चुनाव लड़ने वाली वह केवल दूसरी महिला होंगी। इसके साथ ही वह दूसरी अश्वेत और पहली भारतीय अमरीकी भी होंगी। उनकी जीत का दुनिया भर की महिलाओं पर असर होगा, क्योंकि विश्व भर में अमरीका की घटनाओं का कुछ न कुछ असर तो होता ही है। दुनिया की प्रमुख सैन्य शक्ति और आर्थिक शक्ति होने के कारण व्हाइट हाऊस में बैठा व्यक्ति वैश्विक घटनाओं पर व्यापक असर डालता है।
कमला हैरिस राजनीति में महिलाओं की भागीदारी,   गर्भपात, मतदान, शिक्षा व रोज़गार के मुद्दों पर बात करने वाली हैं। कमला हैरिस के लिए यह स़फर आसान नहीं है। उनका मुकाबला डोनाल्ड ट्रम्प और जे.डी. वेंस से है। दोनों रिपब्लिकन हैं। दोनों की राजनीतिक बयानबाज़ी मुश्किलें पैदा करने वाली होंगी। वे दोनों महिलाओं के मुद्दों पर रूढ़िवादी रवैया अपनाते हैं। साफ है कि अगर ट्रम्प को जीत मिलती है, तो उनका प्रशासन निश्चित रूप से उन नीतियों को लागू करना चाहेगा जो महिला अधिकारों को मुश्किल से मान्यता देने वाली होंगी। उनका एजेंडा ही गर्भपात पर प्रतिबन्ध लगाना। उप-राष्ट्रपति पद के लिए अपने साथी के रूप में ट्रम्प ने वैस को चुना है। यह महिला वर्ग के लिए एक सन्देश ही है। वैस का स्त्री विरोधी विचारों पर समर्थन करना हमेशा से रहा है। वह तलाक के विरोध में खड़े हैं, जिनमें वे तलाक भी हैं जो एब्यूसिव रिश्तों से बाहर आने पर लिए जाते हैं। इतना ही नहीं उन्होंने राष्ट्रीय गर्भपात  प्रतिबंध को भरपूर समर्थन दिया है। कामकाजी महिलाओं को उन्होंने बैड पैरेंट कहा है। कहा कि वे बच्चों को डे-केयर में भेजकर स्वतंत्रता का मजा उठाना चाहती हैं। अब लोग विशेषकर महिला वर्ग ट्रम्प की जीत को अमरीका में महिलाओं की पराजय के तौर पर देखने लगा है। यह बात हर जगह फैलने लगी है।
दुनिया भर में जहां-जहां दक्षिणपंथी ताकतें मजबूत हुई हैं, उन्होंने अधिकार विरोधी एजेंडे को ही अपनाया है। अधिकार शब्द उन्हें अच्छा नहीं लगता। ट्रम्प की जीत के सानी होंगे महिलाओं की राजनीतिक पहलकदमी को स्थगित करना। वैसे भी दुनिया भर की महिलाएं पुरुष वर्चस्ववाद का सामना कर रही हैं।